आम चुनाव की प्रीबोर्ड परीक्षा
योगेंद्र यादव अध्यक्ष, स्वराज इंडिया yyopinion@gmail.com इधर स्कूलों में प्रीबोर्ड परीक्षा की तैयारी चल रही है. उधर मोदी सरकार भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपनी प्रीबोर्ड परीक्षा दे रही है. जब आगामी 11 दिसंबर को इसका परिणाम आयेगा, तो हमें लोकसभा चुनाव 2019 की एक झांकी जरूर दिख जायेगी. अब तक जो झलक […]
योगेंद्र यादव
अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
yyopinion@gmail.com
इधर स्कूलों में प्रीबोर्ड परीक्षा की तैयारी चल रही है. उधर मोदी सरकार भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अपनी प्रीबोर्ड परीक्षा दे रही है. जब आगामी 11 दिसंबर को इसका परिणाम आयेगा, तो हमें लोकसभा चुनाव 2019 की एक झांकी जरूर दिख जायेगी. अब तक जो झलक मिली है, उससे बीजेपी का विचलित होना स्वाभाविक है.
पता नहीं क्यों इन चुनावों को लोकसभा चुनाव का ‘सेमीफाइनल’ कहने का चलन हो गया है. मुझे कभी यह मुहावरा समझ नहीं आया. या फिर हर विधानसभा चुनाव को केंद्र सरकार पर रेफरेंडम घोषित कर दिया जाता है.
मुझे प्री बोर्ड का मुहावरा अच्छा लगता है. असली इम्तिहान से पहले का छोटा इम्तिहान, जिसमें तैयारी की जांच हो जाती है, कमजोरी पता लग जाती है, कितने नंबर आ सकते हैं इसका भी आभास हो जाता है. पांच राज्यों में चल रहे चुनाव भी ऐसी ही एक परीक्षा है. इनकी जीत-हार से सीधे-सीधे साल 2019 लोकसभा चुनाव का परिणाम तय होनेवाला नहीं है. लेकिन, अगर इस चुनाव के रुझान को बारीकी से देखें, तो इनसे लोकसभा चुनाव की एक झलक मिल सकती है.
अगर इन चुनावों को लोकसभा चुनाव की दृष्टि से समझना हो, तो पहले तो मिजोरम और तेलंगाना को भूल जाइए. मिजोरम का चुनाव इतना अनूठा है कि उससे बाकी देश तो छोड़िए, पूर्वोत्तर की राजनीति का भी अनुमान नहीं लगता. तेलंगाना में स्वतंत्र राज्य बनने के बाद पहला चुनाव है.
बेशक यह एक ऐतिहासिक चुनाव है. लेकिन तेलंगाना की विशिष्ट परिस्थिति से बंधा चुनाव है. इसके रुझान से पड़ोसी आंध्र प्रदेश की राजनीति की झलक भी नहीं मिलती. बस इतना जरूर पूर्वानुमान लगा सकते हैं कि राज्य की 17 लोकसभा सीट किसकी झोली में जायेंगी. लेकिन, यहां बीजेपी या कांग्रेस के लिए ज्यादा हारने जीतने को है नहीं. बस यह देख सकते हैं कि क्या टीडीपी और तेलंगाना जन समिति के साथ कांग्रेस अपने बड़े गठबंधन को चुनावी युद्ध में निभा ले जायेगी.
लोकसभा चुनाव की दृष्टि से इस बार सबसे महत्वपूर्ण चुनाव राजस्थान मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हैं. इन तीन राज्यों में कुल 65 लोकसभा सीटें हैं. पिछली बार बीजेपी इनमें से 62 सीटों पर जीती थी.
इन राज्यों में अपनी अधिकांश सीटें बचा सकना बीजेपी की राष्ट्रीय सफलता के लिए अनिवार्य है. इन तीनों राज्यों के परिणाम से यह झलक भी मिल जायेगी कि साल 2014 में पूरी हिंदी पट्टी में चली मोदी-लहर क्या अब भी बरकरार है?
फिलहाल तो ऐसा दिखायी नहीं देता. अब तक कई जनमत सर्वे आ गये हैं. चुनाव की कई भविष्यवाणियां हो चुकी हैं. पिछले कुछ समय से इन भविष्यवाणियों की साख इतनी गिरी है कि इनके आधार पर कुछ भी कहने में डर लगता है. लेकिन, अगर आप चुनाव से पहले सीटों की सटीक भविष्यवाणी का चक्कर छोड़ दें, तो यह तमाम सर्वे इतना जरूर बताते हैं कि हवा का रुख किस ओर है, जनता का मत क्या है.
राजस्थान में हर सर्वे, हर राजनीतिक समीक्षक और हर पनवाड़ी एक ही बात कह रहा है. बीजेपी हारेगी और बुरी तरह से हारेगी. वसुंधरा राजे की सरकार आज उतनी ही घोर अलोकप्रिय है, जितनी 2013 में चुनाव हारने से पहले अशोक गहलोत सरकार थी.
सिर्फ 33 प्रतिशत जनता चाहती है कि बीजेपी सरकार को दोबारा मौका दिया जाये, जबकि 44 प्रतिशत लोग इस सरकार को हटाने के पक्ष में हैं. राजस्थान में तो सवाल सिर्फ इतना ही है कि बीजेपी की हार का फासला कितना होगा? और क्या विधानसभा चुनाव में हारने के बाद बीजेपी लोकसभा चुनाव में कुछ सीटें बचा पायेगी? यहां 1999 के लोकसभा चुनाव को छोड़कर विधानसभा चुनाव के विजेता को लोकसभा चुनाव में भी ज्यादातर सीटें मिली हैं.
मध्य प्रदेश में अलग-अलग सर्वे की भविष्यवाणी अलग-अलग दिशा में है. लेकिन, दो बात पर सब सर्वे सहमत है: मुकाबला कांटे का है और पहले की तुलना में शिवराज सिंह चौहान की सरकार की लोकप्रियता बहुत घटी है. सीएसडीएस ने जब 2013 के चुनाव से पहले मध्यप्रदेश में सर्वेक्षण किया था तो 53 प्रतिशत लोग बीजेपी सरकार की वापसी चाहते थे और सिर्फ 20 प्रतिशत उसे हटाना चाहते थे.
इस बार अक्तूबर के महीने में 45 प्रतिशत सरकार की वापसी के हक में थे, तो 43 प्रतिशत बीजेपी सरकार को हटाने का मूड बना चुके थे. जो सीएसडीएस का सर्वे बीजेपी को आगे दिखा रहा है उसके अनुसार भी ग्रामीण इलाकों में बीजेपी कांग्रेस से पीछे चल रही है. शहरों में बड़ी जीत दोहराने के बावजूद बीजेपी अगर ग्रामीण इलाकों में पीछे रही, तो बहुमत के आंकड़े को नहीं छू पायेगी. जो भी हो, यह तो संभव नहीं दिखता कि बीजेपी 2014 चुनाव में यहां 29 में से 27 लोकसभा सीट जीतने के अपने रिकॉर्ड को दोहरायेगी.
छत्तीसगढ़ में सर्वे या तो बीजेपी की बड़ी जीत की बात कह रहे हैं या फिर उसकी छोटी हार की. पिछले दोनों विधानसभा चुनावों में बीजेपी हार से बाल-बाल बची है.
इस बार दोनों तरह के सर्वे यह बात मान रहे हैं कि पिछली बार की तुलना में रमन सिंह सरकार की लोकप्रियता घटी है. वहां हर कोई यह स्वीकार कर रहा है कि अगर बीजेपी जीत जाती है, तो उसका श्रेय अजीत जोगी और बसपा गठजोड़ द्वारा कांग्रेस के वोट में सेंधमारी को होगा. अगर ऐसा होता है, तो लोकसभा चुनाव में बीजेपी किस तरह अपनी दस सीटें बचायेगी?
इन चुनावों को प्रीबोर्ड कहने में एक ही दिक्कत है. प्रीबोर्ड परीक्षा के नंबर असली परीक्षा में नहीं जुड़ते. लेकिन पांच राज्यों के चुनाव का आगामी लोकसभा चुनाव पर सीधा असर पड़ेगा.
अगर बीजेपी तीनों राज्य जीत जाती है, तो जाहिर है लोकसभा चुनाव के लिए उसका आत्मविश्वास और देशभर में हवा चलाने की क्षमता बढ़ जायेगी. लेकिन, अगर बीजेपी राजस्थान के अलावा एक और राज्य हार जाती है, तो इससे पूरे देश का राजनीतिक माहौल बदलेगा. विपक्षी दलों के कार्यकर्ताओं का उत्साह बढ़ेगा. जो बड़े उद्योगपति अभी बीजेपी को छोड़कर किसी विपक्षी को पैसा देने में डर रहे हैं, वे भी अपनी थैली खोलेंगे.
सबसे बड़ी बात यह कि मीडिया का रुझान बदलेगा. आज बीजेपी के इशारे पर नाच रहा मीडिया अपनी चाल बदलने को मजबूर होगा. मोदी सरकार का सच आम जनता तक पहुंचना शुरू होगा. अगर ऐसा हुआ, तो साल 2019 चुनाव के समीकरण करिश्माई तरीके से बदल भी सकते हैं.