चूंकि तेल ऊर्जा का अहम स्रोत है, इसलिए उसकी कीमत का सीधा संबंध अर्थव्यवस्थाओं की हलचल से है. कुछ महीने पहले यह अंदेशा था कि कच्चे तेल की कीमत सौ डॉलर प्रति बैरल की सीमा पार कर जायेगी, पर अब इसके 50 डॉलर के आसपास आने की उम्मीद की जा रही है.
निश्चित रूप से चीन, भारत, दक्षिण अफ्रीका जैसे बड़े आयातक देशों को इससे राहत मिलेगी और ब्याज दरें बढ़ाने और मजबूत डॉलर के दबाव से केंद्रीय बैंकों को भी आराम मिलेगा. हालांकि, दाम कम होने का बड़ा कारण सऊदी अरब का जोरदार उत्पादन है, लेकिन उसे और रूस को कुछ नुकसान भी संभावित है. अब यह शुक्रवार को अर्जेंटीना में जी-20 और अगले सप्ताह तेल निर्यातक देशों की ऑस्ट्रिया में होनेवाली बैठकों का मुख्य मुद्दा होगा. अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप इन देशों से लगातार कीमत घटाने की मांग कर रहे हैं, तो सऊदी अरब और रूस दाम के गिरते सिलसिले को रोकने की जुगत में हैं. अमेरिकी संरक्षणवाद, व्यापार युद्ध, घटती मांग, राजनीतिक तनातनी आदि कारणों से वैश्विक अर्थव्यवस्था में अस्थिरता है.
भारत को देखें, तो तेल सस्ता होने से मुद्रास्फीति और व्यापार घाटा की चुनौती का सामना करने में आसानी होगी. लेकिन, एक बड़ा सवाल यह है कि क्या कच्चे तेल के घटते दाम का फायदा उसी अनुपात में खुदरा खरीदारों को भी मिल सकेगा. बीते दिनों में हमारे देश में पेट्रोल और डीजल की कीमतों में 10-11 फीसदी की कमी हुई है, पर कच्चे तेल की कीमतें करीब एक-तिहाई कम हुई हैं.
जानकारों की राय है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल के दाम में उतार-चढ़ाव तथा आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर सरकार संतुलन के साथ फैसले लेना चाहती है.
यह भी उल्लेखनीय है कि खुदरा मूल्य तो रोजाना तय होते हैं, पर यह पिछले 15 दिनों के औसत मूल्य के आधार पर किया जाता है. वित्त मंंत्री अरुण जेटली ने कहा है कि जीएसटी काउंसिल की आगामी बैठक में तेल उत्पादों को इसके दायरे में लाने पर चर्चा हो सकती है. यदि जीएसटी प्रणाली पेट्रोल और डीजल पर लागू होती है, इसका असर भी खुदरा दाम पर होगा.
ईरान पर अमेरिकी प्रतिबंधों और भारत को मिलनेवाली छूट के नतीजे कुछ समय बाद ही दिखेंगे. इस हालत में अभी खुदरा दामों में बड़ी कटौती की संभावना नहीं है. यह भी फिलहाल कह पाना मुमकिन नहीं है कि कच्चे तेल की कीमतें आगामी दिनों में किस स्तर पर पहुंचती है. वैश्विक राजनीति और वाणिज्य के अपने समीकरण होते हैं. यह भी हो सकता है कि कुछ तनातनी बढ़ जाये और कीमतें फिर बढ़ने लगें.
एक आयाम यह है कि 2020 से सरकारी तेल शोधक संयंत्रों द्वारा स्वच्छ ईंधन की आपूर्ति का सिलसिला शुरू होना है. ऐसे में कुछ समय के लिए शोधित तेल का आयात भी करना पड़ सकता है या इस कमी की आपूर्ति निजी शोधन संयत्रों से होगी. इससे भी कीमतें बढ़ सकती हैं. सो, अभी तेल और तेल की धार पर नजर रखने का ही विकल्प है.