हिंसक अनिश्चितता के भंवर में अरब

इराक का राजनीतिक व सामरिक परिदृश्य महज कुछ दिनों में पूरी तरह बदल गया है. इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवांत (आइएसआइएल) के लड़ाकों ने इराकी सेना को पराजित कर उत्तर-पश्चिम में कई शहरों पर कब्जा कर लिया है और अब वे राजधानी बगदाद से बस कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हैं. इराक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 14, 2014 5:37 AM

इराक का राजनीतिक व सामरिक परिदृश्य महज कुछ दिनों में पूरी तरह बदल गया है. इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड द लेवांत (आइएसआइएल) के लड़ाकों ने इराकी सेना को पराजित कर उत्तर-पश्चिम में कई शहरों पर कब्जा कर लिया है और अब वे राजधानी बगदाद से बस कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर हैं.

इराक पर अमेरिकी हमले के समय बने इस जेहादी संगठन ने 2004 में ओसामा बिन-लादेन के अल-कायदा से संबंध जोड़ा था, जो आंतरिक मतभेदों के कारण दस साल के बाद अब टूट गया है. लेकिन, विचारधारा के स्तर पर दोनों संगठनों में साम्य बना हुआ है. आइएसआइएल और उसके नेता अबु बक्र अल-बगदादी का लक्ष्य इराक और सीरिया को मिला कर एक सुन्नी इस्लामिक राज्य की स्थापना है. इसके नाम में जुड़े लेवांत (अरबी भाषा में अल-शाम) का तात्पर्य वृहत्तर सीरिया से है, जिसमें लेबनान, सीरिया, इजरायल, फलस्तीन, जॉर्डन और दक्षिण तुर्की के कुछ हिस्से शामिल हैं. हालांकि, आइएसआइएल का फौरी इरादा इराक व सीरिया के सुन्नी बहुल इलाकों पर कब्जा करना है.

इराक पर मौजूदा कार्रवाई से पूर्व इसने सीरिया में चल रहे गृहयुद्ध में वहां के कई क्षेत्रों पर कब्जा कर लिया है. अनेक विश्लेषकों के अनुसार, यह एक आतंकी संगठन नहीं, बल्कि एक सैन्य संगठन है, जिसका लक्ष्य वहाबी इस्लाम के अनुरूप शासन स्थापित करना है. सीरिया व इराक में मिली सफलताओं ने आइएसआइएल को भारी मात्र में धन और हथियारों से लैस कर दिया है. दोनों देशों की शिया सरकारों के विरुद्ध असंतोष से इस संगठन को सुन्नी जनसंख्या के बड़े हिस्से का समर्थन भी हासिल है.

इराक से अमेरिकी सेनाओं के हटने और ईरान व शिया सैन्य संगठन हिजबुल्लाह के सीरिया में फंसे होने के कारण आइएसआइएल की बढ़त को रोक पाना फिलहाल मुमकिन नहीं दिख रहा है. राष्ट्रपति ओबामा ने कहा है कि अमेरिका आइएसआइएल के विरुद्ध इराकी सरकार को मदद दे सकता है, लेकिन इन लड़ाकों को मिल रहे सऊदी अरब और खाड़ी देशों के समर्थन के कारण ओबामा के लिए हस्तक्षेप कर पाना बहुत आसान नहीं होगा. अरब की राजनीति शिया-सुन्नी संघर्ष के खूनी, अनिश्चित व अंधेरे भविष्य की ओर अग्रसर है.

Next Article

Exit mobile version