सद्भाव और शांति रहे
अयोध्या में राम मंदिर बनाने की मांग को लेकर पिछले कुछ दिनों से बयानों और आयोजनों का सिलसिला जारी है. एक तरफ शिव सेना इस मुद्दे पर सरकार को चुनौती दे रही है, तो दूसरी तरफ धार्मिक आयोजन के नाम पर विश्व हिंदू परिषद सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में […]
अयोध्या में राम मंदिर बनाने की मांग को लेकर पिछले कुछ दिनों से बयानों और आयोजनों का सिलसिला जारी है. एक तरफ शिव सेना इस मुद्दे पर सरकार को चुनौती दे रही है, तो दूसरी तरफ धार्मिक आयोजन के नाम पर विश्व हिंदू परिषद सरकार पर दबाव बनाने की कोशिश कर रही है. ऐसे में माहौल बिगड़ने की आशंकाएं स्वाभाविक ही हैं, हालांकि सरकार ने यह आश्वासन दिया है कि अयोध्या में हो रही जुटान को देखते हुए शांति-व्यवस्था बनाये रखने के पूरे इंतजाम हैं.
इस प्रकरण में सरकार, समाज और संबद्ध संगठनों को कुछ बातों पर विशेष ध्यान रखना चाहिए. सरकार के समक्ष किसी मांग को रखना हर नागरिक और संगठन का अधिकार है, लेकिन इस अधिकार को व्यवहार में बदलते हुए यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि यह आक्रामक, हिंसक या अवैध तौर-तरीके के साथ न हो. बहुत लंबे समय से अयोध्या का मसला कानूनी प्रक्रिया में तो है ही, हमारी राजनीतिक और सामाजिक वर्तमान को भी इससे अलग कर नहीं देखा जा सकता है. चूंकि यह मामला अदालत में है, इसलिए किसी भी तरह से यथा-स्थिति में बदलाव की कोशिश अनुचित भी होगी और खतरनाक भी.
सांप्रदायिक हिंसा की आग में हजारों लोग मारे जा चुके हैं और अरबों रुपये के कारोबार तबाह हो चुके हैं. सनद रहे, विभाजित करनेवाले और एक-दूसरे को शक की निगाह से देखनेवाले लोगों से हम अर्थव्यवस्था को मजबूत करने या देश को आगे ले जाने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं. हाल के वर्षों में हुए आर्थिक सुधारों ने निवेशकों का विश्वास बढ़ाया है. यदि सामाजिक सद्भाव बिगड़ता है और शांति को झटका लगता है, तो यह विश्वास टूट जायेगा. अयोध्या में हो रही गतिविधियों के आयोजकों को इसे समझना चाहिए.
साथ ही, सरकार को भी कानून के हिसाब से कड़ाई बरतने की जरूरत है. लेकिन समाज पर भी महती जिम्मेदारी है क्योंकि उसी का एक हिस्सा सांप्रदायिक हो सकता है और उसके अन्य हिस्सों को ही उसकी हरकतों का खामियाजा भुगतना पड़ेगा. सो, सद्भाव, सहकार और सहभाग को बनाने-बचाने का उत्तरदायित्व मात्र सरकार और नागरिक समाजों पर नहीं छोड़ा जा सकता है. इसके हर नागरिक को अपने स्तर पर सक्रिय होने की आवश्यकता है.
यह भी सोचा जाना चाहिए कि व्यक्ति और राष्ट्र के तौर पर हमारी प्राथमिकताएं क्या हैं तथा क्या होनी चाहिए. अयोध्या में जो हो रहा है, वह हमारी प्राथमिकताओं में क्योंकर होना चाहिए? हमारे सार्वजनिक विमर्श में क्या मुद्दों का ऐसा काल पड़ गया है कि हम कुछ अंतराल पर इसी मसले पर बात करते हैं और इसी को लेकर निरंतर जान-माल का नुकसान होता रहा है?
यह भी सोचा जाना चाहिए कि किसी मांग को सामने रखते हुए उन्माद का वातावरण बनाने की आवश्यकता क्यों होती है? राष्ट्रनिर्माताओं का संदेश और राष्ट्र के संकल्प का सार यह है कि समाज में सबसे अंतिम सीढ़ी पर खड़े व्यक्ति को समानता से जोड़ना देश सेवा है, बांटना और हिंसक व्यवहार अनैतिक और आपराधिक हैं.