Loading election data...

मातृत्व लाभ हर महिला का अधिकार

ज्यां द्रेज विजिटिंग प्रोफेसर, रांची विश्वविद्यालय jaandaraz@gmail.com बच्चों का पोषण, स्वास्थ्य और उनका भविष्य मां के पेट में निर्धारित होता है. अगर मां कुपोषित और बीमार होगी, तो बच्चे भी पीड़ित होंगे. गर्भावस्था के दौरान पोषण, दवा और आराम सब समय पर मिले, यह न केवल महिलाओं के हित की बात है, बल्कि बच्चों के […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 13, 2018 6:48 AM

ज्यां द्रेज

विजिटिंग प्रोफेसर,

रांची विश्वविद्यालय

jaandaraz@gmail.com

बच्चों का पोषण, स्वास्थ्य और उनका भविष्य मां के पेट में निर्धारित होता है. अगर मां कुपोषित और बीमार होगी, तो बच्चे भी पीड़ित होंगे. गर्भावस्था के दौरान पोषण, दवा और आराम सब समय पर मिले, यह न केवल महिलाओं के हित की बात है, बल्कि बच्चों के अधिकार और देश के विकास की बात भी है. वास्तविकता यह है कि गर्भावस्था और प्रसव भारत की गरीब महिलाओं के लिए बेहद असुरक्षा और कष्ट का समय है.

एक तरफ अस्वस्थता और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण दवा-डॉक्टर के खर्च का बोझ सहना पड़ता है, वहीं दूसरी तरफ मेहनत करना और पैसा कमाना मुश्किल हो जाता है. कई बार लोगों को बैल-भैंस-बकरी तक बेचना पड़ता है या पैसा उधार लेना पड़ता है. ऐसी हालत में फल खाना, दूध पीना और आराम करना तो बहुत दूर की बात होती है.

इस परिस्थिति में मातृत्व लाभ को महिलाओं का मौलिक अधिकार मानना जरूरी है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून 2013 को इस दिशा में एक छोटा-सा कदम समझा जा सकता है. इस कानून के तहत हर गर्भवती महिला को 6,000 रुपये का मातृत्व लाभ का अधिकार है. दुख की बात है कि पांच साल से केंद्र सरकार इस प्रावधान को लागू करने की जिम्मेदारी से बचती रही है.

तीन साल तक केंद्र सरकार ने कुछ नहीं किया. साल 2010 में पिछली सरकार ने 53 जिलों में मातृत्व लाभ की जो प्रायोगिक योजना शुरू की थी, उसी को वह चलाती रही. जब भी सुप्रीम कोर्ट ने कार्यान्वयन के बारे में पूछा, सरकार ने बचने के लिए वादा किया कि इस योजना को अगले साल से पूरे भारत में लागू किया जायेगा. लेकिन, हर साल प्रायोगिक योजना उन्हीं 53 जिलों में सीमित रही.

नवंबर 2016 में भारत के गरीबों को नोटबंदी की कड़वी दवा पिलायी गयी. इसको मीठा करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 31 दिसंबर, 2016 को आश्वासन दिया कि अगले साल से गर्भवती महिलाओं को 6,000 रुपये का मातृत्व लाभ दिया जायेगा.

उन्होंने उस भाषण में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून का उल्लेख नहीं किया. इससे एक धारणा बनी कि प्रधानमंत्री जी महिलाओं के लिए एक महान पहल कर रहे हैं, जबकि केवल कानून लागू करने का मामला था.

मोदीजी की घोषणा के बाद प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पीएमएमवीवाई) शुरू हुई, जिसे लागू करने की तैयारी में करीब एक साल और लगा. खाद्य सुरक्षा कानून लागू होने के पांच साल बाद इस साल हर जिले में कुछ महिलाओं को मातृत्व लाभ मिलने लगा. पीएमएमवीवाई के तहत महिला को केवल पहले जीवित बच्चे के लिए मातृत्व लाभ दिया जाता है, जो खाद्य सुरक्षा कानून का घोर उल्लंघन है.

पीएमएमवीवाई के तहत मातृत्व लाभ 6,000 रुपये की जगह 5,000 रुपये दिया जाता है. कैसे? केंद्र सरकार कहती है कि तीन गर्भवती महिलाओं में से करीब दो को जननी सुरक्षा योजना से 1,400 रुपये मिलता है, यानी औसतन हर महिला को लगभग 1,000 रुपये. अजीब बात है! छह हजार रुपये का मातृत्व लाभ हर महिला का अधिकार है, न कि औसत महिला का. दूसरा, जननी सुरक्षा योजना का अपना उद्देश्य है- सुरक्षित प्रसव.

इस योजना के लाभ को मातृत्व लाभ का विकल्प नहीं माना जा सकता है. पीएमएमवीवाई के छोटे-मोटे लाभ को पाने के लिए महिलाओं को काफी कष्ट उठाना पड़ता है. कई फॉर्म भरने पड़ते हैं, जच्चा-बच्चा कार्ड के साथ अपना और पति का आधार कार्ड देना पड़ता है, बैंक खाता आधार से लिंक करना पड़ता है, आदि.

सरकार की कंजूसी मातृत्व लाभ के अधिकार को नष्ट कर रही है. मातृत्व लाभ हर बच्चे के लिए मिलता और आवेदन की प्रक्रिया थोड़ी आसान होती, तो सभी जरूरतमंद महिलाएं इस योजना का लाभ उठातीं. लेकिन, आज की स्थिति में गर्भवती महिलाओं की केवल आधी संख्या ही पीएमएमवीवाई के लिए योग्य है. और उसमें से भी केवल कुछ ही पढ़ी-लिखी महिलाएं इस योजना का लाभ उठा पाती हैं.

जून 2017 में दिल्ली विवि की दो छात्राओं- आरुषी कालरा और अदिति प्रिया ने झारखंड के लातेहार और खूंटी जिलों में सर्वेक्षण किया. सौ गर्भवती महिलाओं में से 50 महिलाएं ही पीएमएमवीवाई के लिए योग्य थीं, 37 महिलाएं योजना के बारे में जानती थीं और 31 ने मातृत्व लाभ के लिए आवेदन किया था, पर पैसा किसी को नहीं मिला था. कुछ महिलाओं का आवेदन खारिज कर दिया गया था और बाकियों को भुगतान में देरी हो रही थी. दोनों जिलों में कुछ महिलाओं को मातृत्व लाभ मिला होगा, लेकिन ‘ऊंट के मुह में जीरा’ के हिसाब से.

सर्वेक्षण में गर्भवती महिलाओं का कष्ट साफ दिख रहा था. लातेहार के दुम्बी गांव की मुन्नी देवी के पति सर्वेक्षण के दौरान ही मजदूरी की तलाश में कहीं पलायन कर चुके थे. मुन्नी अकेली घर और खेत दोनों संभाल रही थी.

उसके दो बच्चे थे, दोनों कुपोषित. पूरा दिन मजदूरी करके मुन्नी सौ रुपये कमाती थी. पोषण और दवा के लिए पैसा नहीं था, आराम भी नहीं कर पा रही थी. मां और पैदा होनेवाला बच्चा दोनों का स्वास्थ्य खतरे में था. सर्वेक्षण के दौरान गांव-गांव में इस तरह की कई स्थितियां सामने आयीं.

देशभर में मुन्नी देवी जैसी गरीब महिलाएं सरकार की कंजूसी की भारी कीमत चुका रही हैं. साथ ही उनके बच्चों का कल्याण, अधिकार और भविष्य सब बरबाद हो रहा है.

Next Article

Exit mobile version