लीडर छुट्टन ठेलेवाले

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com सर्दी का जीवन में घणा दार्शनिक महत्व है. जो धूप गर्मी में दुश्मन मालूम होती है, वही धूप सर्दी में खास दोस्त लगती है. कोई रिश्ता परमानेंट नहीं है. जो आज दोस्त है, वही कुछ महीने बाद दुश्मन टाइप लग सकता है. भाजपा और शिवसेना के रिश्ते इस मामले में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2018 6:54 AM

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

puranika@gmail.com

सर्दी का जीवन में घणा दार्शनिक महत्व है. जो धूप गर्मी में दुश्मन मालूम होती है, वही धूप सर्दी में खास दोस्त लगती है. कोई रिश्ता परमानेंट नहीं है. जो आज दोस्त है, वही कुछ महीने बाद दुश्मन टाइप लग सकता है. भाजपा और शिवसेना के रिश्ते इस मामले में अपवाद हैं, वे हर मिनट दोस्त होते हैं और उसी मिनट दुश्मन होते हैं.

सर्दी में कई लोगों का काम करने का मन नहीं करता, गर्मी में कई लोगों से काम होता नहीं है, बरसात तो काम करने का मौसम ही नहीं है- इस महान विचार के कई लोग इस मुल्क में पाये जाते हैं. इसलिए कई लोग इस मुल्क में कुछ काम नहीं करते हैं, जो कुछ काम न करते, वे लेखक टाइप मान लिये जाते हैं.

सर्दी का महत्व मूंगफली चिंतन में है. मूंगफली से हमें इस देश में चलनेवाले बौद्धिक विमर्शों का पता चलता है. वड्डा सा आवरण, फिर छिलके और फिर निकलती है बहुत छोटी सी मूंगफली और कई बार वह भी सड़ी हुई बेस्वाद.

कई बौद्धिक विमर्श भी इसी टाइप के होते हैं. वड्डा झाल-झमेला, फूं-फां, आखिर में कुछ नहीं निकलता, कई सेमिनारों की उपलब्धि सिर्फ यह होती है कि वहां लंच में पनीर की सब्जी बहुतै टेस्टी बनी थी और वहां से जो बैग मिला था, वह बहुत मजबूत था. बंदा सेमिनार में मजबूत विचार हासिल करने के लिए जाता है, पर वहां से मजबूत बैग लेकर खुश लौटता है.

हाल सभी जगह एक-सा है, बंदा जिस नेता से सेकुलर मूल्यों की उम्मीद करता है, वह दारू का अद्धा बांटने लगता है.

खैर, सर्दी में मूंगफली खानेवाले लगातार चलनेवाले बौद्धिक विमर्शों और सेमिनारों की हकीकतों से वाकिफ रहते हैं और वे कमजोर विचार और कमजोर बैगों की क्वालिटी पर दुखी ना होते, समझ लेते हैं कि अकसर वड्डी सी दिखनेवाली मूंगफली में अंदर बहुत ही टुन्नी सी खराब मूंगफली का दाना बरामद होता है.

सर्दी में हमें फ्लेक्सिबिलिटी का पता चलता है और सफलता में फ्लेक्सिबिलिटी का क्या महत्व है, इसका अंदाज होता है. छुट्टन ठेलेवाले के टाप पर दर्ज होता है, छुट्टन कुल्फीवाला और नीचे की साइड लिखा होता है- छुट्टन चाट भंडार. छुट्टन सर्दी के महीनों में चाट बेचने लगता है, बाकी के महीनों में कुल्फी बेचता है. चाट से कुल्फी तक जाता रहता है छुट्टन, जैसे हमारे कई नेता राष्ट्रवादिता से सेकुलरत्व की तरफ निकल लेते हैं मौका-मुकाम देखकर.

धंधा फ्लेक्सिबल होना चाहिए. जिस ठेले पर एक मौसम में चाट बेचो, उसी ठेले पर कुल्फी बेचने की तैयारी होनी चाहिए. जिस ठेले पर एक मौसम में राष्ट्रवाद बेचो, उसी ठेले से अगले मौसम में सेकुलरत्व बेचने की कला आ जाये, तो बंदे का धंधा बराबर चलता है.

हमारे कई नेता इस मामले में छुट्टन ठेलेवाले हैं, मौका देखकर फ्लेक्सिबल हो जाते हैं. छुट्टन जब मेच्योर्ड हो जायेगा, एक दिन सेकुलर टाइप नेता बन जायेगा, ऐसा हम सर्दी के मौसम में छुट्टन को चाट बेचते देखकर सोच सकते हैं. सर्दी अपार संभावनाओं वाला सीजन है.

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