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डुगची की गैर राजनीतिक बातें

संतोष उत्सुक व्यंग्यकार santoshutsuk@gmail.com देश की पावन धरती पर कहीं भी चुनाव घोषित होते, हो रहे होते, हो चुके होते या परिणाम आ चुका होता है, तो वह मेरे दिमाग में घुस जाता है. क्षेत्र का बढ़िया स्कूटर मकैनिक राजू या मोहन न होकर डुगची क्यूं है, पता नहीं. डुगची बताता है कि वह भी […]

संतोष उत्सुक

व्यंग्यकार

santoshutsuk@gmail.com

देश की पावन धरती पर कहीं भी चुनाव घोषित होते, हो रहे होते, हो चुके होते या परिणाम आ चुका होता है, तो वह मेरे दिमाग में घुस जाता है. क्षेत्र का बढ़िया स्कूटर मकैनिक राजू या मोहन न होकर डुगची क्यूं है, पता नहीं. डुगची बताता है कि वह भी वोट डालना पसंद नहीं करता करोड़ों उदास ‘भारतीय’ व ‘अभारतीय’ मतदाताओं की तरह.

वह मानता है कि उसके एक वोट डालने या न डालने से कुछ नहीं संवरे या बिगड़ेगा. पिछले चुनाव में सत्तर लोगों ने उसे समझाया कि कभी एक वोट से हुई हार या जीत इतिहास लिख देती है, इस बार वोट जरूर देना, मगर छोटे-मोटे प्रलोभन भी डुगची का अटल इरादा नहीं बदल सके. वे प्रलोभन किसी और घर चले गये. उसकी वोट को नोट बनाने की कोशिश कई पार्टियों के जुझारू, ईमानदार, कर्मठ कार्यकर्ताओं ने की, मगर डुगची भी कम जुझारू, ईमानदार, कर्मठ नहीं.

स्कूटर ठीक करवाने गया, इस बार भी ‘लोकतांत्रिक’ सरकार बनने के बावजूद मुझे पुराना डुगची ही दिखा. रश नहीं था, तभी चाय का पुराना आग्रह स्वीकारा, कामकाज के बाद पूछा कहां के रहनेवाले हो डुगची. जवाब भारत मनोज कुमार का था, भारत का हूं सर. जानना चाहा, माता-पिता गांव में होंगे, जवाब फिर बिना पेच, पता नहीं कौन हैं हमारे मां-बाप.

यह नाम किसने रखा, पता नहीं, मैं ऊपर वाले का बच्चा हूं. मेरा नाम कईयों को अजीब लगा, बोले बकवास है बदलो. दिल ने समझाया नाम गजब है, पूरे देश में किसी का नहीं होगा, क्यूं बदलूं. कोई धर्म, जात, एरिया नहीं. कभी लगता हिंदू हूं फिर लगता थोड़ा मुसलमान भी हूं. कभी महसूस होता सिख जैसा हूं, थोड़ा ईसाई भी हूं.

पूछा एरिया से जो एमपी हैं इनके बारे क्या ख्याल है. सरजी तब से जानता हूं जब एमएलए भी नहीं थे. हम जैसे कितनों ने रात-दिन एक करके जिताया मगर एमएलए होकर जरा सा काम नहीं करवाये.

उस दिन पहचान वाले के अनजान गांव में उनके किसी रिश्तेदार का स्कूटर ठीक करने अपना स्कूटर लेकर गया. सड़क टूटी, वापसी में अंधेरे में स्कूटर खड़ा करते पता नहीं चला और ढांक से नीचे गिर गया. फोन पर एमएलए हो चुके जनाब ने पहचाना नहीं. समझाया जब आप एमएलए नहीं थे दुकान के पास छोटे मकान में थे, हमने काम छोड़ कर प्रचार किया, अपने ग्राहकों को भी कहा. तो बोले, क्या चाहते हो.

कहा स्कूटर के पास रात रुकना मुश्किल है. कोई चुरा न ले, पुलिसवाले की डयूटी लगवा दें. पहिए की तरह बात को घुमाया बोले, पुलिस इसलिए नहीं होती. मुझे रात भर वहीं रहना पड़ा सुबह अनजान ट्रक ड्राइवर ने मदद की. एक दिन एमपी, जब आम आदमी थे स्कूटर पर बिना हैल्मेट पकड़े गये. जेब में फटा हुआ नोट न था.

हमने पुलिस में पहचान निकाल बचाया. ऐसे, ‘मैले लुच्चे आदमी’ पर कीमती वोट तो क्या टायर का टुकड़ा भी वेस्ट न करूं. क्या डुगची ने ‘एमएलए’ को ‘मैले… और ‘एमपी’ को ‘महापा…’ कहा. उसकी बातें नाम की तरह निराली हैं.

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