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नव वर्ष प्रसन्नतापूर्ण हो!

पवन के वर्मा लेखक एवं पूर्व प्रशासक pavankvarma1953@gmail.com अब जबकि एक और वर्ष बीत चुका है, यह समय है कि विगत का मूल्यांकन करते हुए अनागत के लिए उम्मीदें बांधी जायें. अतीत को पुनर्जीवित तो नहीं किया जा सकता, पर उससे वर्तमान के लिए सबक जरूर लिये जा सकते हैं और वर्तमान हमारे भविष्य की […]

पवन के वर्मा
लेखक एवं पूर्व प्रशासक
pavankvarma1953@gmail.com
अब जबकि एक और वर्ष बीत चुका है, यह समय है कि विगत का मूल्यांकन करते हुए अनागत के लिए उम्मीदें बांधी जायें. अतीत को पुनर्जीवित तो नहीं किया जा सकता, पर उससे वर्तमान के लिए सबक जरूर लिये जा सकते हैं और वर्तमान हमारे भविष्य की घटनाएं संवार सकता है. फिर यही वक्त है कि मैं भारतीय गणतंत्र के बारे में अपनी तमन्नाओं और उम्मीदों की फेहरिस्त पेश करूं, क्योंकि आखिर हम सभी उम्मीदों के ही बूते तो जीते हैं.
मेरी पहली कामना है कि हम प्रदूषण के खतरे से जूझने के लिए और भी काफी कुछ ठोस करें, न कि केवल कामचलाऊ कदमों पर भरोसा करें. ससमय मजबूत संस्थागत कदम उठाये जाने आवश्यक हैं, जिन्हें केंद्र तथा राज्यों के बीच समन्वित तरीके से क्रियान्वित किया जाना चाहिए. हम प्रणालीगत संकट से गुजर रहे हैं, जिसकी कोई एक ही वजह नहीं है. अतः उसके निराकरण को भी सुनियोजित एवं टिकाऊ होना ही चाहिए.
हमें अपने किसानों के लिए और ज्यादा करने की जरूरत है. हमारी आबादी का 60 प्रतिशत से भी अधिक कृषि पर निर्भर है. किसान कर्ज से दबे हैं, उन्हें अपनी उपज के लाभकारी मूल्य नहीं मिल रहे और वे मौसमी अनिश्चितताओं के दंश भी झेल रहे हैं, क्योंकि हमारी कृषि भूमि का तकरीबन सिर्फ एक तिहाई ही सिंचाई सुविधासंपन्न है.
उन्हें बेहतर इनपुट, बीज, उर्वरक, प्रसार सेवाएं, शीतगृह सुविधाएं और ढुलाई तथा विपणन अवसंरचनाएं चाहिए, जिन्हें केवल ऋणमाफी से पूरा नहीं किया जा सकता. हम कामना करें कि वर्ष 2019 में एक भी किसान आत्महत्या के लिए बाध्य न हो और यह वर्ष एक भरेपूरे मानसून का दीदार करे.
आइए, हम यह कामना भी करें कि इस वर्ष होनेवाले संसदीय चुनावों के नतीजे देश के लिए कल्याणकारी हों. इससे उद्भूत सरकार- चाहे वह गठजोड़ की हो अथवा स्पष्ट बहुमत की- स्थायी एवं प्रभावी हो और वह सुशासन की सर्वोपरि आवश्यकता पूरी करने में समर्थ हो. इसी तरह, इस वर्ष सभ्य संवाद का संकटग्रस्त सद्गुण भी सजीव हो उठे. अभी हम सभी एक-दूसरे के साथ नहीं, एक-दूजे पर बातें करते हैं और सिर्फ स्वयं के सही होने का यकीन करते हैं.
परस्पर अहं के इस ध्रुवीकरण में हम बीच की संभावना को सिरे से नकारते हुए संवाद की, सुनने की और अपने विरोधी को भी सम्मान देने की कला मरने दे रहे है. हमारी सियासी सरजमीं कटुताओं से विषाक्त बनी है, जो सभ्य संवाद की प्रतिमूर्ति यानी शास्त्रार्थ जैसी समृद्ध परंपरा के इस देश के लिए एक शोकांतिका से कुछ भी कम नहीं है.
हम अपने देश को मजहबी नफरत से भी उबार लें. जो लोग संप्रदाय का इस्तेमाल नफरत और हिंसा के बीज बोकर नतीजे के विभाजनकारी माहौल से लाभ उठाते हैं, हम उन्हें नकार दें. हमारी सभ्यता विश्व के चार महान धर्मों की पोषक रही है. हमारे यहां मुसलिमों की विश्व की दूसरी सबसे बड़ी आबादी निवास करती है.
ये सभी आस्थाएं आपसी सद्भाव और सम्मान के साथ रहते हुए अमन और चैन की तरफदार बनें. हम यह उम्मीद भी करें कि राममंदिर विवाद का शांतिपूर्ण तथा विधिसम्मत समाधान निकल आये. कुछ लोग इसे लेकर उन्माद का वातावरण सृजित करना चाहते हैं. उनकी चाहना है कि चाहे जिस विधि भी संभव हो, मंदिर का निर्माण हो जाये. राम की जन्मभूमि में मंदिर के निर्माण में कुछ भी गलत नहीं है. पर यदि यह मंदिर सुप्रीम कोर्ट के किसी फैसले या फिर सभी हितधारकों की आपसी सहमति से इतर किसी अन्य तरीके से निर्मित होता है, तो यह मर्यादा पुरुषोत्तम की गरिमा के लिए असम्मानजनक होगा.
हम उग्र राष्ट्रवाद के पत्ते फेंकना भी रोकें. देशभक्ति एक गुण है, मगर यह कुछ लोगों को दूसरों की देशभक्ति पर अपना निर्णय सुनाने की छूट नहीं देता. उसी तरह, निश्चय ही यह लोगों को कानून अपने हाथ में लेने, हिंसा में संलिप्त होने, दूसरों पर धौंस जमाने और राष्ट्रवादिता के उनके फॉर्मूले को दूसरों पर थोपने की आजादी भी नहीं देता.
हमारी अर्थव्यवस्था फले-फूले और इसकी जीडीपी वृद्धि दर सतत ढंग से उर्ध्वगामी बनी रहे, ताकि हम न केवल पांच लाख करोड़ डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के निकट पहुंच सकें, बल्कि यह वृद्धि इतनी गुणवत्तापूर्ण भी हो कि गरीबी के अंतहीन दुष्चक्र में फंसी हमारी करोड़ों की आबादी के लिए इस विकास के सुफल संस्थागत विधि से सुलभ हों सकें. हमारे स्टॉक बाजार की बढ़त बनी रहे, मगर इस वर्ष हमारा आर्थिक विकास गरीबी रेखा से नीचे निवास करनेवाले करोड़ों अतिरिक्त लोगों को उससे ऊपर उठा सके.
इस वर्ष हम एक ऐसा सामरिक सिद्धांत भी साकार कर सकें, जो हमारी विदेश तथा रक्षा नीति को निर्देशित करे. भारत विश्व के सर्वाधिक संकटापन्न क्षेत्र में स्थित है. हम एक उभरती महाशक्ति हैं. यही वजहें हैं कि विदेश नीति के महत्वपूर्ण क्षेत्र में किसी तदर्थ तरीके से चलना हमारे लिए बिलकुल ही अस्वीकार्य है.
अब तक हमारी विदेश नीति प्रायः प्रतिक्रियात्मक ही रही है, सक्रियात्मक नहीं. हम सामने आनेवाली घटनाओं के प्रति प्रतिक्रिया तो व्यक्त करते हैं, पर शायद ही कभी अपने अल्पावधि एवं मध्यावधि हितों के मद्देनजर किसी सुविचारित सामरिक नीति का सहारा लेते हैं. एक ऐसे देश के लिए, जहां चाणक्य जैसे रणनीतिकार का जन्म हुआ था, यह अत्यंत लज्जाजनक है. हमारी सीमाओं पर शांति रहे, पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के प्रति हमारा जवाब मुंहतोड़ हो और कश्मीर में सामान्य स्थिति व शांति बहाली हो.
हम खेलों में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बेहतर करें, मगर सिर्फ क्रिकेट में ही नहीं, जिस पर हम हमेशा केंद्रित बने दिखते हैं. सवा अरब आबादी का हमारा राष्ट्र खेलों का दीवाना है और यह ओलिंपिक खेलों में मात्र एक-दो स्वर्ण पदकों से संतुष्ट नहीं हो सकता. हम खेलों की बुनियादी संरचनाएं विकसित करने की सिलसिलेवार, समग्र नीति विकसित करें, प्रतिभाओं की पहचान खिलती उम्र में ही कर लें, उन्हें प्रशिक्षित करें और विभिन्न खेलों में राष्ट्र के आकार के अनुरूप शीर्ष विजेताओं की कतारें पैदा करें.
यह केवल एक कामना सूची ही है, जो अपनी प्रकृति से ही आशावादी हुआ करती है. ये कामनाएं चुनिंदा भी होती हैं. इसमें कई और भी कामनाएं जोड़ी जा सकती हैं, उनमें से कई इन कामनाओं की जगह भी ले सकती हैं. मगर जहां तक मेरा सवाल है, यदि इस सूची में आधी भी पूरी हो जाये, तो वर्ष 2019 एक महान वर्ष बन सकता है. नव वर्ष प्रसन्नतापूर्ण हो!
(अनुवाद: विजय नंदन)

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