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निज भाषा उन्नति अहै

शफक महजबीन टिप्पणीकार mahjabeenshafaq@gmail.com किसी भी देश के समय, सभ्यता, संस्कृति और परंपरा आदि को अच्छी तरह से जानना-समझना हो, तो सबसे पहले वहां की भाषा को जानना चाहिए. जहां भाषा से किसी देश की सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न आयामों का बखूबी पता चलता है, वहीं उस देश की एकता के द्योतक के रूप […]

शफक महजबीन

टिप्पणीकार

mahjabeenshafaq@gmail.com

किसी भी देश के समय, सभ्यता, संस्कृति और परंपरा आदि को अच्छी तरह से जानना-समझना हो, तो सबसे पहले वहां की भाषा को जानना चाहिए. जहां भाषा से किसी देश की सभ्यता और संस्कृति के विभिन्न आयामों का बखूबी पता चलता है, वहीं उस देश की एकता के द्योतक के रूप में भी भाषा अपनी महती भूमिका निभाती है.

शायद इसीलिए भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने कहा था- ‘कोई भाषा एक ऐसा सशक्त कारक है, जो पूरे देश को एकजुट करता है और यह क्षमता हमारी मातृभाषा हिंदी में है.’

हिंदी भाषा की क्षमता आैर इसके विस्तार को देखते हुए ही पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने आज ही के दिन यानी 10 जनवरी, 2006 को हर साल ‘विश्व हिंदी दिवस’ के रूप में मनाये जाने की घोषणा की थी. दरअसल, 10 जनवरी, 1975 को दुनियाभर में हिंदी भाषा के प्रचार के लिए नागपुर में एक ‘विश्व हिंदी सम्मेलन’ का आयोजन हुआ था, जिसमें 30 देशों के 122 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था. पर, उस दिन विश्व हिंदी दिवस को हर साल मनाये जाने जैसी कोई बात नहीं हुई थी.

दुनिया के 176 विश्वविद्यालयों में एक विषय के रूप में पढ़ायी जानेवाली हिंदी को दुनियाभर में पचास करोड़ से ज्यादा लोग बोलते हैं. और इस दिन दुनिया के कई देशों के भारतीय दूतावासों में और अन्य सरकारी कार्यालयों में विश्व हिंदी दिवस के दिन हिंदी भाषा पर कई कार्यक्रम किये जाते हैं.

विश्व हिंदी दिवस मनाने का उद्देश्य यही है कि इससे हिंदी का प्रसार हो और इसका ज्यादा से ज्यादा विस्तार हो सके. भाषा के प्रचार-प्रसार में उसके साहित्य की अहम भूमिका होती है. क्योंकि कोई भाषा कितनी आकर्षक और दमदार है, यह उसके साहित्य के जरिये ही समझा जा सकता है.

इसलिए इस दिन हर जगह साहित्यिक आयोजनों का होना-किया जाना जरूरी है. महत्वपूर्ण बात यह भी है कि किसी भी देश में एक सशक्त भाषा का होना इस बात का परिचायक है कि वहां की नैतिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था कितनी सुदृढ़ है. भाषा के कमजोर होने का अर्थ है कि इन सभी व्यवस्थाओं में हम कमजोर हैं.

भारतीय भाषाओं में हिंदी को ही राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने राष्ट्रभाषा बनाने पर बल दिया था. देश में भले ही कई भाषाएं बोली जाती हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने भी दो भाषाआें- हिंदी और अंग्रेजी को ही कार्यलयी मान्यता दी है. हालांकि, आज दिन-प्रतिदिन आधुनिक होते और बदलाव की ओर उन्मुख इस दौर में हिंदी भी बदलाव के दौर से गुजर रही है और एक प्रकार से यह कुछ नवीनता को अपनाकर नयी होती जा रही है.

आज जिस तरह तरक्की के लिए सिर्फ अंग्रेजी को ही मुख्य भाषा मान लिया गया है, वहां हिंदी का तेजी से होता विकास इस बात का सूचक है कि देश की उन्नति तो राष्ट्रभाषा के सम्मान और विस्तार में ही है. हिंदी के महान कवि भारतेंदु हरिश्चंद्र सही लिखते हैं- ‘निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल/ बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल.’

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