डॉ अश्वनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
पाकिस्तान पिछले लंबे समय से आर्थिक संकटों से गुजर रहा है, जो उसकी आर्थिक संप्रभुता के लिए भी खतरा बन रहा है. पिछले काफी समय से चीन से उसका उधार बढ़ता जा रहा है, जिसे चुका सकने की क्षमता भी इसमें बची नहीं है. अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आइएमएफ) का दरवाजा खटखटाया है. आइएमएफ सदैव की भांति अपनी शर्तें पाकिस्तान पर लादना चाहता है और शायद पाकिस्तान ने उसकी शर्तें मान भी ली हैं, जिसके कारण नये प्रधानमंत्री इमरान खान अपने विपक्षियों की आलोचना का शिकार भी हो रहे हैं.
पाकिस्तानी रुपया हमेशा से ही भारतीय रुपये से कमजोर रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में भारतीय रुपये के मुकाबले पाकिस्तानी रुपया काफी अधिक कमजोर हो गया है. गौरतलब है कि वर्ष 2007 में एक डॉलर लगभग 65 पाकिस्तानी रुपये के बराबर होता था, दिसंबर 2017 तक यह 106 रुपये प्रति डॉलर था और तब से पांच बार अवमूल्यन के बाद आज यह 139 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया है. यानी आज एक भारतीय रुपये के बराबर दो पाकिस्तानी रुपये हैं.
पाकिस्तानी रुपये की यह बदहाली पाकिस्तान के बढ़ते व्यापार व भुगतान शेष घाटे के कारण हुई है. पिछले काफी समय से भारी व्यापार घाटे व भुगतान शेष घाटे के कारण पाकिस्तान का विदेशी मुद्रा भंडार संकट में है और अब तो यह ऋणात्मक दो अरब डॉलर तक पहुंच गया है. आज पाकिस्तान अपने पुराने विदेशी कर्ज को चुकाने की भी स्थिति में नहीं है. चीन अरसे से पाकिस्तान में कई इंफ्रास्ट्रक्चर परियोजनाओं पर काम कर रहा है. इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण से जुड़े आयातों के बढ़ने से ही उसके भुगतान शेष की समस्या आयी है. पाकिस्तान पर चीन का कर्ज बढ़ता जा रहा है.
यह तो सर्वविदित है कि आइएमएफ जब भी किसी देश को उधार देता है, तो उसके साथ कई शर्तें भी जुड़ी होती हैं. पाकिस्तानी रुपये का अवमूल्यन उसकी शर्तों को पूरा करने के लिए ही किया जा रहा है. हालांकि, पाक सरकार कह रही है कि वह आइएमएफ से ऋण लेने के अलावा अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है और हाल ही में उसे सऊदी अरब से एक अरब डॉलर का ऋण प्राप्त हो चुका है.
मामला मात्र पाकिस्तानी रुपये के अवमूल्यन का ही नहीं है, बल्कि लगातार बढ़ती हुई महंगाई का भी है. ताजा आंकड़ों के अनुसार, अक्तूबर तक पाकिस्तान में महंगाई की दर 7.6 प्रतिशत तक पहुंच चुकी थी. आइएमएफ की मानें, तो अगले साल जून तक महंगाई की यह दर 14 प्रतिशत तक पहुंच सकती है. पिछले काफी समय से पाकिस्तान में नीतिगत ब्याज दर भी लगातार बढ़ रही है और इस बार भी उसमें एक प्रतिशत वृद्धि होने की अपेक्षा है. आइएमएफ का कहना है कि अगले साल के मध्य तक पाकिस्तान में ब्याज दर 15 प्रतिशत तक पहुंच सकती है. इसका मतलब यह होगा कि पाकिस्तान में जीडीपी की ग्रोथ बहुत घट जायेगी. अभी जीडीपी की ग्रोथ मात्र 3 प्रतिशत ही है. यानी एक तरफ बढ़ती महंगाई और दूसरी तरफ ग्रोथ की नीची दर, लगातार बढ़ता व्यापार और भुगतान शेष घाटा, सब पाकिस्तान की मुश्किलें बढ़ाते जा रहे हैं.
हालांकि, पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इस वादे पर प्रधानमंत्री चुनकर आये थे कि वे भ्रष्टाचारी अफसरों द्वारा विदेशों में रखे कालेधन को वापस लायेंगे और कल्याणकारी योजनाओं को लागू करेंगे. मित्र राष्ट्रों से ऋण लेने में तो उन्हें कोई समस्या नहीं है, लेकिन यदि वे आइएमएफ से ऋण लेने का फैसला करते हैं, तो उन्हें आइएमएफ की शर्तों को मानना पड़ेगा. आइएमएफ की शर्तों में सबसे पहली शर्त यह होती है कि सरकारी खर्चों में किफायत की जाये और राजकोषीय घाटे पर काबू किया जाये.
दूसरी शर्त होती है करेंसी का अवमूल्यन. स्वाभाविक तौर पर इमरान इन शर्तों के लिए स्वेच्छा से तैयार नहीं होंगे, क्योंकि ऋण लेते ही उनके खर्चों पर लगाम लग जायेगी. विडंबना यह भी है कि उनको मित्र राष्ट्रों- चीन और सऊदी अरब से कोई विशेष मदद नहीं मिल रही. ऐसे में उनके पास आइएमएफ से ऋण लेने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है. उससे ऋण लेने पर पाकिस्तान को तुरंत दो फैसले करने होंगे- एक, अपनी करेंसी का ज्यादा अवमूल्यन और दूसरा, अपने खर्चों पर अंकुश. बढ़ती महंगाई के चलते उन्हें ब्याज दर में भी वृद्धि करनी पड़ेगी, जिससे पाकिस्तान का विकास भी बाधित होगा.
पिछले कालखंड में सेना के दबाव, भारी भ्रष्टाचार और चीन के आगे घुटने टेकते हुए इंफ्रास्ट्रक्चर के निर्माण के नाम पर बढ़ते कर्ज के चलते आज का पाकिस्तान संकट के भंवर में फंस चुका है और आर्थिक रूप से पाकिस्तानी हुक्मरानों के हाथ-पैर बंध चुके हैं. विदेशी कर्ज की अदायगी में कोताही का खतरा, विदेशी मुद्रा का संकट, खर्चों पर लगाम, करेंसी का लगातार अवमूल्यन, बढ़ती महंगाई आदि सभी पाकिस्तान की आवाम के लिए खतरे की घंटी हैं. इनसे इमरान कैसे निपटेंगे, यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन पाकिस्तान के वर्तमान हालात को देखते हुए, यह काफी मुश्किल काम जान पड़ता है.
पाकिस्तान की जनता द्वारा चुने गये प्रतिनिधि अब भी सेना के सामने बौने नजर आते हैं, जिसमें औद्योगिक और इंफ्रास्ट्रक्चर विकास न के बराबर है. जहां नागरिक सुविधाओं का भारी अभाव है, वह देश कैसे अपने जन की आकांक्षाओं की पूर्ति करेगा, यह भीषण सवाल पाकिस्तान के सामने है. क्या वह चीन की साम्राज्यवादी नीति के सामने घुटने टेक देगा या अपनी संप्रभुता कायम रख पायेगा? भारत के लिए भी ये सवाल बहुत महत्वपूर्ण हैं.