गरीब और अमीर की दीपावली
क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार kshamasharma1@gmail.com दशहरा गया, तो दीपावली की अनुगूंज पटाखों के रूप में, हर घर की साफ-सफाई, बाजार में बढ़ती सजावट और एक के बाद एक आनेवाले त्योहारों के कारण सुनायी देने लगती है. सिर्फ दुकानों में ही नहीं, जहां जगह मिल जाये वहीं कोई कुछ न कुछ बेचने लगता है. मिट्टी के […]
क्षमा शर्मा
वरिष्ठ पत्रकार
kshamasharma1@gmail.com
दशहरा गया, तो दीपावली की अनुगूंज पटाखों के रूप में, हर घर की साफ-सफाई, बाजार में बढ़ती सजावट और एक के बाद एक आनेवाले त्योहारों के कारण सुनायी देने लगती है. सिर्फ दुकानों में ही नहीं, जहां जगह मिल जाये वहीं कोई कुछ न कुछ बेचने लगता है. मिट्टी के दीये, झंडियां, तोरण, मिट्टी से लेकर पीओपी और अन्य चीजों से बनी लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां, भगवानों के कैलेंडर, फूल, मिठाइयां, खील-बताशे, चीनी के खिलौने, फल, सब्जियां आदि. सोने-चांदी, हीरे-मोती के गहने, चांदी के रुपये, बरतन आदि. ऐसा लगता है कि जो भी बिक सकता है, वह सब बाजार में दिखायी दे रहा है.
बाजारों में इतनी भीड़ है कि पैदल चलना भी मुश्किल है. कंधे से कंधे टकरा रहे हैं. दिवाली से कई दिन पहले से अगर आप राह चलते लोगों पर नजर डालें, तो हर एक के हाथ में कोई थैला, कोई उपहार, गिफ्ट पैक, फूल, बरतन, कोई और चीज दिखायी देती है.
या तो उपहार देकर आ रहे हैं, या उपहार देने जा रहे हैं, या कुछ खरीदा है. कंपनियां भी अपने कर्मचारियों को उपहार देने के लिए दीपावली का अवसर ही चुनती हैं. इस बार तो गुजरात के एक व्यापारी ने अपने छह सौ कर्मचारियों को कार उपहार में दी है. इसी तरह कंपनियां अपनी हैसियत और मुनाफे के अनुसार उपहार और बोनस आदि कर्मचारियों को देती हैं. कंपनियां अपने सामान को बेचने के लिए भी सामान की खरीदारी पर सोने के सिक्के से लेकर और बहुत से समान भी ग्राहकों को देती हैं.
यानी कि दीपावली का अर्थ यह भी है कि क्या आपने किसी को दिया और क्या आपको मिला. पिछले एक दशक से इस तरह का लेन-देन कुछ ज्यादा ही बढ़ा है. दीपावली मनाने से ज्यादा दिखाने और दूसरे पर अपनी संपन्नता का रोब झाड़ने की कोशिश के रूप में भी देखा जाने लगा है- जैसे, इस दीपावली मैंने दो करोड़ की कार खरीदी, मैंने दस करोड़ का मकान खरीदा, हीरे के जेवरात खरीदे, दुनिया की सबसे महंगी मिठाई मंगाकर लक्ष्मी- गणेश का पूजन किया, पड़ोसियों को स्विस चाॅकलेट्स दी.
यह सोचनेवाली बात है कि जिसने सबसे महंगी मिठाई से लक्ष्मी की पूजा की और किसी गरीब ने खील-बताशे से, तो क्या लक्ष्मी इस बात का ध्यान रखेंगी कि किसने महंगी चीजें पूजा में अर्पित कीं और किसने सस्ती! क्या वह भी अमीर-गरीब का भेद करके अमीर के घर में ही दर्शन देंगी! और गरीब उनकी राह देखते ही रह जायेंगे, उम्र भर!
हम किसी भी अवसर पर दिखावे के लिए ही अमीरी का प्रदर्शन करते हैं. पूजा-अर्चना से इन बातों का शायद ही कुछ लेना-देना है. और ईश्वर के बारे में तो कहावत ही है कि ईश्वर गरीब के घर में बसता है.
तो क्यों न आज हमारा सबसे बड़ा त्योहार यानी दीपावली बराबर रूप से गरीब और अमीर दोनों का त्योहार बने. दीपावली गरीबों के घर को भी वैसे ही रोशन करे, जैसे कि अमीरों के घर को करती है. इसके लिए जरूरी है कि हर अमीर अपने आसपास के गरीबों का ध्यान रखे.