इतिहास दोहराने की कोशिश

अजय साहनी कार्यकारी निदेशक इंस्टीट्यूट ऑफ कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट icm@satp.org अमृतसर में राजासांसी इलाके में निरंकारी भवन पर हुआ आतंकवादी हमला आतंक फैलाने की नापाक कोशिशों का परिणाम है. यह कोशिशें बहुत पुरानी हैं, जिसके पीछे निस्संदेह पाकिस्तान का हाथ है. क्योंकि खालिस्तानी आतंकियों के नेतृत्वकर्ताओं का आधार आज भी पाकिस्तान में बना हुआ है. पाकिस्तान […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 20, 2018 7:30 AM

अजय साहनी

कार्यकारी निदेशक इंस्टीट्यूट ऑफ कॉन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट

icm@satp.org

अमृतसर में राजासांसी इलाके में निरंकारी भवन पर हुआ आतंकवादी हमला आतंक फैलाने की नापाक कोशिशों का परिणाम है. यह कोशिशें बहुत पुरानी हैं, जिसके पीछे निस्संदेह पाकिस्तान का हाथ है.

क्योंकि खालिस्तानी आतंकियों के नेतृत्वकर्ताओं का आधार आज भी पाकिस्तान में बना हुआ है. पाकिस्तान ने ही इन आतंकियों को पनाह दे रखी है, उन्हें हथियार व फंडिंग उपलब्ध कराता है, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुरक्षा देता है और समर्थन करता है. पाकिस्तान विदेशों में रहने वालों प्रवासी खालिस्तानी तत्वों को भारतीय जमीन पर गतिविधियों के साथ तालमेल बनाये रखने के लिए लगातार पैसे खर्च करता रहा है.

इससे इनकार नहीं किया जा सकता कि ये खालिस्तानी तत्व सक्रिय हैं तथा यह आतंकी हमला खालिस्तानी अभियान को जिंदा करने की खालिस्तानियों और पाकिस्तान की मंशा का ही नतीजा है. सामान्यतया, इस तरह की नापाक कार्रवाइयां असफल ही रही हैं.

अक्सर यह देखने में आता है कि बीच-बीच में इस तरह की इक्का-दुक्का आतंकी कोशिशें होती हैं, इन हादसों में लोगों की जान जाती है, ‘टार्गेटेड किलिंग्स’ भी होती हैं और जांच के दौरान इसमें शामिल लोगों की धर-पकड़ कर ली जाती है व केस सुलझ जाता है. पहले के हमलों में शामिल भारत में सक्रिय आतंकियों को पकड़ा भी जा चुका है. कहने का अर्थ यही है कि हमारी एजेंसियों द्वारा सख्त कदम उठाये जाते रहे हैं और यह खालिस्तानी आतंकी अभियान कभी बढ़ने नहीं दिया गया है.

निरंकारियों पर हुए हालिया हमले के बाद जो बहस चल रही है, उसमें गलतबयानी की जा रही है. कुछ लोग कह रहे हैं कि यह हमला आइएस (इस्लामिक स्टेट) ने किया है, वहीं दूसरे लोग इसमें जैश-ए-मोहम्मद का हाथ बता रहे हैं.

लेकिन, मुझे कहीं से भी ऐसा नहीं दिखता है कि आइएस या जैश-ए-मोहम्मद के लोग यहां आकर खालिस्तानियों के पारंपरिक शत्रु निरंकारियों के खिलाफ कोई ऐसा ऑपरेशन चलायेंगे. इस्लामिक स्टेट का कश्मीर में ही कोई मजबूत आधार नहीं रहा है.

यह एक छोटा सा गुट है, जो हिज्बुल मुजाहिद्दीन से झगड़ा होने के बाद बना था. इसमें 12-15 लड़के थे, जिसमें आधे मारे जा चुके हैं. ये लड़के वहां से भागकर, यहां निरंकारियों पर हमले करने नहीं आयेंगे, अगर उन्हें ‘शहीद’ ही होना है, तो कश्मीर में ही होंगे. अगर यह लड़के अंतरराष्ट्रीय आइसिस से जुड़े हुए हों, तो भी वह यहां हमले क्यों करेंगे, वे पाकिस्तान से इजाजत लेकर काम तो करते नहीं है.

हाल में आयी रिपोर्ट में, जिसमें कहा गया था कि जैश-ए-मोहम्मद के तीन-छह लड़कों की टीम पंजाब में है, और कहा गया कि जाकिर मूसा भी वहां देखा गया है, इन रिपोर्टों से कोई हासिल नहीं निकलता. इस आतंकी हमले के सारे संकेत खालिस्तानी तत्त्वों की तरफ ही इशारा करते हैं. भिंडरावाला के पुराने अभियानों को ही देख लें, तो उसमें लगातार निरंकारियों के खिलाफ चलाये मुहीमों का इतिहास दिखायी देता है. यह हमला उन्हीं अभियानों को दोहराने की आतंकी कोशिश है, जिसके तार प्रवासी खालिस्तानी आतंकी तत्वों से जाकर जुड़ते हैं. यह तत्व भारत से बाहर रहकर इस तरह के अभियानों को अंजाम दे रहे हैं.

भारतीय राजनीति की विडंबना है कि वह अपने हितों के हिसाब से मामलों को राजनीतिक एंगल देती है. आज देशभर में जैसा सांप्रदायिक माहौल बना हुआ है, यह माहौल हर चीज को हिंदू-मुस्लिम चश्मे से दिखाने की कोशिश करता है. इस हमले का पैटर्न बहुत पुराना है.

पहले भी यही होता था कि दो लड़के मोटरसाइकिल से आये और गोली मार दी. इस बार ग्रेनेड चलाया है. पैटर्न द्वारा यह पहचानना मुश्किल नहीं कि इसके पीछे कौन है. प्रोजेक्ट की तरह चल रही ध्रुवीकरण की यह गंदी राजनीति कहीं भी मुस्लिम नाम घुसेड़ने की चाहत रखती है. यह कोशिश हमारी एजेंसियों के काम में बाधा पहुंचाती है. इस वक्त ऐसी बहसों से बचना चाहिए कि यह हमले किसने कराये. जांच तथ्यों के आधार पर होती है, उसी के आधार पर राय बनानी चाहिए.

यह चीज भी होने लगी है कि हमारे आर्मी चीफ बिपिन रावत हर मसले पर अनावश्यक बोल रहे हैं. इनको हर मुद्दे पर बयान देने की आवश्यकता नहीं है. पहले कोई आर्मी चीफ इतने बयान नहीं दिया करता था.

वैसे भी, आर्मी चीफ को राजनीतिक मामलों में दखल नहीं देना चाहिए. पंजाब में उन्हेें किसी भी तरह के बयान देने की जरूरत नहीं थी. वे खालिस्तानी आतंकवाद के खिलाफ जारी अभियानों में कोई भूमिका नहीं निभा रहे, न ही यहां फौज की कोई टुकड़ी ‘एंटी टेरर ऑपरेशन’ में शामिल है. कश्मीर या उत्तर-पूर्व, जहां फौज हर वक्त जमी रहती है, वहां के मामलों में वह बोलें तो भी मैं एतराज करूंगा.

पंजाब तो कोई कश्मीर या नार्थ-ईस्ट भी नहीं है. हालांकि, उन्होंने काफी हद तक सही कहा था कि पंजाब में आतंकवाद लगभग साफ हो चुका है. हां, एक खतरा बना हुआ है और अलर्ट रहने की जरूरत बनी हुई है. लेकिन फिर भी, आर्मी चीफ को इस तरह के सार्वजनिक बयान नहीं देने चाहिए.

खैर, अच्छी बात यह रही है कि पंजाब की पुलिस एवं खुफिया एजेंसियां छोटे-मोटे हादसों को सुलझाने में सक्षम रही हैं. पाकिस्तान से सहयोग मिलने के बावजूद, खालिस्तानियों की इतनी हैसियत नहीं है कि वह इन छोटे-मोटे कायराना हमलों के अतिरिक्त, जनता के बड़े हिस्से पर बुरी नजर डाल सके.

(देवेश से बातचीत पर आधारित)

Next Article

Exit mobile version