सरकार और आरबीआई के बीच सामंजस्य जरूरी, उभरती लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्था भारत के सतत विकास के लिए
भारतीय अर्थव्यवस्था अपने महत्वपूर्ण दौर से गुजर रही है. यह वह समय है, जो तय करेगा कि हम आनेवाले सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में कहां खड़े होंगे और राजनीतिक तौर पर शक्तिशाली देशों के बीच अपनी जगह बना पायेंगे या नहीं. ऐसे नाजुक वक्त में देश की केंद्र सरकार और केंद्रीय बैंक आरबीआई (भारतीय रिजर्व […]
भारतीय अर्थव्यवस्था अपने महत्वपूर्ण दौर से गुजर रही है. यह वह समय है, जो तय करेगा कि हम आनेवाले सालों में वैश्विक अर्थव्यवस्था में कहां खड़े होंगे और राजनीतिक तौर पर शक्तिशाली देशों के बीच अपनी जगह बना पायेंगे या नहीं. ऐसे नाजुक वक्त में देश की केंद्र सरकार और केंद्रीय बैंक आरबीआई (भारतीय रिजर्व बैंक) के बीच मतभेद अच्छा संकेत नहीं है.
किसी भी उभरती लोकतांत्रिक अर्थव्यवस्था के गतिमान बने रहने के लिए और देश के विकास को सुनिश्चित करने के लिए सभी आर्थिक एवं राजनीतिक संस्थाओं के बीच बेहतर सामंजस्य अनिवार्य है. जानकारों का भी मानना है कि केंद्र सरकार और आरबीआई को अपनी सीमाओं का भान रखते हुए व एक-दूसरे की स्वायत्तता का सम्मान करते हुए देशहित में मतभेदों को जल्द-से-जल्द सुलझाना चाहिए. इन्हीं बहसों के मद्देनजर प्रस्तुत है आज का इन दिनों…
गुरचरण दास
लेखक
सरकार का सहयोग करे आरबीआई
सरकार और आरबीआई के बीच जो कुछ भी चल रहा है, वह ठीक नहीं है और पब्लिक के बजाय प्राइवेट में बातचीत कर इस मसले का हल निकाला जाना चाहिए. मतभेद तो होते ही हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि उस मतभेद को पब्लिक में लाया जाये. दो बड़ी संस्थाओं के बीच इस तरह के विवाद से आम आदमी का विश्वास इन संस्थाओं पर कमजोर होने लगता है.
आरबीआई की स्वायत्तता जरूरी तो है, लेकिन साथ ही सरकार के पास पैसे की कमी को पूरा करने की जिम्मेदारी भी उसी पर है. दोनों अपनी जगह सही हैं.
इसलिए न तो सरकार को आरबीआई पर बड़ा दबाव बनाना चाहिए, न ही आरबीआई को सरकार के सामने तनकर खड़ा होना चाहिए. आरबीआई के पास अपना एक बोर्ड है, जो यह निर्धारित करता है कि वह अपने पास जमा मुद्रा भंडार में से सरकार को लाभांश देगा. ऐसे में अगर सरकार को पैसे की जरूरत है और वह आरबीआई से मदद चाहती है, तो आरबीआई को सरकार की मदद करनी चाहिए.
जहां तक वित्त मंत्री की बात आरबीआई गवर्नर द्वारा मानने का सवाल है, तो हमें यह भी देखना चाहिए कि आरबीआई के बॉस वित्त मंत्री नहीं है, क्योंकि आरबीआई एक स्वायत्त संस्था है. इसलिए इन दोनों के बीच बातचीत जरूरी है, न कि खींचतान. जहां आरबीआई के पास कुछ अधिकार हैं, वहीं सरकार के पास भी बहुत सारे अधिकार हैं, क्योंकि सरकार ही देश को चलाती है.
सरकार ही नीतियां बनाती है और उन नीतियों को लागू करने के लिए पैसों की जरूरत होती है. सरकार के पास अपना पैसा तो रहता है, लेकिन जब सरकार के पास पैसे की कमी महसूस होती है, तो वह आरबीआई से लाभांश के तौर पर लेती है, क्योंकि आरबीआई की शेयरहोल्डर होती है सरकार. इसलिए, आरबीआई को अपने शेयरहोल्डर की जरूरतों का और उसकी बातों का सम्मान करना चाहिए.
इसके अतिरिक्त, सरकार की वित्तीय मदद के लिए आरबीआई ही काम आता है, इसलिए दोनों के बीच सामंजस्य बहुत जरूरी है. आदर्श स्थिति वह है, जहां सरकार कोई दबाव आयद न करे, वहीं आरबीआई भी सहयोग के लिए तैयार रहे और अपनी बोर्ड मीटिंग के जरिये यह तय करे कि सरकार की मदद करनी है तो क्यों करनी है.
सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के बीच खींचतान
केंद्र सरकार और केंद्रीय बैंक भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के भीतर सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. पिछले दो हफ्तों से आरबीआई और केंद्र सरकार के बीच मतभेद की खबरें प्रमुखता से सामने आ रही हैं.
पहली बार यह असहमति तब सामने आयी, जब आरबीआई के डिप्टी गवर्नर विरल वी आचार्य ने मुबंई में एक सभा में कहा कि ‘यदि रिजर्व बैंक की स्वायत्तता कमजोर पड़ी, तो इसके विनाशकारी परिणाम देश भुगतेगा. रिजर्व बैंक के स्वायत्तता खोने से पूंजी बाजार में संकट खड़ा हो सकता है, जबकि इस बाजार से सरकार भी कर्ज लेती है, इसीलिए इस बैंक की स्वतंत्रता यथावत रहनी चाहिए.’ उन्होंने यह भी कहा कि ‘जो सरकारें केंद्रीय बैंक की स्वतंत्रता का सम्मान नहीं करतीं, उन्हें देर-सबेर वित्तीय बाजारों के गुस्से का सामना करना पड़ता है.
वे आर्थिक संकट खड़ा कर देती हैं और उस दिन के लिए पछताती हैं, जब उन्होंने एक महत्वपूर्ण नियामक संस्थान की अनदेखी की.’ इस बयान के बाद आरबीआई व सरकार के बीच मतभेद सार्वजनिक हो गये और हर तरफ से इसे लेकर बयान जारी किये जाने लगे. माना जा रहा है कि इस विवाद की शुरुआत सरकार द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक के अधिनियम-7 से संबंधित आरबीआई को चिट्ठी लिखे जाने से हुई. भारत के इतिहास में पहली बार किसी सरकार ने इस अधिनियम के इस्तेमाल को लेकर पहल की है. भारतीय रिजर्व बैंक का अधिनियम-7 आरबीआई के संचालन से संबंधित है और यह सरकार को आरबीआई का संचालन अपने द्वारा गठित समिति को सौंपने का अधिकार देता है.
डिप्टी गवर्नर के बयान की प्रतिक्रिया में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आरबीआई की कार्य-शैली पर सवाल उठाते हुए कहा कि ‘जब कांग्रेस की सरकार सत्ता में थी, उस वक्त वर्ष 2008 से 2014 के बीच बैंकों द्वारा अंधाधुंध कर्ज बांटे गये और केंद्रीय बैंक इन कर्जों को वसूलने में नाकाम रहा. इसी के चलते बैंकिग उद्योग में फंसे कर्जों यानी एनपीए की समस्या खड़ी हुई. इससे यह हुआ कि वर्ष 2008 में जो कुल बैंक ऋण 18 लाख करोड़ रुपया था, वह साल 2014 में बढ़कर 55 लाख करोड़ रुपये हो गया. उस समय कांग्रेस सरकार ने कहा था कि कुल एनपीए 2.5 लाख करोड़ रुपये है, लेकिन जब मोदी सरकार वर्ष 2014 में सत्ता में आयी और सरकार द्वारा एसेट क्वाॅलिटी रिव्यू किया गया, तो पता चला कि वास्तव में एनपीए 8.5 करोड़ रुपये हैं.’ वित्त मंत्री के इस बयान के बाद संकट और गहरा गया. रिजर्व बैंक के अधिकारियों के अनुसार, केंद्र सरकार ने अधिनियम-7 का उपयोग करके आरबीआई के कामों व संचालन में अतिरिक्त दखल देने की कोशिश की है.
ऐसी खबरें भी चली हैं कि आगामी 19 नवंबर को आरबीआई केंद्रीय समिति की बैठक में गवर्नर उर्जित पटेल इस्तीफा भी दे सकते हैं. जानकारों का कहना है कि सरकार और बैंक के बीच जारी विवाद का एक पहलू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) समर्थक अर्थशास्त्रियों को आरबीआई के निदेशक मंडल में अस्थायी सदस्यों के बतौर मनोनीत करना भी है.
बीच में ऐसी अटकलबाजियां भी लगायी जा रही थीं कि सरकार आरबीआई के खजाने से 3.6 लाख करोड़ रुपये इस्तेमाल के लिए लेना चाहती है. हालांकि, सरकार ने बयान जारी करके इसका खंडन किया है. भारत के इतिहास में यह पहली बार नहीं हुआ है कि सरकार और आरबीआई के बीच मतभेद हुए हों. नेहरू से लेकर मनमोहन सिंह तक पूर्व की लगभग सभी सरकारों के आरबीआई के साथ मतभेद रह चुके हैं.
आरबीआई और सरकार इन मुद्दों पर एकमत नहीं
सरकार आरबीआई के जरिये गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के नगदी संकट को दूर करने की उम्मीद में है. दिवालिया होने के कगार पर खड़े बैंकों के लिए सरकार त्वरित सुधारात्मक कार्रवाई (पीसीए) की व्यवस्था में भी आरबीआई द्वारा छूट चाहती है. गिरते रुपये और विदेशी निवेशकों के बाहर जाने के बीच अर्थव्यवस्था में तरलता बनाये रखने के लिए सरकार आरबीआई से धन की निकासी करवाना चाहती है, जिसे आरबीआई ने लगातार खारिज किया है.
इसके अतिरिक्त सरकार ने आरएसएस समर्थक अर्थशास्त्रियों को आरबीआई के निदेशक मंडल में मनोनीत किया है, जिसकी वजह से भी आरबीआई से विवाद की स्थिति उत्पन्न हुई है. निदेशक मंडल के इन सदस्यों में स्वदेशी जागरण मंच के विचारक गुरुमूर्ति सूक्ष्म, लघु और मझोले उद्योगों को ऋण देने की शर्तों में बड़ी छूट देने की मांग करते रहे हैं. इस मांग के पीछे उनका कहना है कि इन छूटों द्वारा लघु एवं कुटीर उद्योगों को जीवनदान मिलेगा और ग्रामीण इलाकों में औद्योगिक विस्तार किया जा सकेगा. आरबीआई इससे सहमत नहीं है.
उसके अनुसार, सरकार आरबीआई को माध्यम बनाकर अपने राजनीतिक हित साधने की कोशिश में है. मामले को नजदीक से परख रहे जानकारों का कहना है कि सरकार आरबीआई का प्रयोग उसी के समानांतर स्वतंत्र भुगतान नियामक संस्था खड़ा करना चाहती है, जिससे आरबीआई की स्वायत्तता को खतरा है. इसके अतिरिक्त, आरबीआई सरकार द्वारा अधिनियम-7 को हथियार बनाये जाने और कार्यों में बाधा पहुंचाने की बात कर ही रहा है.
हाल में यह संस्थाएं भी विवाद में बनी रही हैं
सीबीआई : हाल में, सीबीआई के डायरेक्टर आलोक वर्मा और स्पेशल डायरेक्टर राकेश अस्थाना के बीच विवाद की खबरें आयी थीं और दोनों ने एक-दूसरे पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये थे. सीबीआई के इस विवाद के तूल पकड़ने पर सरकार ने आलोक वर्मा और राकेश अस्थाना को छुट्टी पर भेज दिया था और नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक बना दिया था. आलोक वर्मा ने छुट्टी पर भेजे जाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी दाखिल की है.
सीवीसी : सरकारी भ्रष्टाचार रोकने के लिए साल 1964 में गठित हुआ केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) भी इस फेहरिस्त में खड़ा है. मुख्य आयुक्त केवी चौधरी की नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गयी थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया था. कांग्रेस ने सीबीआई मामले में सीवीसी के रवैये पर सरकार का ‘पिछलग्गू’ होने का आरोप लगाया है.
ईडी : प्रवर्तन निदेशालय आर्थिक कानून को लागू करानेवाला संस्थान प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) आर्थिक अपराधों पर रोक लगाने के लिए काम करता है और वित्त मंत्रालय के राजस्व विभाग के अधीन काम करता है. ईडी के वरिष्ठ अधिकारी राजेश्वर सिंह ने वित्त सचिव को पत्र भेजा था और भ्रष्टाचार के कई आरोप लगाये थे, जिसके बाद विवाद की स्थिति बनी थी.
इसके बाद राजेश्वर सिंह के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गयी थी. विवादों के बीच एजेंसी में नया अंतरिम प्रमुख कर दिया गया था. हालांकि, इस मामले में भाजपा के ही सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने अलग राय रखते हुए राजेश्वर सिंह का समर्थन किया था और सरकार को ही चेतावनी दे दी थी और कहा था कि भ्रष्टाचार से लड़ने की कोई वजह नहीं बचती, क्योंकि मेरी सरकार ही भ्रष्टाचारियों को बचा रही.
ईसी : संवैधानिक संस्था चुनाव आयोग (ईसी) की स्वतंत्रता पर भी हालिया वर्षों में सवाल (अधिकांशतः विपक्ष की तरफ से) उठते रहे हैं. हालांकि, चुनाव आयोग हर आरोप का खंडन करता रहा है.
पिछले महीने चुनाव आयोग ने पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की घोषणा थी. घोषणा के दिन आयोग ने प्रेस कॉन्फ्रेंस का पूर्व निर्धारित समय अचानक बदल दिया, जिसके बाद विपक्ष ने आरोप लगाया कि उसी दिन प्रधानमंत्री की राजस्थान में हुई रैली की वजह से प्रेस कॉन्फ्रेंस का समय बदल लिया गया. इसके अलावा, ईवीएम को लेकर सवाल उठे हैं.