और कितनी लापरवाह

हम दिन-प्रतिदिन लापरवाह हो रहे हैं. हम सोचते हैं कि थोड़ी लापरवाही से क्या होगा, मगर हम अल्पकालिक खुशी के लिए अपनों के साथ और इस वातावरण के बड़े हितों के साथ खिलवाड़ कर रहे है. बहुत-से शहरों में पहले से ही दम घुटने वाली हवा मौजूद है. फिर भी हमने बेतहाशा आतिशबाजी की और […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 29, 2018 12:19 AM
हम दिन-प्रतिदिन लापरवाह हो रहे हैं. हम सोचते हैं कि थोड़ी लापरवाही से क्या होगा, मगर हम अल्पकालिक खुशी के लिए अपनों के साथ और इस वातावरण के बड़े हितों के साथ खिलवाड़ कर रहे है.
बहुत-से शहरों में पहले से ही दम घुटने वाली हवा मौजूद है. फिर भी हमने बेतहाशा आतिशबाजी की और इस वातावरण को जानलेवा बना दिया. मालूम है कि हम आगे भी थमने वाले नहीं हैं.
अभी तो बड़ा दिन व नये साल का जश्न बाकी है और बिना आतिशबाजी का जश्न तो मनाया ही नहीं सकते, यह हमलोगों ने तय कर लिया है. ऐसा करते-सोचते वक्त हम यह भूल रहे हैं कि हमारे बीच बहुत सारे ऐसे लोग और बच्चे हैं, जो सांस की बीमारी से पहले से परेशान हैं.
कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अपने अध्ययनों के जरिए लगातार आगाह कर रही हैं कि हमारे वातावरण में मौजूद हवा अब सांस लेने लायक नहीं रह गयी है, फिर भी हम चेत नहीं रहे हैं. हमारा ऐसा जश्न आनेवाली पीढ़ी के लिए तो परोक्ष रूप से मौत की सौगात ही है.
अवधेश कुमार, कोलकाता

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