Advertisement
ईशनिंदा को अब अलविदा!
सुभाष गाताडे सामाजिक कार्यकर्ता subhash.gatade@gmail.com इंडोनेशिया की चीनी मूल की बौद्ध महिला मैलाना (उम्र 44 साल) को बहुत कम लोग जानते होंगे. कुछ माह पहले ही वह इंडोनेशिया के अखबारों में सूर्खियों में रही, जब वहां के विवादास्पद ईशनिंदा कानून के तहत उसे दो माह की सजा सुनायी गयी. सुमात्रा द्वीप की रहनेवाली इस महिला […]
सुभाष गाताडे
सामाजिक कार्यकर्ता
subhash.gatade@gmail.com
इंडोनेशिया की चीनी मूल की बौद्ध महिला मैलाना (उम्र 44 साल) को बहुत कम लोग जानते होंगे. कुछ माह पहले ही वह इंडोनेशिया के अखबारों में सूर्खियों में रही, जब वहां के विवादास्पद ईशनिंदा कानून के तहत उसे दो माह की सजा सुनायी गयी. सुमात्रा द्वीप की रहनेवाली इस महिला का ‘जुर्म’ इतना ही था कि उसने अपने स्थानीय मस्जिद से दी जा रही अजान की तेज आवाज के बारे में शिकायत की थी.
उसकी शिकायत को ‘ईशनिंदा’ समझा गया जिसने चीनी विरोधी दंगे की शक्ल धारण की, जिस दौरान कई बौद्ध विहारों को आग के हवाले किया गया. शेष दुनिया इस सजा के परिणामों पर सोच रही थी और गौर कर रही थी कि किस तरह एक मुस्लिम बहुसंख्यक मुल्क में कानून का इस्तेमाल ‘अभिव्यक्ति की आजादी’ के दमन के लिए किया जा रहा है. इंडोनेशिया बहुलतावाद को वरीयता देता है तथा उसका संविधान धार्मिक आजादी भी देता है.
दुनिया के अलग-अलग हिस्सों से दो खबरें आयी हैं. पहली खबर आयरलैंड की है, जो बेहद रूढ़िवादी किस्म का मुल्क रहा है तथा जिसके समाज तथा राजनीति पर फिलहाल तक रोमन कैथोलिक चर्च का दबदबा रहा है.
वहां जनमत संग्रह में मध्ययुगीन ईशनिंदा कानून को समाप्त करने का निर्णय लिया गया. जनमत संग्रह में लगभग 65 फीसदी लोगों ने ईशनिंदा कानून को समाप्त करने की हिमायत की, जबकि उसके पक्ष में महज 35 फीसदी लोग थे. आयरलैंड ने कुछ साल पहले ही गर्भपात को तथा समलैंगिक विवाद को कानूनी मान्यता दी है. छह साल पहले भारतीय मूल की एक डेंटिस्ट सविता हलप्पानावार को वहां गर्भपात की इजाजत नहीं दी गयी और तर्क दिया गया कि यह एक कैथोलिक मुल्क है. इसके चलते सविता का निधन हो गया.
दूसरी खबर पाकिस्तान की है. पाकिस्तान के सर्वोच्च न्यायालय ने मुख्य न्यायाधीश साकिब निसार के नेतृत्व में आसिया बीबी को दोषमुक्त साबित किया और रिहा करने का निर्णय लिया. आसिया ईसाई श्रमिक महिला है, जिस पर उसके गांववालों ने ईशनिंदा का आरोप लगाया था और उसे नीचली अदालतों ने मौत की सजा सुना दी थी.
यह मामला राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय मीडिया में सूर्खियां बटोरा था, क्योंकि आसिया पहली महिला थी, जिस पर इस विवादास्पद कानून के तहत आरोप लगे थे. आरोपों का विरोध करने के चलते तथा ईशनिंदा के मानवद्रोही कानून की समाप्ति की मांग करने के लिए पाकिस्तान के दो अग्रणी राजनेताओं (पंजाब के गवर्नर सलमान तासीर और उसके केंद्रीय मंत्री शाहबाज बट्टी) की वहां के कट्टरपंथियों द्वारा हत्या कर दी गयी थी.
पिछले ही साल पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा के खान अब्दुल वली खान यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता के छात्र रहे मशाल खान की उसके सहपाठियों ने ईशनिंदा के आरोपों के तहत पीट-पीटकर हत्या की थी.
उन्हीं दिनों लंदन स्थित सेंटर फाॅर सोशल जस्टिस ने ऐसी हत्याओं के बारे में तथ्य संग्रहित कर बताया था कि- ‘1987 से 2015 के दौरान ईशनिंदा के आरोपों के तहत 62 स्त्री-पुरुषों को मार दिया गया, जबकि राज्य ने उनके हत्यारों को सजा नहीं सुनायी.’
ईशनिंदा के नाम पर पाकिस्तान में जिस तरह हिंसा को अंजाम दिया जाता रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं कि आसिया बीबी के मामले में आया यह फैसला उन सभी के लिए उम्मीद की किरण है, जो अधिक समावेशी, मानवीय, बहुलतावादी पाकिस्तान में यकीन रखते हैं.
यह भी स्पष्ट है कि इस फैसले का कट्टरपंथियों ने जबरदस्त विरोध किया है और ऐलान किया है कि आसिया को बरी करने वाले जस्टिस साकिब निसार तथा उनके सहयोगी ‘वाजिब-उल कत्ल’ अर्थात ‘हत्या के लायक’ हैं. जाहिर है, कट्टरपंथ की चुनौती आसानी से खत्म नहीं होनेवाली है. वहीं विडंबना यह है कि ईशनिंदा कानून दुनियाभर में कमजोर तबकों एवं अल्पसंख्यकों के खिलाफ इस्तेमाल होता आया है. यह कानून अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को बाधित करता है.
पंजाब कैबिनेट द्वारा भी पिछले दिनों एक नये बिल पर मुहर लगायी गयी है- धार्मिक ग्रंथों की ‘अवमानना’ के लिए उम्र कैद की सजा का प्रावधान करने का पंजाब का प्रस्ताव है.
भारत के दंड विधान में सेक्शन 295ए को जोड़ने के प्रस्ताव पर भी इसमें मुहर लगी है, जिसके तहत कहा गया है- ‘जो कोई जनता की धार्मिक भावनाओं को चोट पहुंचाने के इरादे से श्रीगुरुग्रंथ साहिब, श्रीमद भगवद्गीता, पवित्र कुरान और पवित्र बाइबिल की आलोचना करेगा, नुकसान पहुंचायेगा या उनकी अवमानना करेगा, उसे उम्र कैद की सजा सुनायी जाये.’
भारत के दंड विधान की धारा 295ए में एक पूरा अध्याय ‘धर्म से संबंधित उल्लंघनों’ को लेकर है, वह ‘धर्म’ या ‘धार्मिकता’ को परिभाषित नहीं करता. पंजाब सरकार का यह कानून जो धार्मिक (जिसकी व्याख्या नहीं की जा सकती) भावनाओं को आहत करने के नाम पर लोगों को जेल में डाल सकता है.
आहत भावनाओं की यह दुहाई किस तरह किसी व्यक्ति को बुरी तरह प्रताड़ित करने का रास्ता खोलती है, इसकी मिसाल हम कॉमेडियन कीकू शारदा के मामले में देख चुके हैं.
बलात्कार के आरोप में जेल में बंद राम रहीम सिंह की नकल उतारने के बाद उसके अनुयायियों ने कीकू के खिलाफ केस दर्ज किया था और प्रताड़ना का उसका सिलसिला तब तक चलता रहा, जब तक गिरफ्तारी में चल रहे कीकू को बाबा ने ‘माफ’ नहीं किया था.
Prabhat Khabar App :
देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए
Advertisement