कैश-प्रधान मुल्क करि राखा

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है- नोटबंदी आ गयी निकल गयी. बहुत ज्यादा फर्क ना पड़ा. टीवी सीरियलों की नागिनों पर कोई फर्क न पड़ा, फनफनाकर आ रही हैं. नोटबंदी में लगा था कि नागिनों, नागों, भूतों को नकद भुगतान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 12, 2018 7:31 AM
आलोक पुराणिक
वरिष्ठ व्यंग्यकार
puranika@gmail.com
नोटबंदी की दूसरी वर्षगांठ पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में प्रथम पुरस्कार विजेता निबंध इस प्रकार है-
नोटबंदी आ गयी निकल गयी. बहुत ज्यादा फर्क ना पड़ा. टीवी सीरियलों की नागिनों पर कोई फर्क न पड़ा, फनफनाकर आ रही हैं. नोटबंदी में लगा था कि नागिनों, नागों, भूतों को नकद भुगतान ना होने से सीरियलों में उनकी आमद कम हो जायेगी. विश्लेषकों ने ऐसा अनुमान लगाया था.
चूंकि नाग अथवा भूत डेबिट कार्ड पेमेंट, क्रेडिट कार्ड पेमेंट, रुपे कार्ड पेमेंट आदि की विधियां नहीं समझते, इसलिए वे नकदहीन भारत में काम करने से इनकार कर देंगे. पर ऐसा नहीं हुआ. नाग, नागिन, भूत आदि के सीरियल इतने आये कि साफ हुआ कि नागलोक में इंसानी लोक से ज्यादा बेकारी है. वहां भी मुफ्त में काम करने के लिए कई नाग प्रतिबद्ध रहते हैं.
नोटबंदी का उन क्षेत्रों में बहुत प्रभाव पड़ा, जहां किसी कार्य, सेवा या वस्तु के बदले कुछ नकद देने की प्रथा है. हिंदी के साहित्यकारों पर नोटबंदी का कोई असर ना पड़ा. तमाम साहित्यिक पत्रिकाएं कविता-कहानी छापने का भुगतान ना पहले देती थीं, न नोटबंदी के बाद देती हैं.
यानी इससे हमें यह शिक्षा मिलती है कि नोटबंदी के असर से साहित्यकार इसलिए बच पाये कि उन्हें नोटविहीन माहौल को झेलने की प्रैक्टिस बहुत पहले से थी. हिंदी के कई साहित्यकार आम तौर पर ऐसा कहते पाये जाते हैं कि वह धन के लिए नहीं लिखते, समाज बदलने के लिए लिखते हैं. यानी अगर किसी रचना के बदले किसी रचनाकार को धन देने की कोशिश हो, तो इसे समाज बदलाव की कोशिशों के खिलाफ माना जाये. इस तरह बंदे को नोटविहीन जीवन जीने की आदत हो जाये, तो फिर नोटबंदी नहीं सता सकती.
सुखी जीवन जीने के लिए बंदे को सदा ही नोटविहीन रहने की आदत डालनी चाहिए. इस आदत के थोड़े कष्टों में से एक यह है कि ऐसे जीने से बंदे की बेइज्जती बहुत खराब होती है, पर इज्जत-बेइज्जती से ऊपर बंदा उठ जाये, तो संत भाव में आ जाता है. उच्च कोटि के संतों को भी कैश की जरूरत नहीं होती, चेले-चेलियां व्यवस्था कर देते हैं.
नोटबंदी से अर्थव्यवस्था का चक्का जाम टाइप हो गया, इसकी वजह रही कि तमाम तरह के परमिट लाइसेंस धतकरम के लिए रिश्वत देने में घणी आफतें हो गयीं. आॅनलाइन समय में भी रिश्वत या तो कैश में वसूली जाती है, या किसी वस्तु की शक्ल में. आॅनलाइन ट्रांसफर से कोई रिश्वत ना लेता.
रिश्वत जब लेनी नहीं है, तो काम क्यों किया जाये, ऐसा भाव कई अफसरों में पाया जाता है. अब सब नाॅर्मल है.नोटबंदी के बहुतेरे प्रशंसक हैं, जो फिर नोटबंदी की दुआ करते हैं. ऐसे ही एक प्रशंसक का कहना है कि अब कई महीने टीवी चैनलों पर प्रियंका चोपड़ा की शादी मचेगी. नोटबंदी हो जाती, तो कम-से-कम से प्रियंका की लिपस्टिक के शेड्स की वेरायटी की खबरों से तो मुक्ति मिलती!

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