15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

सर्दियों की धूप

क्षमा शर्मा वरिष्ठ पत्रकार kshamasharma1@gmail.com उधर कश्मीर में बर्फ की सफेद चादरें बिछी हुई हैं और इधर सर्दी से सब कांप रहे हैं. एक कश्मीरी महिला ने बताया कि ग्यारह सालों बाद कश्मीर में इतनी ठंड पड़ी है कि नलों में पानी भी जम गया है. अपने यहां भी कब दिन होता है और कब […]

क्षमा शर्मा

वरिष्ठ पत्रकार

kshamasharma1@gmail.com

उधर कश्मीर में बर्फ की सफेद चादरें बिछी हुई हैं और इधर सर्दी से सब कांप रहे हैं. एक कश्मीरी महिला ने बताया कि ग्यारह सालों बाद कश्मीर में इतनी ठंड पड़ी है कि नलों में पानी भी जम गया है. अपने यहां भी कब दिन होता है और कब रात कुछ पता ही नहीं चलता.

महानगरों में जो लोग फ्लैट में रहते हैं, उनमें से बहुतों को धूप भी नसीब नहीं. जिनके घरों के पास पार्क की सुविधाएं हैं, या जिनके पास छतें है अथवा ऐसी बाल्कनियां जहां धूप आती हो, वे जल्दी से जल्दी धूप में जाना, बैठना चाहते हैं.

जिन्हें सवेरे-सवेरे काम पर दौड़ना पड़ता है या बच्चों को स्कूल जाना पड़ता है, उनकी बात तो अलग है, मगर सर्दी से बचने का बेहतरीन तरीका धूप सेंकना है, इसे सब जानते हैं. सिर्फ मनुष्य ही नहीं, पशु-पक्षी और पेड़-पौधे भी. जिस धूप से गर्मी के दिनों में तरह-तरह से बचने के तरीके ढूंढ़ने पड़ते थे, अब उसकी तरफ आशा और प्यार भरी नजरों से देखना पड़ता है. जिस दिन बदली छायी हो और धूप हल्की हो, तो लगता है कि आसमान की तरफ एक इशारा करें, बादल गायब हो जाएं और तन को सुकून देती धूप खिल उठे.

पहले तो जो लोग धूप में बैठे होते थे, उनसे राह चलते पूछते थे कि खूब धूप खा रहे हो, गर्माहट ले रहे हो. इन दिनों भी धूप में बैठ कर कोई अखबार पढ़ता है. कोई टहलता है, कोई मोबाइल पर गपशप कर रहा है, लेकिन धूप और उससे मिलनेवाली गर्माहट और पोषण हर एक को चाहिए.

अब बहुत से लोग यह भी कहते हैं कि खूब विटामिन-डी ले रहे हो. आम जनता को भी पता चल गया है कि सूरज की किरणों में विटामिन डी पाया जाता है, जो हड्डियों की मजबूती के लिए बहुत जरूरी है. सर्दी में धूप मिलना किसी लग्जरी से कम नहीं है. गांव में तो आंगन की धूप में बैठी महिलाएं धूप सेंकते-सेंकते बहुत तरह के काम भी करती जाती थीं.

कोई चिप्स बनाती थी. कोई स्वेटर बुनती थी. कोई मेथी-गोभी तोड़ कर सुखाती थी. किसी के पास मसाले सुखाने से लेकर कूटने-पीसने का काम होता था. कोई गेहूं बीनती थी. साथ में मूली, मेथी, टमाटर, गन्ना, मूंगफली भी खाये जाते थे. गजक, गुड़, छाछ, रायता आदि खाने-पीने का आनंद भी था. आज भी बहुत स्थानों पर ऐसा होता होगा.

हम लोग जो रोटी-रोजी की जरूरतों के कारण गांव छोड़कर शहरों में आ बसे हैं, वे उन गरीबी के दिनों को भी धूप, हरियाली, खुला आकाश और आंगन के लिए याद करते हैं. वैसे दिन फिर कभी नहीं आये. जब वहां थे तो जीवन कैसे सुधरेगा, ये दिन कैसे बदलेंगे, अभावों और गरीबी से कैसे मुक्ति मिलेगी, इस चिंता में रहते थे, मगर आज वे ही दिन कभी धूप के लिए, ढोलक की आवाज के लिए, तो कभी रात में महिलाओं की आवाज में सुनायी देते, मधुर लोकगीतों के लिए रह-रहकर याद आते हैं. अतीत को कभी न पकड़ा जा सकता है, न लौटाया जा सकता, इसलिए वह और अधिक लुभावना बनकर सामने आता है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें