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ई-कॉमर्स का नियमन

भारतीय बाजार में ई-कॉमर्स के तेज विस्तार के साथ समुचित नियमन की जरूरत भी बढ़ी है. इस दिशा में केंद्र सरकार ने कुछ महीने पहले नीतिगत पहल करते हुए एक प्रस्ताव तैयार किया था, पर किन्हीं कारणों से उस पर चर्चा थम गयी थी. अब सरकार फिर से सक्रिय हो रही है और उसका जोर […]

भारतीय बाजार में ई-कॉमर्स के तेज विस्तार के साथ समुचित नियमन की जरूरत भी बढ़ी है. इस दिशा में केंद्र सरकार ने कुछ महीने पहले नीतिगत पहल करते हुए एक प्रस्ताव तैयार किया था, पर किन्हीं कारणों से उस पर चर्चा थम गयी थी. अब सरकार फिर से सक्रिय हो रही है और उसका जोर ई-कॉमर्स वेबसाइटों द्वारा भारी छूट देकर ग्राहकों को लुभाने की कोशिशों पर लगाम कसने पर है.
इसमें दो राय नहीं है कि कुछ प्रमुख कंपनियों के पास अकूत निवेश है और वे बाजार पर ठोस पकड़ बनाने के इरादे से लंबे समय तक घाटा बर्दाश्त करने की क्षमता रखती हैं. इसका नतीजा यह है कि छोटी वेबसाइटें या तो बंद हो जा रही हैं या फिर उन्हें मजबूरन बड़ी कंपनियों के साथ विलय करना पड़ रहा है.
सरकार ने अपने प्रारूप में रेखांकित किया है कि 2022 तक हमारे देश में डिजिटल अर्थव्यवस्था का कारोबार करीब एक ट्रिलियन डॉलर का हो जायेगा और 2030 तक समूची अर्थव्यवस्था में इसकी हिस्सेदारी 50 फीसदी तक पहुंच सकती है. कुछ आकलनों के अनुसार, 2020 तक विश्व के सकल घरेलू उत्पादन का 15 से 20 फीसदी भाग डेटा आवागमन पर आधारित होगा.
साल 2020 तक ई-कॉमर्स के जरिये खरीदारी करनेवाले भारतीयों की तादाद 33 करोड़ होने का अनुमान है. ऐसे में व्यावसायिक होड़ स्वाभाविक है. इस होड़ की गाज छोटी वेबसाइटों के साथ देशभर में फैले लाखों दुकानों पर भी गिर रही है.
इन चिंताओं की अनदेखी करना अर्थव्यवस्था के लिए नुकसानदेह हो सकता है. अनेक बड़ी ई-कॉमर्स कंपनियों का मुख्यालय देश के बाहर है, जहां लेन-देन और खरीद-बिक्री से संबंधित संवेदनशील डेटा का संग्रहण होता है. इस डेटा को देश में ही संग्रहित कर उसकी सुरक्षा सुनिश्चित करना तथा उनके बेजा इस्तेमाल को रोकना भी सरकार के एजेंडे में है तथा प्रारूप में नियमों का उल्लेख है.
इसमें विदेशी कंपनियों के स्रोत कोड के लेखा, रुपे के इस्तेमाल और जन-धन खातों के जरिये भुगतान का भी प्रस्ताव है. हालांकि, अनेक कंपनियां इन प्रस्तावों से संतुष्ट नहीं हैं, पर बातचीत से बेहतर समाधान निकलने की उम्मीद है.
इसका एक कारण यह भी है कि ई-कॉमर्स के वैश्विक नियमन को लेकर विश्व व्यापार संगठन की आगामी बैठक में चर्चा संभावित है. डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के स्टार्ट अप को बढ़ावा देने के लिए भी ऐसे कायदे जरूरी हैं, ताकि धनी कंपनियों के साथ वे स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा कर सकें.
पारंपरिक दुकानों को नोटबंदी और जीएसटी जैसे कदमों से भी झटका लगा है और उन्हें कई शहरों में फैले बड़े खुदरा दुकानों से भी मुकाबला करना पड़ रहा है. एक रुझान यह भी है कि कुछ बड़ी खुदरा दुकानों ने ई-कॉमर्स कंपनियों से साझेदारी कर रही हैं.
दूसरी तरफ स्मार्ट फोन और इंटरनेट का व्यापक प्रसार हो रहा है. इस स्थिति में सभी कारोबारियों के हितों की रक्षा के लिए नीतियों की दरकार है और सरकार को इस संदर्भ में जल्दी फैसला लेना चाहिए.

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