दधि-चिउरा उपहार अपारा, भरि-भरि कांवरि चले कहारा
निराला बिदेसिया टिप्पणीकार niralabidesia@gmail.com चिउड़ा देश के हर राज्य, हर इलाके में अलग-अलग नाम से मशहूर है. इससे कई तरह के व्यंजन बनते हैं और इसे खाने-खिलाने के भी कई तरीके हैं. कर्नाटक वालों के बीच अवलक्की मशहूर है. गुजरात वाले पउआ, ओडिशा वाले चूड़ा, आंध्र प्रदेश वाले अटुकुल्लू, तमिलनाडु और केरल वाले अवल, असम […]
निराला बिदेसिया
टिप्पणीकार
niralabidesia@gmail.com
चिउड़ा देश के हर राज्य, हर इलाके में अलग-अलग नाम से मशहूर है. इससे कई तरह के व्यंजन बनते हैं और इसे खाने-खिलाने के भी कई तरीके हैं. कर्नाटक वालों के बीच अवलक्की मशहूर है. गुजरात वाले पउआ, ओडिशा वाले चूड़ा, आंध्र प्रदेश वाले अटुकुल्लू, तमिलनाडु और केरल वाले अवल, असम वाले सिरा, बंगाल वाले चिरा, महाराष्ट्र वाले पोहे, कोंकण इलाके वाले फोवू के दिवाने हैं. ऐसे ही न जाने कितने नाम हैं इस एक सर्वकालिक-सर्वाधिक लोकप्रिय फास्टफुड के.
इंदौर समेत पूरे मालवा इलाके में पोहा जलेबी मशहूर है, गुजरात-महाराष्ट्र में पोहा फेमस है. तमिलनाडु वाले चूड़ा, दूध, चीनी, नारियल, केला आदि मिलाकर अविलनान चाथू बनाकर खाते हैं, तो दक्षिण में ही अविल विलाय चाथू भी बनता है, जिसमें चूड़ा के साथ दाल, काजू, बादाम, नारियल आदि मिलाया जाता है. कोंकण वाले ठीकफोनू बनाकर खाते हैं, तो ओडिशा वाले चूड़ा कदंब.
और बनारस वाले चूंकि खानपान में कभी किसी की नकल नहीं करते, इसलिए वहां का चूड़ामटर ख्यात, विख्यात और कुख्यात तीनों है. बनारस में चूड़ामटर के लिए अलग मसाला बनता है और वह मसाला भी बनारसी ही बनाते हैं. इस तरह देखें, तो एक चूड़ा का जलवा अलग-अलग रूप में कई जगहों पर है, लेकिन दही-चूड़ा मूल रूप से बिहार और उससे सटे झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश या नेपाल में ही है.
पूर्वी उत्तर प्रदेश, झारखंड, नेपाल में इसका जलवा थोड़ा अलग होता है. खाने का तरीका भी अलग. दही चिउड़ा, दूध चिउड़ा, मीट चिउड़ा, आम चिउड़ा, गुड़ चिउड़ा, सब्जी चिउड़ा, फांका के रूप में चिउड़ा, भूंजा के रूप में चिउड़ा. और भी न जाने कितने तरीके से खाने का चलन है. चिउड़ा की इस लोकप्रियता की वजह भी है. पीढ़ियों से यह लोक-परंपरा का हिस्सा रहा है.
मकर संक्रांति के साथ जितनी लोकप्रियता खिचड़ी मेला की है, उतनी ही लोकप्रियता बेटियों के यहां कपड़ा-लत्ता के साथ चिउड़ा-लाई भेजने की भी है. पिछले कुछ दशक से तो दही-चिउड़ा बिहारी खानपान में नयी पहचान रखता है- सियासी खानपान की पहचान.
दही-चूड़ा एक सियासी उत्सव भी बन गया है. सभी बड़े नेता और दल इसका भोज देते हैं और हर बार कोई सियासी डीलिंग इस भोज में होना तय माना जाता है. ऐसा इसलिए भी कि संक्रांति के दिन ही खरमास खत्म होता है और खरमास के दिनों में बिहारी लोग मन ही मन शुभ काम का खाका बनाते रहते हैं, जिसे लागू करते हैं संक्रांति के दिन से ही.
अब जरा गौर करें. बिहारी फूड के नाम पर सबसे मशहूर ब्रांड लिट्टी-चोखा का है, लेकिन बिहारी नेता कभी उतने उत्साह से, ढोल-बाजा के साथ बड़ी तैयारी करके, मीडिया में प्रचारित करके लिट्टी-चोखा का भोज नहीं देते, जितने उत्साह से दही-चूड़ा का भोज देते हैं. ऐसा क्यों, यह नेता भी नहीं बता पायेंगे. दो वजहें हो सकती हैं.
एक तो यह कि दही-चूड़ा थोड़ा आसान है. दही और चूड़ा आसानी से मिल जाते हैं. बनाने-वनाने का झंझट नहीं होता. एक वजह यह भी हो सकती है कि चूंकि यह एक लोकपर्व से जुड़ता है, इसलिए भी इसका महत्व बढ़ जाता है. लेकिन बिहार में यह चूड़ा इतना क्यों प्रसिद्ध है, कब से प्रसिद्ध है, इसका बिहार से क्या खास रिश्ता रहा है, इसे वे नहीं जानते.
वे यह भी नहीं जानते कि आज जिस चूड़ा का जलवा भारत के लगभग सभी राज्यों में अलग-अलग रूप में, अलग-अलग नाम से है या भारत से बाहर नेपाल, बांग्लादेश, पाकिस्तान आदि तक इसकी हनक है, उस चूड़ा को अगर बिहारी चाहें, तो अपना दावा ठोककर खानपान की दुनिया में ‘ब्रांड बिहार’ बना सकते हैं. बिहारी चाहे तो इसे अपना फूड कहकर ब्रांडिंग कर सकते हैं और इसकी संभावना भी बनती है कि यह स्थापित हो जाये.
चूड़ा का वर्णन इतिहास में कम ही आता है, लेकिन तुलसीदास लिखित श्रीरामचरितमानस में इसका वर्णन है और यह सीधे बिहार के विशेष फूड आइटम के रूप में जुड़ता है. श्रीरामचरितमानस के बालकांड में राम-विवाह का प्रसंग है.
जब राम की बारात अयोध्या से चलती है, तो राजा जनक रास्ते में बारातियों के लिए कई जगह ठिकाने बनवाते हैं, जहां तरह-तरह के खानपान का प्रबंध होता है. जब बारात राजा जनक के इलाके में पहुंचती है, तब बारातियों के लिए जो खास चीज भेजी जाती है, वह दही-चूड़ा ही होता है. इस पर तुलसीदास ने लिखा है- ‘दधि चिउरा उपहार अपारा, भरि-भरि कांवरि चले कहारा।’
जानकार बताते हैं कि श्रीरामचरितमानस में इसका वर्णन खासतौर पर बिहार और नेपाल यानी राजा जनक के इलाके से ही जुड़ता है. इसे आधार बनाकर बिहार अपने दही-चूड़ा को अपने ब्रांड के रूप में स्थापित कर सकता है. लेकिन इसके आसार नहीं दिखते, क्योंकि बिहार अपनी सांस्कृतिक पहचान के मामले में, विशेषकर खानपान, दूसरे राज्यों की तरह जागरूक नहीं है. ऐसा होता तो आज बिहार का तिलकुट, अनरसा, लाई, बताशा, लकठो, पिठा, पकौड़ी जैसे कई ब्रांड इस राज्य के पास होते.