कोहरा वह अंधेरा है, जो जिंदगी को बगैर देरी किये मौत का तोहफा दे जाती है. वह चाहे हवा में घुली धूल हो या सड़कों पर टकराती गाड़ियां, मोल तो हमारी जिंदगी की ही लगती है. फिर हम सरकारों को कोसें या फिर एक सरकार दूसरों को, नतीजा तो वहीं ठिठक जाता है.
कोहरे का हमला पहली बार तो नहीं हुआ है कि हम अफसोस जताएं और पल्ला झाड़ लें. यह सोची-समझी भूल न हो, मगर अचानक आयी आफत भी नहीं है, जिसकी तैयारियों में सरकार पीछे रह जाती है.
कोई तो तकनीक होगी, ट्रैफिक के कुछ तो नियम होंगे ही, जो खतरों को कम कर सके. यह तथ्य उतना ही कड़वा है, जितना कि हमारी लापरवाही. हम अपनी जिम्मेदारी कैसे भूल सकते हैं? धुंध जहां फर्लांग भर चलने से रोकती है, वहां तेज गति के कारण जिंदगी को मौत के हवाले करना भूल नहीं, गुनाह है.
एमके मिश्रा, रातू, रांची