वर्चुअल में रीयल कितना!

मुकुल श्रीवास्तव स्वतंत्र टिप्पणीकार sri.mukul@gmail.com उधर तुम चैट पर जल रही होती हो कभी हरी तो कभी पीली, और इधर वो तो बस लाल ही होता है. एप्स के बीच में फंसी जिंदगी! वो जाना चाहता था न जताना. वो जितने चैटिंग एप्स डाउनलोड करता, वो उससे उतनी ही दूर जा रही थी. अब मामला […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 22, 2018 7:41 AM

मुकुल श्रीवास्तव

स्वतंत्र टिप्पणीकार

sri.mukul@gmail.com

उधर तुम चैट पर जल रही होती हो कभी हरी तो कभी पीली, और इधर वो तो बस लाल ही होता है. एप्स के बीच में फंसी जिंदगी! वो जाना चाहता था न जताना. वो जितने चैटिंग एप्स डाउनलोड करता, वो उससे उतनी ही दूर जा रही थी. अब मामला ‘जी चैट’ बत्तियों के हरे और लाल होने का नहीं था. अब मसला जवाब मिलने और उसके लगातार ऑनलाइन रहने के बीच के फासले का था.

वो उसे अक्सर पोक करता, वो चुपचाप पोक मैसेज को डिलीट कर देती. स्मार्टफोन की कहानी और उसकी कहानी के बीच एक नयी कहानी पैदा हो रही थी, वो कहानी जो ‘जी चैट’ की हरी-लाल होती बत्तियों के बीच शुरू हुई और फेसबुक के लाइक, कमेंट में फलते-फूलते व्हाट्सएप के बीच कहीं दम तोड़ रही थी.

एक प्यारी सी लड़की जो अपने सस्ते से फोन में खुश रहा करती थी, उसकी उम्मीदों को पंख तब लगे, जब उसने, उसे एक स्मार्टफोन गिफ्ट किया. लैपटॉप की चैट से वो ऊब चुका था. वो तो चौबीस घंटे उससे कनेक्टेड रहना चाहता था. वो उसे महंगे गिफ्ट देने से डर रहा था. पता नहीं वो लेगी भी कि नहीं, अगर उसे बुरा लग गया तो! ये वर्चुअल इश्क रीयल भी हो पायेगा?

वो अक्सर सोचा करता. दोनों में कितना अंतर था. वो एकदम सीधा-सादा नीरस सा लड़का और वो जिंदगी की उमंगों से भरी लड़की, जो चीजों से जल्दी बोर हो जाती थी. आखिर, उसने हिम्मत करके उसको ऑनलाइन एक फोन गिफ्ट कर ही दिया. उसे फोन जैसे ही मिला, उसका एफबी स्टेटस अपडेट हुआ. ‘गॉट न्यू फोन फ्रॉम समवन स्पेशल’, और वो कहीं दूर बैठा उसके स्टेटस पर आने वाले कमेंट्स और लाइक को देखकर खुश हो रहा था.

अब उसके पास भी स्मार्टफोन था. उसे यकीन था, अब दोनों चौबीस घंटे कनेक्टेड रहेंगे- हमेशा के लिए. लेकिन अब वो पहले के एसएमएस की तरह, व्हाट्सएप पर लंबे–लंबे मैसेज नहीं लिखती थी. उसने स्माइली में जवाब देना शुरू कर दिया, रीयल अब वर्चुअल हो चला था.

वो कहता नहीं था और उसके पास सुनने का वक्त नहीं था. सुबह गुडमार्निंग का रूटीन सा एफबी मैसेज और शाम को गुडनाइट. दिनभर हरी और पीली होती हुई चैट की बत्तियों के बीच कोई जल रहा था, तो कोई बुझता जा रहा था. वो तो हार ही रहा था, पर वो भी क्या जीत रही थी?

क्या इस रिश्ते को साइनआउट करने का वक्त आ गया था, या ये सब रीयल नहीं महज वर्चुअल था. वो हमेशा इनविजिबल रहा करता था, वर्चुअल रियलिटी की तरह वो ‘जी टॉक’ पर इनविजिबल ही आया था और इनविजिबल ही विदा किया जा रहा था.

अब वो जवाब नहीं देती थी और जो जवाब आते, उनमें जवाब से ज्यादा सवाल खड़े होते. चैट की बत्तियां उसके लिए बंद की जा चुकी थीं, इशारा साफ था कि अब उसे जाना होगा. वर्चुअल रीयल नहीं हो सकता, सबक दिया जा चुका था.

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