बिजली तो है साहब पर खोजो तो जानें

उमा प्रभात खबर, धनबाद ‘हर तरफ चर्चा है. उसके आने-जाने की तिथि और समय तय नहीं. लगभग देवता की तरह. मिल जाये तो निहाल. नहीं मिले तो सिर पीट लें. बोलो क्या है.’ ‘अतिथि?’ ‘नहीं.’ ‘कोई महापुरुष?’ ‘नहीं. कुछ और बोलो.’ ‘देवता?’ ‘हां, अब करीब पहुंच गये.’ ‘..! ’ ‘चलिए मैं बताता हूं. बिजली. ’ […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 20, 2014 3:41 AM

उमा

प्रभात खबर, धनबाद

‘हर तरफ चर्चा है. उसके आने-जाने की तिथि और समय तय नहीं. लगभग देवता की तरह. मिल जाये तो निहाल. नहीं मिले तो सिर पीट लें. बोलो क्या है.’ ‘अतिथि?’ ‘नहीं.’ ‘कोई महापुरुष?’ ‘नहीं. कुछ और बोलो.’ ‘देवता?’ ‘हां, अब करीब पहुंच गये.’ ‘..! ’ ‘चलिए मैं बताता हूं. बिजली. ’

चाचा-भतीजे के इस पहेलीनुमा संवाद का सार यह कि बिजली की महिमा करंट की तरह सबको झटके पर झटका दे रही थी. तो यह नाचीज अपनी बातचीत का सूत्र यहीं से उठा लेता है. दरअसल, पूरा शहर ही नहीं, पूरा प्रदेश इस बिजली से जल रहा है. इस बिजली में ताप है. दाब है. नहीं है तो सिर्फ प्रकाश. और इसी प्रकाश की खोज में बिजली को लेकर पूरे प्रदेश में हाय-तौबा है.

जिस तरह उन्नत चेतना के लोग आत्मिक प्रकाश से ओत-प्रोत होते हैं. तो उसी तरह उन्नत चेतना के साहिबान को बिजली के दर्शन तो इतने हो रहे हैं कि वह बिजली से नहा कर दिप-दिप कर रहे हैं. अब जिन लोगों को यह बिजली नहीं दिखती, उन्हें अपने कर्मो की विवेचना करनी चाहिए. जिनके करम ऊंचे हैं वह तो चिल्ला-चिल्ला कर कह रहे हैं कि हमारे पास सरप्लस बिजली है. कुछ दिनों में हम आत्म निर्भर ही नहीं, दूसरों को बिजली देने में समर्थ हो जायेंगे.

सो कुछ लोग चल निकले इस प्रकाश वाली बिजली को खोजने. एसी, कूलर, हवा वाली बिजली को खोजने. लेकिन नहीं मिल रही है तो सभी अपने-अपने तरीके से हाय-तौबा मचा रहे हैं. सभी इस हाय-तौबा में दस्तखत कर रहे हैं. कोई बिजली की कुरसी पर है, तो कोई बिजली के लिए ‘कारा’ की कुरसी पर बैठ कर अभी-अभी बाहर निकला है. अब भोले, नादानों को कोई क्या बताये कि साहब को कारा की कुरसी भी नहीं लिखी थी. सो वह टूट गयी. इस नश्वर जीवन में सत्ता किसी की दासी नहीं, तो बिजली पर किसी की त्योरी कैसे तन सकती है. अब इस टूटी हुई कुरसी से उन्हें उठाने के लिए लोग एड़ी-चोटी एक कर रहे हैं. चोट कितनी आयी इसकी परवाह किसी को नहीं. लहर पर अपनी नाव खेने के इच्छुक यह साहब लोगों की आंखों की किरकिरी बनने लगे हैं.

दूसरी तरफ, दूसरे पाले में बिजली वाले साहब जी हैं. उन्हें लगता है कि कैसे अधम हैं ये जीव जिन्हें यह बिजली नहीं दिखती. यहबिजली कुछ खाने को नहीं मांगती. ईश्वर की तरह. ईश्वर के नाम पर भले बलि दे दी जाती हो. तो इस बिजली के नाम पर भी बलि हो रही है. चारों तरफ. फिर भी अधम, अभिमानी, खल, कामी लोगों को बिजली नहीं दिखती, तो कोई क्या करे. इस बिजली को देख कर तो इसका शोध करनेवाले माइकल फैराडे से लेकर बेंजामीन फ्रैंकलीन तक लजा जायें.

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