मां-बाप का उपकार न भूलें
एक आदमी शहर से आये महात्मा के पास जाकर हाथ जोड़ कर विनती करने लगा- महाराज! मैं बहुत दुखी हूं. मेरे घर में खुशी नाम की कोई चीज नहीं है. परिवार के सारे सदस्य एक -दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहते हैं. भरा-पूरा परिवार है, अपना घर है, गाड़ी है. इस पर महात्मा ने पूछा, माता-पिता की […]
एक आदमी शहर से आये महात्मा के पास जाकर हाथ जोड़ कर विनती करने लगा- महाराज! मैं बहुत दुखी हूं. मेरे घर में खुशी नाम की कोई चीज नहीं है. परिवार के सारे सदस्य एक -दूसरे से लड़ते-झगड़ते रहते हैं. भरा-पूरा परिवार है, अपना घर है, गाड़ी है. इस पर महात्मा ने पूछा, माता-पिता की सेवा करते हो? वह आदमी बोला, मेरे पिताजी नहीं रहे, मां है जो बहुत बूढ़ी और कमजोर है.
घर के एक कोने में पड़ी रहती है. उसे सुबह-शाम दो रोटी दे देते हैं. महात्मा जी बोले, माता-पिता धरती पर भगवान का रूप होते हैं. उन्हें तुम्हारी बस दो रोटियों की जरूरत नहीं है, तुम्हारे प्यार और आदर-सत्कार की जरूरत है. तब उनके रोम-रोम से तुम्हारे लिए दुआएं निकलेंगी, जो तुम्हारी जिंदगी में खुशियां लायेंगी. यह सुन कर उस आदमी ने अपने घर लौट कर ये बातें पत्नी को बतायीं और दोनों सही रास्ते चल दिये.
जसवंत सिंह, रामगढ़ कैंट