21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

करदाता बढ़ाये जाएं

अनेक जाने-माने अर्थशास्त्रियों ने कर आधार बढ़ाने पर जोर दिया है. समुचित राजस्व के अभाव में सरकार को खर्च में कटौती करना पड़ता है, जिसका सीधा असर कल्याणकारी और विकास योजनाओं पर पड़ता है. इन विद्वानों ने यह भी सुझाव दिया है कि खर्च के मदों का चुनाव सोच-समझ करने के साथ वित्तीय घाटा कम […]

अनेक जाने-माने अर्थशास्त्रियों ने कर आधार बढ़ाने पर जोर दिया है. समुचित राजस्व के अभाव में सरकार को खर्च में कटौती करना पड़ता है, जिसका सीधा असर कल्याणकारी और विकास योजनाओं पर पड़ता है.

इन विद्वानों ने यह भी सुझाव दिया है कि खर्च के मदों का चुनाव सोच-समझ करने के साथ वित्तीय घाटा कम करने पर ध्यान दिया जाना चाहिए. सुधारों की दिशा के बारे में सलाह देने का यह प्रयास रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष की चयनित मुख्य अर्थशास्त्री गीता गोपीनाथ की पहल पर हुआ है. हालांकि कम दर से आमदनी बढ़ने और इसमें विषमता की चुनौती है, परंतु भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास के साथ कराधान का दायरा भी बढ़ रहा है. पिछले वित्त वर्ष में करीब एक करोड़ नये लोगों ने अपनी आय का ब्योरा दिया था, जो 2016-17 की तुलना में 26 फीसदी ज्यादा था.

इस कारण सरकार प्रत्यक्ष करों की वसूली का लक्ष्य पूरा कर सकी थी. वर्ष 2016-17 में भी 85 लाख से अधिक नये लोगों ने आयकर विवरण भरा था. बीते चार वर्षों में निरंतर बढ़त का परिणाम यह है कि ब्योरा देनेवालों लोगों की संख्या अब 6.84 करोड़ हो गयी है, जो 2013-14 में 3.79 करोड़ थी. इन आंकड़ों से इंगित होता है कि ऐसे लोगों की संख्या बढ़ी है, जो कर देने के इच्छुक हैं और आयकर विभाग भी उन्हें प्रोत्साहित करने की लगातार कोशिश कर रहा है.

चालू वित्त वर्ष की पहली छमाही यानी अप्रैल से सितंबर के बीच वास्तविक प्रत्यक्ष कर वसूली में 14 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है, जिससे बजट घाटे का दबाव कम करने में मदद मिली है. वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) प्रणाली के सकारात्मक परिणाम भी सामने हैं. पिछले साल जुलाई में यह व्यवस्था शुरू हुई थी और पहले ही साल में अप्रत्यक्ष कर का ब्योरा देनेवालों की संख्या में 74 फीसदी की बड़ी बढ़त हुई है. प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर संरचना में बेहतरी और बदलाव से ये नतीजे सामने आये हैं. तमाम कमियों के बावजूद नोटबंदी से अर्थव्यवस्था का औपचारिक तंत्र सुदृढ़ और संगठित हुआ है तथा देश की आबादी का बड़ा हिस्सा आज बैंकिंग सेवाओं से जुड़ा है.

नोटबंदी और दिवालिया कानून से एक नैतिक वित्तीय माहौल बनाने भी सहायता मिली है, पर प्रत्यक्ष कर वसूली कुल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) के छह फीसदी से भी कम है और आबादी का तीन फीसदी से भी कम हिस्सा ब्योरा देता है. कम आमदनी भी एक समस्या है.

दो साल पहले के नेशनल सैंपल सर्वे अध्ययन के मुताबिक, सबसे धनी 20 फीसदी आबादी की औसत आय 95 हजार सालाना है. तो, इसका बड़ा भाग आयकर दायरे से बाहर है. हमारे देश में संपत्ति कर वसूली जीडीपी का मात्र 0.2 फीसदी है, जबकि विकासशील देशों में लगभग 0.7 और विकसित देशों में दो फीसदी है. इस पहलू पर विचार होना चाहिए तथा आमदनी और रोजगार बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें