भिखारी ठाकुर के तराने

चंदन तिवारी लोक गायिका chandan.tiwari59@gmail.com आज 18 दिसंबर है. आज भिखारी ठाकुर की जयंती है. हर साल ही आता है यह दिन, हर साल ही हम याद करते हैं भिखारी ठाकुर को. आयोजन करते हैं, जश्न मनाते हैं, स्मरण करते हैं, उनके गीत गाते हैं, नाटक खेलते हैं, कुछ बड़ी-बड़ी बातें भी कर लेते हैं. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 17, 2018 11:48 PM
चंदन तिवारी
लोक गायिका
chandan.tiwari59@gmail.com
आज 18 दिसंबर है. आज भिखारी ठाकुर की जयंती है. हर साल ही आता है यह दिन, हर साल ही हम याद करते हैं भिखारी ठाकुर को. आयोजन करते हैं, जश्न मनाते हैं, स्मरण करते हैं, उनके गीत गाते हैं, नाटक खेलते हैं, कुछ बड़ी-बड़ी बातें भी कर लेते हैं. नायक, महानायक, ​भोजपुरी के सबसे बड़े रचनाकार, नाटककार, गीतकार इत्यादि का संबोधन खूब करते हैं.
सभी जगह ऐसा नहीं होता और न ही सब ऐसा करते हैं. कुछ लोग हैं, जो लगातार ​उनके कामों को आगे बढ़ाने में लगे हुए हैं. बिना जयंती, बिना पुण्यतिथि, बिना किसी खास अवसर, बारहमासा वे भिखारी ठाकुर के कृतित्व पर काम करते हैं. ऐसे कुछ लोग हमेशा ही भिखारी ठाकुर को लेकर पैशनेट रहे हैं.
उनके जीवनकाल से ही और बाद के दिनों में भी. उसका असर दिखा है, फलाफल निकलता रहा है. ऐसे चंद लोग ही हैं, लेकिन भिखारी ठाकुर के कामों को आगे बढ़ाने के प्रति उनका समर्पण गजब का है. जो अवसरी आयोजन होते हैं, उसमें भी कोई गलत बात नहीं.
होना ही चाहिए. आखिर अपने नायक को हम याद नहीं करेंगे, अपने गौरवबोध से जोड़कर नहीं देखेंगे, अपनी सांस्कृतिक पहचान के तौर पर स्थापित नहीं करेंगे, तो फिर कौन करेगा?
सवाल यह है कि जब हमलोग हर साल इतने धूमधाम से, इतनी संख्या में, इतनी जगहों पर भिखारी ठाकुर के नाम पर आयोजन कर रहे हैं, हर साल आयोजन की संख्या बढ़ाते ही जा रहे हैं, उनके नाम पर पुरस्कार, सम्मान आदि की संख्या भी बढ़ा रहे हैं, तो फिर भोजपुरी लोकसंगीत में भिखारी की परछाई भी उतनी ही मजबूती से स्थापित क्यों नहीं हो रही है?
भिखारी ठाकुर की परछाई का मतलब यह कतई नहीं कि उनके गीत ज्यादा क्यों नहीं गाये जा रहे? भिखारी ठाकुर महज गीतकार, नाटककार, कलाकार भर नहीं रह गये हैं. अब भोजपुरी दुनिया में उनके गीत को गा देना, उनके नाटक को मंचित कर देना काफी नहीं है. कई बड़े, प्रतिष्ठित और राह बनानेवाले कलाकार हैं भोजपुरी संगीत की दुनिया में.
उन्होंने भिखारी ठाकुर के कम गीत गाये. न के बराबर गाये, लेकिन वे भोजपुरी गायकी के पर्याय बने. उन्हें भिखारी ठाकुर की परंपरा का वाहक माना जाता है.
भिखारी ठाकुर को याद करने का मतलब उनकी परंपरा को आगे बढ़ाना है. अगर भिखारी ठाकुर को हम लगातार बड़े होते और बढ़ते आयोजनों के जरिये याद करने का सिलसिला बढ़ा रहे हैं, तो फिर कम-से-कम यह तय ही हो जाना चाहिए कि भोजपुरी को स्त्री के देहनोचवा गीत-संगीत से मुक्ति मिलेगी. भिखारी इसी परंपरा के तो वाहक थे.
अपने पूरे जीवन, नाटकों, नाटकों से इतर स्वतंत्र तरानों को रचकर मूल रूप से वे दो ही काम तो कर रहे थे. एक स्त्री के तन की बजाय मन की परिधि को बड़ा कर रहे थे. उसकी इच्छा-आकांक्षा को स्वर दे रहे थे. दूसरे यह कि धार्मिक रचनाओं को रचकर देवताओं को लोक की परिधि में ला रहे थे. आम जन से जोड़ रहे थे.

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