स्वास्थ्य पर ध्यान

तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत उन देशों में शामिल है, जो स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 2025 तक इस खर्च को 2.5 फीसदी तक बढ़ा दिया जायेगा. सार्वजनिक स्वास्थ्य के मद में हमारा देश अभी अपने कुल घरेलू उत्पादन का करीब एक […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 14, 2018 12:50 AM

तेज गति से बढ़ती अर्थव्यवस्था होने के बावजूद भारत उन देशों में शामिल है, जो स्वास्थ्य पर सबसे कम खर्च करते हैं. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि 2025 तक इस खर्च को 2.5 फीसदी तक बढ़ा दिया जायेगा.

सार्वजनिक स्वास्थ्य के मद में हमारा देश अभी अपने कुल घरेलू उत्पादन का करीब एक फीसदी हिस्सा ही खर्च करता है, जबकि ब्रिटेन, अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी और नॉर्वे जैसे अनेक विकसित देशों में यह आंकड़ा सात से नौ फीसदी के बीच है. भारत से कहीं अधिक खर्च पड़ोसी देश और कमतर अर्थव्यवस्था के देश करते हैं. जून में सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रोफाइल में बताया गया था कि हर नागरिक पर इस मद में सरकारी खर्च 1,112 रुपया सालाना यानी महज तीन रुपया रोजाना है.

यह आंकड़ा 2015-16 के अध्ययन पर आधारित है और इसमें 2009-10 के 621 रुपये प्रति व्यक्ति खर्च से कुछ बढ़ोतरी हुई है. सरकार ने आयुष्मान भारत योजना के तहत हर गरीब परिवार को पांच लाख बीमा देने का अभियान शुरू किया है, जिससे 50 करोड़ से अधिक लोगों को राहत मिलने की संभावना है. साल 2016-17 में लगभग 43 करोड़ लोग (34 फीसदी आबादी) ही बीमित थे.

यदि नयी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू किया गया तथा केंद्र, राज्य सरकारों और अस्पतालों के बीच समुचित तालमेल रहा, तो उपचार के लिए लोगों की जेब से दबाव कम हो जायेगा. वर्ष 2017 में विश्व स्वास्थ्य संगठन के अध्ययन में जानकारी दी गयी थी कि भारत में लोगों को उपचार के खर्च का करीब 68 फीसदी हिस्सा खुद देना पड़ता है. इस संदर्भ में वैश्विक औसत सिर्फ 18.02 फीसदी है.

हमारे देश की आबादी का बहुत बड़ा हिस्सा या तो गरीब है या फिर निम्न आयवर्ग से आता है. बीमारी और कुपोषण का कहर ऐसा है कि उपचार के खर्च की वजह से हर साल साढ़े चार करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे आ जाते हैं. सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा न के बराबर निवेश के कारण बदहाल है और ग्रामीण इलाकों में प्राथमिक उपचार केंद्र समुचित संख्या में नहीं हैं.

ऐसे में रोगी को निजी अस्पतालों की शरण में जाना पड़ता है, जहां उपचार के लिए मनमाने ढंग से पैसा वसूला जाता है. स्वास्थ्य केंद्रों के न होने और महंगे उपचार के कारण लोग शुरू में ही बीमारी की जांच नहीं कराते हैं और बाद में यह गंभीर हो जाती है. ऐसे में बीमा योजनाओं के साथ बुनियादी ढांचे को विकसित करने तथा समूची स्वास्थ्य सेवा को नियमन के दायरे में लाने की दिशा में भी पहलकदमी की जरूरत है.

जन आरोग्य, मिशन इंद्रधनुष, बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम जैसी सरकारी योजनाएं सकारात्मक पहल हैं और 2022 तक डेढ़ लाख स्वास्थ्य केंद्र खोलने का लक्ष्य भी सराहनीय है, पर कुल घरेलू उत्पादन के दो फीसदी हिस्से को स्वास्थ्य में लगाने का 2010 का लक्ष्य भी अभी तक पूरा नहीं हो सका है. राष्ट्रीय भविष्य की बेहतरी के लिए स्वास्थ्य को शासकीय प्राथमिकता बनाने की त्वरित आवश्यकता है.

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