क्या खोया, क्या पाया

गुजरे हुए वक्त के हासिल का हिसाब लगाना आसान नहीं होता और नफा-नुकसान के बटखरे से जिंदगी को तौलना भी ठीक नहीं, पर आगे का सफर बेहतर हो, इसके लिए अपनी गठरी को टटोलना भी जरूरी है, ताकि पीछे हुए खर्च, खो गयी चीजों, बचे हुए सामान और की गयी कमाई का अंदाजा रहे. अगर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 31, 2018 6:25 AM

गुजरे हुए वक्त के हासिल का हिसाब लगाना आसान नहीं होता और नफा-नुकसान के बटखरे से जिंदगी को तौलना भी ठीक नहीं, पर आगे का सफर बेहतर हो, इसके लिए अपनी गठरी को टटोलना भी जरूरी है, ताकि पीछे हुए खर्च, खो गयी चीजों, बचे हुए सामान और की गयी कमाई का अंदाजा रहे. अगर हम देश और दुनिया के लिहाज से देखें, तो 2018 ने दिया भी बहुत और बहुत ले भी लिया, पर सबक और तजुर्बे की थाती भी थमा गया.

रुपये और तेल की कीमतों ने जहां हमारी आर्थिकी को हलकान रखा, वहीं हमारी अर्थव्यवस्था पटरी पर भी बनी रही. इस साल पहली बार विदेशी निवेश के मोर्चे पर हम चीन से आगे निकले. भारत में प्रत्यक्ष निवेश करीब 40 बिलियन डॉलर आया, जबकि चीन के हिस्से यह 33 बिलियन डॉलर के आसपास रहा, लेकिन इस साल विदेशी निवेशकों ने पूंजी बाजार से लगभग एक लाख करोड़ रुपये की निकासी भी की. खेती-किसानी का संकट और बेरोजगारी का स्याह साया पूरे साल देश पर रहा. इन मुश्किलों का कोई आसान हल आनेवाले साल में भी शायद ही मिले.

अंतरराष्ट्रीय राजनीति और आर्थिकी के स्तर पर उथल-पुथल ने भारतीय बाजार पर भी असर डाला है, किंतु आर्थिक सुधारों और वृद्धि दर संतुलित रहने के कारण उभरती वैश्विक अर्थव्यवस्थाओं में भारत मजबूती से खड़ा है. इस साल देश के खाते में कई चमकदार उपलब्धियां रहीं. साल के शुरू में इसरो ने एक ही उड़ान में 31 उपग्रहों को अंतरिक्ष में स्थापित कर दुनिया को चौंकाया.

साल के आखिर में अंतरिक्ष यात्रियों को ले जाने की महत्वाकांक्षी योजना की भी घोषणा हो गयी. क्रिकेट के अलावा अन्य कई खेलों में सितारे चमके. कॉमनवेल्थ खेलों में पदक तालिका में 66 मेडल जुड़े. इन कामयाबियों में महिला खिलाड़ियों की अग्रणी भूमिका रही. समलैंगिकता, आधार परियोजना, लाइलाज बीमारियों से जूझते लोगों की इच्छा मृत्यु से संबंधित अदालती फैसलों ने देश को नयी उम्मीदें दीं. आयुष्मान भारत जैसी बीमा योजनाओं ने गरीब परिवारों को जिंदगी की नयी राह दिखायी.

विभिन्न चुनावों ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया को आगे बढ़ाया. इन सब के बीच नफरत से अंधी भीड़ के निर्दोषों को निशाना बनाने और सोशल मीडिया के जरिये जानलेवा अफवाह फैलाने की खबरें बेहद अफसोस का सबब रहीं. देशभर में हवा और पानी का बढ़ता प्रदूषण तथा धरती का तापमान बढ़ने के कारण आती आपदाओं ने देश को बेचैन रखा. जंगलों और जंगली जीवों का लगातार नुकसान भी चिंताजनक खबर रही.

स्वच्छ ऊर्जा पर जोर तथा पर्यावरण बचाने की सरकार और समाज की कोशिशों को तेज करने की जरूरत समझ में आयी. राष्ट्रीय जीवन पर सरकारी नीतियों और पहलों का असर निश्चित रूप से होता है तथा उनकी समीक्षा और आलोचना भी होती रहनी चाहिए, लेकिन देश के विकास और समृद्धि में समाज के विभिन्न घटकों-नागरिक, नागरिक संगठन, पार्टियां, उद्योग जगत, मीडिया आदि का भी खासा योगदान होता है. स्वच्छता, शुचिता और सद्भाव बनाने में समाज को अगुआई करनी चाहिए.

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