भारतीय शिक्षा की ओर ध्यान दें

शिक्षा को भारतीय परंपरा में काफी ऊंचा कद दिया गया है और इसे जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र माना गया है जो सफलता से सार्थकता की ओर ले जाये. आज ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जरूरत है जो मानसिक विकारों को दूर करे और संतुलित विचार गढ़ने में सहयोग करे. मन की मलिनता दूर करे और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 17, 2014 7:03 AM

शिक्षा को भारतीय परंपरा में काफी ऊंचा कद दिया गया है और इसे जीवन का एक महत्वपूर्ण सूत्र माना गया है जो सफलता से सार्थकता की ओर ले जाये. आज ऐसी शिक्षा व्यवस्था की जरूरत है जो मानसिक विकारों को दूर करे और संतुलित विचार गढ़ने में सहयोग करे. मन की मलिनता दूर करे और चित्त की श्रृंखला व साम्यता को पुन: वापस लाये.

मनुष्य जीवन में सबसे प्रारंभिक उपलब्धि चारित्रिक दृढ़ता होनी चाहिए जो आज हाशिये पर है. चरित्र गठन पर शैक्षणिक तौर पर विशेष बल नहीं है. आज हर दिन अपराध, अनाचार और अत्याचार का दर बढ़ रहा है और इसका मुख्य कारण है चरित्र-दूषण. चारित्रिक मर्यादा में अटल और अविचल व्यक्ति ही गलत कामों से दूर रहेगा और रखेगा. भारत का शिक्षा-मंत्री इस बात पर अवश्य ध्यान दे कि विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में विद्या की ही तूती बोले न कि गंदी राजनीति, व्यभिचार, हुड़दंगी या सिर्फ डिग्री तक की सरोकार. सृजन और संरचना का समन्वय हो और आधुनिकता के नाम पर सिर्फ वृत्तिपरक अध्ययन और चित्त नहीं, अन्यथा आज भारत जो सामाजिक व्यभिचारों से आक्रांत है, इसमें कतई कमी नहीं आ सकती.

हम अगर मानव-निर्माण पर बल दें तो निश्चित तौर पर सभी समस्याओं का समाधान सुनिश्चित किया जा सकता है. मनुष्य अगर संवेदनशील न हो तो वह पशुवत आचरण करता है. आज की शिक्षा प्रणाली में मातृभाषा से जोड़ने की कोई कवायद नहीं दिखती जिससे बाल्यावस्था से ही बच्चे अपने पारंपरिक मूल्यों से और बहुमूल्य संस्कृति से दूर होता चला जाता है. शिक्षा को औद्योगीकरण से बचाना होगा और रसूख वालों की दास बन कर हमारी शिक्षण संस्थाएं न रहें, इसके लिए भी प्रयास करने होंगे.

मनोज आजिज, आदित्यपुर, जमशेदपुर

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