झारखंड के 18 वर्ष
झारखंड जब बिहार से अलग होकर अस्तित्व में आया, तब से खुद न तो स्थिर रह पाया और न ही विकास को उचित मार्ग दे पाया. किंतु हर वर्ष स्थापना दिवस समारोह अवश्य मनाया जाता रहा. इस वर्ष स्थापना दिवस की शोभा बढ़ाने में सबसे पहले महिला सम्मान की बात हुई और रसोइया का काम […]
झारखंड जब बिहार से अलग होकर अस्तित्व में आया, तब से खुद न तो स्थिर रह पाया और न ही विकास को उचित मार्ग दे पाया. किंतु हर वर्ष स्थापना दिवस समारोह अवश्य मनाया जाता रहा. इस वर्ष स्थापना दिवस की शोभा बढ़ाने में सबसे पहले महिला सम्मान की बात हुई और रसोइया का काम कर बच्चों के शरीर में ऊर्जा भरने वाली माताओं पर पुलिसिया ताकत की आजमाइश हुई.
बालकों में बुद्धि का संचार करने वाले गुरुजी को डंडों से पीटा गया. इतना ही नहीं पुलिसिया रौब से उन्हें गिरफ्तार किया गया. युवाओं के द्वारा मुर्दाबाद और होश में आओ, के नारों के बीच समारोह का समापन हुआ. लोकतंत्र का चौथा स्तंभ भी हिल गया. पत्रकारों को भी सौगात मिली. विकास के नाम पर पता चला की सड़क बनना, बिजली का उत्पादन बढ़ाना, मुफ्त में अनाज और सामानों पर सब्सिडी देना ही विकास है.
क्या सड़कें, बिजली और मुफ्त अनाज से कोई समाज, राज्य या देश किसी मामले में समृद्ध हो सकता है? जिस राज्य में युवा बेरोजगार, वृद्ध बीमार, महिलाएं लाचार उस राज्य की सड़कें चमका दी जायें, मुफ्त में कुछ अनाज बटवा दिये जायें और कुछ सामानों पर सब्सिडी दे दी जाये, तो उसे विकास माना जायेगा? शायद जवाब नहीं में मिले. यह विकास है ही नहीं.
संतोष कुमार झा, देवघर