बढ़ती उम्र का असंतुलन
नये साल के पहले दिन हमारे देश में 69,944 शिशुओं का जन्म हुआ. यूनिसेफ के अनुमान के मुताबिक, उस दिन दुनियाभर में पैदा हुए बच्चों में अकेले 18 फीसदी नवजात भारतीय हैं. मौजूदा दर के हिसाब से भारत आबादी में 2024 तक चीन को पीछे छोड़ देगा. मात्र 27 वर्ष की माध्य आयु वाला हमारा […]
नये साल के पहले दिन हमारे देश में 69,944 शिशुओं का जन्म हुआ. यूनिसेफ के अनुमान के मुताबिक, उस दिन दुनियाभर में पैदा हुए बच्चों में अकेले 18 फीसदी नवजात भारतीय हैं. मौजूदा दर के हिसाब से भारत आबादी में 2024 तक चीन को पीछे छोड़ देगा. मात्र 27 वर्ष की माध्य आयु वाला हमारा देश दुनिया का सबसे युवा देश है. युवा आबादी की यह बढ़त आगामी दशकों में भी जारी रहेगी, लेकिन भारतीय स्टेट बैंक की एक रिपोर्ट देश में बढ़ते आयु असंतुलन की चिंताजनक तस्वीर पेश करती है.
इस रिपोर्ट के निष्कर्ष बताते हैं कि अपेक्षाकृत समृद्ध दक्षिणी राज्यों में उम्रदराज आबादी का औसत बढ़ रहा है, तो उत्तर भारतीय राज्यों में युवाओं की संख्या में बढ़ोतरी जारी है. ऐसे में आय असमानता में बढ़त और उत्तर भारत से दक्षिण की ओर पलायन तेज होना स्वाभाविक है. उम्रदराज आबादी (65 वर्ष और इससे ऊपर) के बढ़ने से जहां बचत, श्रमबल एवं मुनाफे में कमी होने की आशंकाएं हैं, वहीं इससे निवेश दर में गिरावट होने की भी चिंता है.
साथ ही, वृद्धावस्था पेंशन एवं स्वास्थ्य खर्चों के बढ़ने से इन राज्यों पर अतिरिक्त बोझ भी पड़ेगा. आंध्र प्रदेश, केरल, तमिलनाडु, तथा कर्नाटक जिस दौर में इन समस्याओं का सामना कर रहे होंगे, वहीं उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा तथा बिहार जैसे राज्यों के सामने बड़ी युवा आबादी के लिए शिक्षा एवं रोजगार जैसे मसलों से निपटने की चुनौती होगी.
इन राज्यों से पलायन की मौजूदा चिंता भविष्य में बढ़ेगी. इस स्थिति में औद्योगिकीकरण तथा रोजगार सृजन जैसे अहम मुद्दों पर व्यापक कार्य-योजना के साथ आगे बढ़ना होगा. जनगणना के आंकड़ों को देखें, तो 1991 में भारत में प्रति 100 कामगारों पर निर्भर लोगों की संख्या 193 थी, जो 2001 में बढ़कर 223 हो गयी. शिक्षा और रोजगार की बढ़ती चुनौतियां इसे बेहद गंभीर स्तर पर पहुंचा रही हैं.
आर्थिक गतिविधियों का केंद्र समझे जानेवाले दक्षिणी राज्यों में आबादी के बड़े हिस्से का उम्रदराज होने के रुझान के संदर्भ में भारत की चिंता बढ़ती विशालकाय आबादी से अधिक असमान आयु में वृद्धि तथा भौगोलिक स्तर पर जनसंख्या की विषमता है.
दूसरी ओर, अपेक्षाकृत गरीब राज्यों में युवाओं को रोजगार मुहैया कराने और बढ़ते पलायन रोकने के प्रयास में एक चुनौती गहराते सामाजिक तनाव की भी होगी. सदी के मध्य में जब भारत दुनिया का सबसे बड़ी आबादी का देश बन चुका होगा, तो करीब 30 करोड़ की उम्रदराज आबादी के लिए भी नये सिरे से इंतजाम करने होंगे.
वित्त आयोगों के गठन तथा चुनाव क्षेत्रों के परिसीमन से जुड़ी समस्याओं के साथ देश को कई ऐसी अदृश्य चुनौतियों के लिए भी तैयार रहना होगा. आबादी से जुड़े मसले सिर्फ आर्थिक ही नहीं होते, उनके सामाजिक और सांस्कृतिक पहलू भी होते हैं. इस बाबत अगर समय रहते प्रयास शुरू कर दिये जायें, तो भविष्य की कई मुश्किलों का सामना करने में सहूलियत होगी.