सरकार ऐसे बने तो…
संतोष उत्सुक व्यंग्यकार santoshutsuk@gmail.com जनाब को चुनाव में मजा नहीं आया, उन्होंने अपने गिने-चुने कार्यकर्ताओं की बैठक में दिये भाषण में हाथ लहराकर कहा- यह बहुत नाइंसाफी है कि विधानसभा की कुल सीटों की आधी से एक सीट भी ज्यादा आ जाये, तो सरकार निर्माण के लिए ईंट, सीमेंट, रेत और लोहा इकट्ठा हो जाता […]
संतोष उत्सुक
व्यंग्यकार
santoshutsuk@gmail.com
जनाब को चुनाव में मजा नहीं आया, उन्होंने अपने गिने-चुने कार्यकर्ताओं की बैठक में दिये भाषण में हाथ लहराकर कहा- यह बहुत नाइंसाफी है कि विधानसभा की कुल सीटों की आधी से एक सीट भी ज्यादा आ जाये, तो सरकार निर्माण के लिए ईंट, सीमेंट, रेत और लोहा इकट्ठा हो जाता है. बाकी बंदों ने चाहे जितनी आर्थिक, शारीरिक या दिमागी जान मारी हो, बेचारों को मुंह देखते रहना पड़ता है.
उनकी जिंदगी का स्वाद कसैला हो जाता है. निर्दलीय या स्वतंत्र लड़कर, जीतकर आनेवाले निढाल हो जाते हैं. देश में टू पार्टी सिस्टम लागू होना चाहिए, यह प्रणाली अमेरिका से मंगा लो फिर देखो मजा. जब एक पार्टी को अस्सी प्रतिशत सीटें मिलें, तब मजा आये. बहुमत हो तो ऐसा. यहां तो अच्छे काॅलेज में नब्बे प्रतिशत पर सीट नहीं मिलती. इनकी डिग्री से नौकरी भी पक्की नहीं होती. इनमें से अगर इक्यावन प्रतिशत भी हमारे हिस्से में आये, तो पूरी सरकार अपनी. मंत्री अपने, ठेकेदार अपने और अफसर सब भी अपने.
इन सरकारों में ऐसे लोग खूब शामिल होते हैं, जिन पर अपहरण व हत्या जैसे संगीन मामले लटक रहे होते हैं.सख्त कानून के पेंच खुले रखे जाते हैं, तभी तो गिरफ्त इनसे दूर भागती है और ये कुछ लोग करोड़ों लोगों को अपनी पसंद के निर्णयों की जेल में रखते हैं. यह आम तौर पर जाति, संप्रदाय, धर्म, बल, धन व मीठी बातों के दम पर जीतते हैं. उधर लाखों का कर्ज लेकर डिग्री हासिल करनेवाले अधिकतर को नौकरी मुश्किल से मिलती है.
इनकी तनख्वाह भी इतनी और ऊपर से पेंशन पर आयकर भी नहीं लगता. दूसरे लाखों पेंशनर्स की कमाई एक नंबर की होती है, तो टैक्स वसूला जाता है. ताकत हमेशा निरंकुशता की ओर अग्रसर होती है. हर एक के लिए मतदान अनिवार्य हो तब सरकार बने, जाति खत्म कर हम सिर्फ भारतीय रह जायें, एक क्रमांक के आधार पर पहचाने जायें. आरक्षण न हो तो एकता आ जाये.
उनका भाषण खत्म हुए ज्यादा देर नहीं हुई थी, खबर मिली उनके गिने-चुने समर्थकों ने ही उन्हें सरकारी अस्पताल के बिस्तर पर पहुंचा दिया. उनकी टूटी हुई टांग व फटे हुए सिर पर तीन दर्जन पट्टियां बंधी हुई थीं.
डाॅक्टर उनका इलाज करते हुए घबराये लग रहे थे. उनकी बीमार पत्नी पास बैठी हुई उन्हें निरंतर बुरा-भला कह रही थी. बेहद सकारात्मक बात यह रही कि उन्होंने अभी सिर्फ अभ्यास करने के लिए कुछ लोगों के सामने पहली बार कुछ कहा था. उनका चुनाव में खड़ा होना या सरकार में शामिल होना चार सौ बीस मील दूर था.
इतना लंबा सपना उनके शरीर से सहा नहीं गया, हड़बड़ाकर उठ गये और सोचने लगे कि दिमाग क्या-क्या गलत बातें सोच रहा था. सरकार कहीं ऐसे बनती है?
अभी उनकी पत्नी आराम से खर्राटे ले रही थी. उन्हें याद आया आज से सुबह की चाय बनाने की ड्यूटी उनकी है. उनकी घरेलू सरकार सुबह-सुबह गिरने से बच जाये, इसलिए उन्होंने उठने में देर नहीं की और चाय बनाने की तैयारी करने लगे.