लागू हो राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम

अविनाश कुमार चंचल पर्यावरण कार्यकर्ता avinash.kumar@greenpeace.org तीस अक्तूबर से 1 नवंबर, 2018 तक जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर पहली बार वैश्विक सम्मेलन आयोजित हुआ. इस सम्मेलन का थीम- ‘वायु गुणवत्ता में सुधार, जलवायु परिवर्तन से निबटना और जिंदगियों को बचाना’ था. सम्मेलन में दुनियाभर के देशों की तरफ से […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 2, 2018 7:01 AM
अविनाश कुमार चंचल
पर्यावरण कार्यकर्ता
avinash.kumar@greenpeace.org
तीस अक्तूबर से 1 नवंबर, 2018 तक जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर पहली बार वैश्विक सम्मेलन आयोजित हुआ. इस सम्मेलन का थीम- ‘वायु गुणवत्ता में सुधार, जलवायु परिवर्तन से निबटना और जिंदगियों को बचाना’ था. सम्मेलन में दुनियाभर के देशों की तरफ से प्रतिनिधि, स्वास्थ्य विशेषज्ञ, शोधकर्ता, पत्रकार और सिविल सोसाइटी के लोग शामिल रहे.
इस सम्मेलन से एक दिन पहले डब्ल्यूएचओ ने वायु प्रदूषण और बच्चों के स्वास्थ्य पर एक रिपोर्ट जारी की, जिसके अनुसार दुनियाभर में 18 साल से कम उम्र के 93 प्रतिशत लोग प्रदूषित हवा में सांस लेने को मजबूर हैं.
‘वायु प्रदूषण और बाल स्वास्थ्य : स्वच्छ वायु निर्धारित करना’ नामक इस रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि 2016 में वायु प्रदूषण से होनेवाली श्वसन संबंधी बीमारियों से दुनिया में पांच साल से कम उम्र के 5.4 लाख बच्चों की मौत हुई. वायु प्रदूषण बच्चों के स्वास्थ्य के लिए बड़ा खतरा बन गया है. पांच साल से कम उम्र के 10 बच्चों की मौत में से 1 बच्चे की मौत प्रदूषित हवा से हो रही है.
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक, हर साल दुनिया में लगभग 70 लाख लोगों की मौत वायु प्रदूषण से होती है. आज दुनियाभर में 10 में से 9 लोग खराब हवा में सांस लेने को मजबूर हैं. पर्यावरण संस्था ग्रीनपीस इंडिया की एयरोप्क्लिप्स रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 280 शहरों में से 80 प्रतिशत शहरों की हवा में प्रदूषण राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों से कहीं ज्यादा है.
वैसे तो ज्यादातर शहरों में बाहरी वायु प्रदूषण का स्तर डब्ल्यूएचओ के मानकों से कहीं अधिक है, लेकिन कई शहरों में तो यह 10 गुना से भी ज्यादा है.
स्ट्रोक, हर्ट अटैक, फेफड़े का कैंसर और सांस संबंधी बीमारियों से मरनेवालों की संख्या में एक चौथाई मृत्यु की वजह वायु प्रदूषण है. इसमें सबसे ज्यादा प्रभावित बच्चे, बूढ़े और महिलाएं हैं. डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार ही, 2016 में 29 प्रतिशत फेफड़े के कैंसर से, 24 प्रतिशत स्ट्रोक से और 25 प्रतिशत हृदय संबंधी बीमारियों से होनेवाली मौतों की वजह वायु प्रदूषण रहा.
शिकागो यूनिवर्सिटी के अनुसार, यदि हवा की गुणवत्ता को डब्ल्यूएचओ के वायु गुणवत्ता मानकों के हिसाब से रखा जाये, तो भारत और चीन में लोगों के जीवन के चार साल बचाये जा सकते हैं.
वायु प्रदूषण का हमारे दिमाग पर और गर्भवती महिलाओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है. अध्ययन बताते हैं कि अमेरिका और चीन में थर्मल पावर प्लांट से निकलनेवाले प्रदूषण में की गयी कमी से वहां के बच्चों के स्वास्थ्य पर अच्छा असर पड़ा है.
पेरिस जलवायु समझौते के वक्त ही यह साफ हो गया था कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लोगों के स्वास्थ्य और उनके विकास पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है. जलवायु परिवर्तन के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए जरूरी है कि स्वास्थ्य को केंद्र में रखा जाये. यदि वैश्विक तापमान को कम रखने के लिए जलवायु परिवर्तन से निबटा जाता है, तो वायु प्रदूषण से होनेवाली बीमारियों को काफी कम किया जा सकता है.
वायु प्रदूषण को कम करके अल्पकालिक जलवायु प्रदूषक (एसएलसीपीएस) के उत्सर्जन के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन को भी कम किया जा सकता है, जो बड़े स्तर पर प्राकृतिक संसाधनों, पानी, कृषि, चरम मौसम और स्वास्थ्य पर सीधा-सीधा असर करते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के आइपीसीसी की रिपोर्ट ने बताया है कि जलवायु परिवर्तन का खतरा बढ़ता ही जा रहा है और सारे देश सही रणनीति अपनाकर इससे निबट सकते हैं. वायु प्रदूषण से निबटने की रणनीतियों को अपनाना आसान है. यदि परिवहन, ऊर्जा, कचरा प्रबंधन और औद्योगिक सेक्टर में परिवर्तन किया जाये, तो इस पर काबू किया जा सकता है.
अक्षय ऊर्जा को अपनाकर भारत अर्थव्यवस्था को बढ़ा सकता है और ढेरों रोजगार भी दे सकता है. वर्ल्ड रिसर्च इंस्टीट्यूट (डब्लूआरआई) की रिपोर्ट के अनुसार, भारत 2022 तक अपने महत्वाकांक्षी अक्षय ऊर्जा लक्ष्य 175 गीगावाॅट को प्राप्त करना चाहता है, जिससे निर्माण, प्रोजेक्ट डिजाइन, बिजनेस डेवलपमेंट, निगरानी और रख-रखाव जैसे क्षेत्र में 3,30,000 नयी नौकरियों की संभावना बन सकती है.
भारत सरकार को यह समझना जरूरी है कि थर्मल पावर प्लांट की वजह से भारत में एक लाख लोगों की असामयिक मौत हो जाती है. ऐसे में हमें कोयलाजनित बिजली की जगह अक्षय ऊर्जा की तरफ बढ़ना ही होगा.
जिन क्षेत्रों में वायु प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह परिवहन है, वहां परिवहन क्षेत्र में तेजी से बदलाव किया जाये, सार्वजनिक परिवहन में सुधार लाकर उसको प्रोत्साहित किया जाये, डीजल वाहनों से ई-वाहनों की तरफ बढ़ा जाये, तो स्थानीय स्तर पर वायु प्रदूषण को कम किया जा सकता है.
एक दशक पहले तक दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में चीन के शहर अव्वल थे. फिर चीन ने वायु प्रदूषण से निबटने के लिए 2013 में पांच साल के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर व्यापक पहला स्वच्छ वायु कार्यक्रम को लागू किया था. इस कार्यक्रम के लागू होने के बाद 74 मुख्य शहरों के पीएम 2.5 स्तर में 33 प्रतिशत तक की कमी आयी. इस साल जुलाई में चीन ने अपना दूसरा स्वच्छ हवा कार्यक्रम भी घोषित कर दिया है.
वहीं भारत अभी तक पहले राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम को ही लागू करने का इंतजार कर रहा है. आम लोगों और मीडिया के काफी दबाव के बाद पर्यावरण मंत्रालय ने अप्रैल में अपने पहले राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम के ड्राफ्ट को लोगों की प्रतिक्रिया के लिए अपनी वेबसाइट पर लगाया था. पांच महीने बीत जाने के बावजूद अभी तक कार्यक्रम को लागू नहीं किया जा सका है.
दिसंबर, 2015 में पर्यावरण मंत्रालय ने थर्मल पावर प्लांट को दो सालों के भीतर उत्सर्जन मानकों को पूरा करने की अधिसूचना जारी की थी, जो अभी तक तो लागू नहीं हो पायी है, बल्कि खुद सरकार अब इसे पूरा करने के लिए और पांच साल की समय-सीमा बढ़ाने की तैयारी कर रही है. जबकि वर्तमान में 300 से अधिक थर्मल पावर प्लांट यूनिट उत्सर्जन मानकों का पालन नहीं कर रहे हैं.
ऐसे में डब्ल्यूएचओ की वायु प्रदूषण और स्वास्थ्य पर आयोजित पहली वैश्विक सम्मेलन से काफी उम्मीदें बढ़ जाती हैं. उम्मीद है कि दुनियाभर की सरकारें मिलकर लोगों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुके वायु प्रदूषण से निबटने के लिए ठोस निर्णय लेंगी और अपने नागरिकों के स्वास्थ्य और भविष्य को सुरक्षित बनायेंगी.

Next Article

Exit mobile version