ऐसे नगर निगम के लिए वोट क्यों दूं?
आज झारखंड की राजधानी रांची नगर निगम क्षेत्र के मेयर पद के लिए चुनाव हैं. पिछली बार यह चुनाव वोटरों को पैसे बांटने के नाम पर रद्द कर दिया गया था. बहरहाल, उस समय वार्ड पार्षदों का भी चुनाव हुआ था और हमारे वार्ड नंबर दो से वार्ड पार्षद सुरेंद्र नायक लगातार दूसरी बार चुने […]
आज झारखंड की राजधानी रांची नगर निगम क्षेत्र के मेयर पद के लिए चुनाव हैं. पिछली बार यह चुनाव वोटरों को पैसे बांटने के नाम पर रद्द कर दिया गया था. बहरहाल, उस समय वार्ड पार्षदों का भी चुनाव हुआ था और हमारे वार्ड नंबर दो से वार्ड पार्षद सुरेंद्र नायक लगातार दूसरी बार चुने गये थे.
मुख्यमंत्री आवास से बमुश्किल तीन किलोमीटर दूर हमारे मोहल्ले में ऐसी कोई सुविधा नहीं, जिसके नाम पर हम इस बार के नगर निगम चुनावों में मतदान करें. यहां बिजली की सुविधा तो है लेकिन उसे लोगों ने अपने स्तर से बांस-खूंटा गाड़ कर अपने घरों तक तार खींचा है. मोहल्ले के कुछ ही घरों में पानी का कनेक्शन है. बरसात के दिनों में सड़क की हालत इतनी खराब हो जाती है कि घर से निकलने का मन नहीं करता और अगर हिम्मत करके कहीं निकल भी गये तो वापस घर लौटने का मन नहीं करता. लोगों को अपनी गाड़ियां अपने जान-पहचानवाले लोगों के ऐसे घरों में रखनी पड़ती है जहां तक खस्ताहाल ही सही, चालू सड़क की पहुंच हो.
इससे पहले वर्ष 2008 में भी नगर निगम के चुनाव हुए थे. वार्ड पार्षद पद और मेयर पद के प्रत्याशियों ने गली-गली और मोहल्ले-मोहल्ले घूम-घूम कर, हाथ जोड़ कर और जरूरत पड़ने पर पांव भी छूकर लोगों से वोट मांगे थे. लोगों ने सोचा कि चलो बिजली, पानी सड़क की समस्या का समाधान होगा. लेकिन चुनाव हुए, पार्षद-मेयर बने लेकिन मोहल्ले की हालत में कोई अंतर नहीं आया. पिछले साल अप्रैल महीने में एक बार फिर इसी उम्मीद से लोगों ने वोट डाला, लेकिन सड़क बनवाने के सवाल पर पार्षद हर बार फंड का रोना रोते हैं. ऐसे नगर निगम के होने और उसके लिए वोट डालने का क्या फायदा, जहां लोगों के घरों तक पिछले छह सालों में सड़क भी न पहुंची हो.
गंगाधर यादव, एदलहातू, रांची