मोबाइल पर दीपावली

अंशुमाली रस्तोगी व्यंग्यकार anshurstg@gmail.com मैंने तय किया है कि इस बार न कहीं जाऊंगा न किसी को बुलाऊंगा; दीपावली मोबाइल पर ही मनाऊंगा! आने-जाने, बुलाने-कहलवाने के हजार झंझट हैं. खर्चा अलग से. जब मोबाइल पास है और हर तरह की सुविधा उस पर है, तो अतिरिक्त लोड क्यों लिया जाये. शरीर को खामख्वाह कष्ट देने […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 6, 2018 12:41 AM

अंशुमाली रस्तोगी

व्यंग्यकार

anshurstg@gmail.com

मैंने तय किया है कि इस बार न कहीं जाऊंगा न किसी को बुलाऊंगा; दीपावली मोबाइल पर ही मनाऊंगा! आने-जाने, बुलाने-कहलवाने के हजार झंझट हैं. खर्चा अलग से. जब मोबाइल पास है और हर तरह की सुविधा उस पर है, तो अतिरिक्त लोड क्यों लिया जाये. शरीर को खामख्वाह कष्ट देने से क्या फायदा!

मोबाइल ने न सिर्फ जिंदगी, बल्कि त्योहारों को भी कितना आसान बना दिया है. पहले जमाने में त्योहारों का असर हफ्तेभर पहले ही दिखायी देने लगता था और बाद तक चलता था. कभी इस रिश्तेदार के यहां जाना, तो कभी उस रिश्तेदार का हमारे यहां आना. पांच-सात दिनों तक जमे रहना. आव-भगत का खर्चा अलग. बातें हजार.

लेकिन त्योहार जब से मोबाइल और इंटरनेट पर आये हैं, हमें हर सामाजिक बंधनों से मुक्ति मिल गयी है. घर बैठे किसी को भी विश का मैसेज भेज दो. मिठाई के फोटू व्हाॅट्सएप कर दो. हंसते-मुस्कुराते इमोजी सरका दो. ज्यादा ही मन है, तो वीडियो कॉलिंग कर लो. सब कितना आसान, कितना नजदीक. न शरीर को आवाजाही का कष्ट, न दिमागी उलझन. पहले शायद कभी किसी को ख्वाब में भी यह इल्म न रहा होगा कि त्योहार इस कदर डिजिटल हो जायेंगे!

त्योहार या जन्मदिन की विश मोबाइल पर पाना पहले मुझे भी थोड़ा अजीब लगता था, लेकिन अब आदत पड़ गयी है. बुरा भी नहीं लगता. कुछ फील भी नहीं होता. यों बुरा मानने से भी क्या हासिल! सब ही तो ऐसा कर रहे हैं. वक्त के साथ चलने-ढलने में ही नफा है, नहीं तो लोग किनारे पर धकेल आपका मजाक ही उड़ायेंगे.

अब तो मैंने किया यह है कि दीपावली के पटाखे भी मोबाइल पर ही, एप की मदद से, छोड़ लेता हूं. न शोर-शराबा न प्रदूषण का असर. एकदम डिजिटलमय दीपावली. ग्रीन दीपावली से कहीं अधिक सुघड़-सभ्य है. नहीं क्या…!

बाजार ने भी लोगों को तरह-तरह के ऑफर्स और सेल में खूब व्यस्त रखा हुआ है. जो खरीदना है, ऑनलाइन ही खरीदना है. ऑफर्स के इतने चमकदार विज्ञापन देख भला किसकी आंखें न चौंधिया जाएं. मोबाइल पर आंखें फोड़ते रहिए, पर ऑफलाइन बाजार का रुख न करिए. तिस पर भी ज्ञानी लोग मोबाइल से दूर रहने का प्रवचन देते हैं.

अभी तो फिर भी काफी तादाद में लोग दीपावली घरों और आपस में सेलिब्रेट करते दिख भी जाते हैं, पर बहुत संभव है, आगे यह भी न दिखे. हालांकि, न दिखने का असर नजर आ भी रहा है. अब पीछे लौटना मुमकिन भी नहीं है.

त्योहार मोबाइल पर मनाइए. विश भी मोबाइल पर ही कीजिए. मिलने न मिलने की शिकायत भी वॉयस मैसेज से मोबाइल पर ही दर्ज करवाइए. क्योंकि, यह डिजिटल समय के डिजिटल त्योहार हैं. इन्हें इस तरह अगर नहीं मनायेंगे, तो दुनिया आपको पिछड़ा समझने में दो पल की देरी न लगायेगी.जमाना मोबाइलमय हुआ है. हैप्पी दीपावली!

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