जन बनाम संख्या

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com मेघालय में कई मजदूर खदानों में फंसे, सिर्फ उनकी संख्या पता है, नामों के बारे में अधिकांश की अनभिज्ञता है. दिल्ली के अस्पतालों में गये साल में पचास बच्चों की मौत डिप्थीरिया से हो गयी, पचास का नंबर सबको पता है, ये किन के बच्चे थे, किसी को नहीं पड़ी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | January 7, 2019 6:32 AM

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

puranika@gmail.com

मेघालय में कई मजदूर खदानों में फंसे, सिर्फ उनकी संख्या पता है, नामों के बारे में अधिकांश की अनभिज्ञता है. दिल्ली के अस्पतालों में गये साल में पचास बच्चों की मौत डिप्थीरिया से हो गयी, पचास का नंबर सबको पता है, ये किन के बच्चे थे, किसी को नहीं पड़ी कि जाने. मेनहोल में नारकीय हालात में हर पांच दिनों में एक मौत होती है, संख्या पता रहती है- पांच दिनों में एक मौत, किसकी हुई, किसी की चिंता का विषय नहीं है.

लेकिन, प्रियंका चोपड़ा और निक जोनास की शादी को कई दिन हो गये हैं, फिर भी रोज टीवी चैनलों पर आ रहा है कि आज निक को देख कर प्रियंका मुस्कुरायीं, मुस्कान का साइज इतने इंच का रहा.

लोकतंत्र नंबर का गेम है, पर जिनका नंबर है, उनके साथ गेम हो रहा है. भारी नंबर में डिप्थीरिया से, खदानों में और मेनहोल में मर रहे हैं. उनका सिर्फ नंबर पता है हमें- पंद्रह, पचास. रोज नाम सहित विस्तृत कवरेज तो उनकी है, जिनकी मुस्कान और लहंगे का साइज बड़ी खबर है.

मैंने एक टीवी पत्रकार से कहा- भाई मेनहोल में अमानवीय मौत मर रहे बंदों पर कुछ लंबी रिपोर्ट दिखा दो.

टीवी रिपोर्टर ने बताया- ऐसा तभी संभव है, जब कोई बड़ा स्टार अपनी शादी बड़े से सीवर के सेट पर करे और उसमें सीवर-मृत्यु से पीड़ित परिवारों को बुलाया जाये. मनोरंजक इवेंट हो, खान डांस करें, तभी सीवर-मृत्यु टीवी पर आयेगी.

पीड़ा, कष्ट, शोक, आफत को इवेंट होना होगा. इवेंट हो, कुछ विजुअल बने, तो ही टीवी पर आये. किसान मर जाता है गले में फांसी लगाकर, खबर सिर्फ संख्या की आती है- एक किसान की आत्महत्या. होशियार किसान हाथ में नरमुंड कंकाल लेकर आ जाता है, कवरेज मिल जाती है, नाम-पते के साथ. और नेता को मुद्दा मिल जाता है.

मुद्दा वोट में तब्दील हो जाता है. मुद्दा मुद्दा ही बना रहता है किसान की अगली और फिर उससे अगली और फिर उससे अगली आत्महत्या तक. आत्महत्या को इवेंट होना चाहिए. लोकतंत्र नंबर के साथ गेम है, सेलिब्रिटी जन का नेम है, क्योंकि उसका फेम है. आम आदमी की मौत मौत है, पर बड़े आदमी की बीमारी इवेंट. वह ब्लाॅग लिखेगा, सहानुभूति बटोरेगा, फोटो खिंचायेगा.

ब्लाॅग में कुछ बेहूदा कर दे सेलिब्रिटी, तो फिर उसकी बिग बाॅस में एंट्री पक्की. एक बार यूं होना चाहिए कि बिग बाॅस में सचमुच किसान, नेता, पत्रकार, अफसर, बिचौलिये बुलाये जायें. किसान फिर सबके साथ भिड़ें, सचमुच की फाइट हो. पर, बिग बाॅस में वह नहीं जा पाता, जिसे लोकतंत्र का बाॅस कहा जाता है. फर्जी बाबाओं की एंट्री बिग बाॅस में हो जाती है.

बाबा हो या बाबी, सेलिब्रिटी होने भर से वह लोकतंत्र और मीडिया के लिए खास जन हो जाता है, बाकी सिर्फ संख्या हैं, जिनका जिक्र सिर्फ डिप्थीरिया, खदान और मेनहोल की खबरों में होना है. हां वह इनसे बच जाये, तो इन खबरों में होना है कि मतदान 78 प्रतिशत रहा.

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