रेल भाड़ा वृद्धि पर दिशाहीन राजनीति

संसद के बजट-सत्र से पहले ही रेल भाड़े में भारी बढ़ोतरी कर नरेंद्र मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था में सुधार के उद्देश्य से लिये जाने वाले संभावित ‘कठोर फैसलों’ की शुरुआत कर दी है. रेल मंत्रलय की घोषणा के मुताबिक सभी श्रेणियों में यात्राी किराये में 14.2 फीसदी और माल ढुलाई भाड़े में 6.5 फीसदी की […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 23, 2014 6:52 AM

संसद के बजट-सत्र से पहले ही रेल भाड़े में भारी बढ़ोतरी कर नरेंद्र मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था में सुधार के उद्देश्य से लिये जाने वाले संभावित ‘कठोर फैसलों’ की शुरुआत कर दी है. रेल मंत्रलय की घोषणा के मुताबिक सभी श्रेणियों में यात्राी किराये में 14.2 फीसदी और माल ढुलाई भाड़े में 6.5 फीसदी की वृद्धि की गयी है.

विपक्ष के साथ भाजपा के कुछ सहयोगी दलों ने इस फैसले का विरोध किया है और इसे तुरंत वापस लेने की मांग की है. मोदी सरकार से महंगाई पर लगाम लगाने की उम्मीद पाले बैठी जनता के बड़े हिस्से को भी स्वाभाविक रूप से निराशा हुई है. लेकिन इस प्रकरण में सरकार का रवैया और विपक्ष के तेवर चिंताजनक हैं. रेल मंत्री सदानंद गौड़ा और भाजपा के प्रवक्ताओं ने इस फैसले की जिम्मेवारी पिछली सरकार पर डालने की कोशिश करते हुए कहा कि यूपीए सरकार ने यह निर्णय लिया था और यह सरकार तो बस उसे लागू कर रही है. पिछले दिनों अपने अन्य कुछ फैसलों के बारे में भी सरकार इस तरह का तर्क दे चुकी है.

हालांकि, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने इस फैसले का बचाव करने की कोशिश की, लेकिन उनका तर्क ढीला था. उनके अनुसार अगर देश बेहतर रेल सेवा चाहता है, तो उसे बढ़ोतरी को स्वीकार करना होगा. अजीब स्थिति है कि अच्छे दिनों का वादा कर ठोस जनादेश के साथ सत्ता में आयी सरकार अपने फैसलों को लेकर आश्वस्त नहीं है. अगर उसे यह भरोसा है कि विकास को गति देने के लिए अलोकप्रिय कदम उठाने होंगे, तो उसे अपने निर्णयों को स्पष्टता और दृढ़ता से देश के सामने रखना चाहिए. सरकार के तर्को व तरीकों में आत्मविश्वास झलकना चाहिए. विरोधी दलों की स्थिति इससे भिन्न नहीं है. उन्हें इस सवाल का जवाब देना होगा कि यदि वे सत्ता में आते, तो क्या उन्हें भाड़े में वृद्धि नहीं करनी पड़ती.

कांग्रेस और यूपीए को ईमानदारी से उत्तर देना चाहिए कि क्या पिछली सरकार ने किराया वृद्धि का इरादा नहीं किया था. रेल भारतीय जन-जीवन और अर्थव्यवस्था का एक मजबूत आधार है. उसकी बेहतरी के लिए सरकार और विपक्ष को मिलजुल कर काम करना होगा. सरकार समुचित सोच व समझ के साथ निर्णय ले और विपक्ष सिर्फ विरोध के लिए विरोध की मानसिकता से ऊपर उठे.

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