इवीएम पर सवाल उठाना बंद करें
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in दुनिया कंप्यूटर और इंटरनेट के दौर से आगे निकल चुकी है. माना जा रहा है कि अगली सदी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की है. ऐसे में हमारे कुछेक राजनेता हमें पुराने दौर में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. अब तो यह दस्तूर हो गया है कि हर […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
दुनिया कंप्यूटर और इंटरनेट के दौर से आगे निकल चुकी है. माना जा रहा है कि अगली सदी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की है. ऐसे में हमारे कुछेक राजनेता हमें पुराने दौर में ले जाने की कोशिश कर रहे हैं.
अब तो यह दस्तूर हो गया है कि हर चुनाव से पहले इवीएम पर सवाल उठाये जाएं. सदियों तक सत्ता परिवर्तन हमेशा रक्तरंजित रहा है, लेकिन लोकतांत्रिक व्यवस्था ने सत्ता परिवर्तन को सहज कर दिया. लोकतंत्र का बुनियादी तत्व है कि मतदान प्रक्रिया निष्पक्ष हो. मतदाता को यह भरोसा हो कि उसका वोट वहीं पड़ा है, जहां वह देना चाहता था. इवीएम में गड़बड़ी के आरोपों में भले ही कुछ दम नहीं है, लेकिन बार-बार इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाये जाने से लोगों के मन में संशय उत्पन्न होता है.
सैय्यद शुजा नाम के एक हैकर ने लंदन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यह दावा किया था कि 2014 के आम चुनाव में इवीएम के साथ छेड़छाड़ की गयी थी. उन्होंने इसे हैक करने का दावा भी किया. भारतीय निर्वाचन आयोग ने हैकर के दावे को बेबुनियाद करार दिया है. आयोग का कहना है कि इवीएम से किसी भी तरह से छेड़छाड़ नहीं हो सकती.
ये मशीनें टेंपर प्रूफ हैं और इनमें वायरलेस माध्यमों से जुड़ने की व्यवस्था ही नहीं है. जबकि हैकर ने इवीएम में ट्रांसमीटर के जरिये कथित हैकिंग का दावा किया था. आयोग के विशेषज्ञों का कहना है कि एक तो इवीएम इंटरनेट से जुड़ी नहीं होती हैं और न ही इनमें ऐसा कोई प्रावधान होता है.
इसलिए रिमोट या कोई एक कमांड देकर इनको कब्जे में नहीं किया जा सकता है. दूसरे, लाखों मशीनों को खोल कर उनमें हेरफेर करना संभव नहीं है, जबकि अंतिम समय तक यह पता नहीं होता कि कौन-सी मशीन कहां इस्तेमाल की जायेगी.
इस पर आरोप प्रत्यारोप का दौर भी शुरू हो गया. कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि कांग्रेस इस मुद्दे पर ओछी राजनीति कर रही है. उनका आरोप था कि लंदन में जो प्रेस कॉन्फ्रेंस की गयी थी, उसे कांग्रेस ने आयोजित किया था.
उनका सवाल था कि कांग्रेस का अगर इससे कोई लेना-देना नहीं था, तो उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में कपिल सिब्बल क्या कर रहे थे? हाल में कोलकाता में हुई ममता बनर्जी की रैली में चुनाव सुधारों पर चार सदस्यीय समिति का गठन किया गया था. यह समिति मुख्य रूप से इवीएम की कार्यप्रणाली का मूल्यांकन करेगी और चुनाव आयोग को सुझाव देगी. समिति में कांग्रेस के अभिषेक मनु सिंघवी, सपा के अखिलेश यादव, बसपा के सतीश चंद्र मिश्रा और आम आदमी पार्टी के अरविंद केजरीवाल को रखा गया है. नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने तो इवीएम को ‘चोर मशीन’ तक ठहरा दिया.
उनका कहना था कि विपक्षी दलों को निर्वाचन आयोग और राष्ट्रपति से संपर्क करना चाहिए, जिससे इवीएम का इस्तेमाल रोका जा सके और पारदर्शिता के लिए मत पत्रों के इस्तेमाल की पुरानी व्यवस्था को वापस लाया जा सके. हालांकि, मुख्य निर्वाचन आयुक्त सुनील अरोड़ा ने स्पष्ट कर दिया है कि मत पत्रों से चुनाव कराने का कोई अर्थ नहीं है.
इवीएम पर जो विवाद है, उस विषय पर निर्वाचन आयोग हर तरह की आलोचना का सामना करने के लिए तैयार है. अगर किसी शख्स या राजनीतिक पार्टी को आपत्ति है, तो वह अपनी शिकायत दर्ज करा सकता है, लेकिन निर्वाचन आयोग किसी दबाव या डर या किसी अन्य वजह से मतपत्रों के जरिये चुनाव नहीं करायेगा.
कुछ समय पहले भी इवीएम की निष्पक्षता पर सवाल उठाये गये थे. चुनाव आयोग ने इन भ्रांतियों को दूर करने के लिए सभी दलों को इसे हैक कर दिखाने की चुनौती दी थी, लेकिन कोई भी पार्टी और उनका प्रतिनिधि ऐसा नहीं कर पाया.
यह तथ्य भी सबके सामने है जब मत पत्रों का इस्तेमाल होता था, तो सही स्थान पर मुहर न लगने के कारण लगभग 4 से 5 फीसदी वोट रद्द हो जाते थे. दूसरे, उत्तर प्रदेश, बिहार और पश्चिम बंगाल में बूथ कैप्चरिंग एक बड़ी समस्या थी.
इवीएम के इस्तेमाल से बूथ कैप्चरिंग संभव नहीं रही. आपको याद होगा कि कैसे कई -कई दिनों तक मतपत्रों की गिनती चलती रहती थी और कितनी देर में पूरे नतीजे आ पाते थे. और, कहीं गिनती पर विवाद हो गया, तो फिर पूरी प्रक्रिया दोहरायी जाती थी. मेरा मानना है कि इवीएम के साथ परची वाली मशीन वीवीपैट को जोड़ने की मांग उचित है.
वीवीपैट इवीएम की तरह ही होती है, लेकिन इसमें वोटिंग के समय एक परची निकलती है, जिसमें यह जानकारी होती है कि मतदाता ने किस उम्मीदवार को वोट डाला है. इससे मतदाता को यह पता चल जाता है कि उसका वोट सही उम्मीदवार को गया या नहीं.
ऐसा लगता है कि कुछेक राजनीतिक दलों ने एक नयी रणनीति अपना ली है. वे जब भी चुनाव हारते हैं, तो हार का जिम्मेदार इवीएम को ठहरा देते हैं. यह दिलचस्प है कि जो पार्टी जीतती है, वह इसके पक्ष में खड़ी हो जाती है और जो हारती है, वह इसके विरोध में खड़ी हो जाती है.
हाल में राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकारें इसी इवीएम के माध्यम से हुए मतदान से ही बनी हैं. अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी की दिल्ली विधानसभा चुनावों में इसी इवीएस से भारी जीत हुई थी, तब उन्हें इससे कोई शिकवा नहीं था. ज्यों ही दिल्ली नगर निगम और पंजाब का चुनाव हारी, तो उन्हें इसमें खामियां नजर आने लगीं.
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मिली हार के बाद बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी ने हार का जिम्मेदार इवीएम को ठहरा दिया था, लेकिन जब उन्हें गोरखपुर, फूलपुर और कैराना उपचुनावों में भारी जीत मिली, तो उन्होंने इवीएस की तारीफ में एक शब्द तक नहीं कहा. कर्नाटक में भी विपक्ष की सरकार इसी इवीएम के माध्यम से बनीं. यह दलील कैसे चलेगी कि जब आप जीतें, तो मशीन ठीक और जब हारें, तो मशीन खराब है.
यह सही है कि समय-समय पर राजनीतिक दल अपनी सहूलियत के अनुसार इस पर अपना रुख बदलते रहे हैं. एक दौर में भाजपा भी इवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठा चुकी है. 2009 में लोकसभा चुनावों में हार के बाद भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने इवीएम पर सवाल उठाये थे.
सुब्रमण्यम स्वामी तो इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट तक चले गये थे. कई राजनेता तर्क देते हैं कि यूरोप के देशों में अब भी मतपत्र की व्यवस्था जारी है. ये सभी छोटे-छोटे मुल्क हैं, जिनकी जनसंख्या हमारे एक बड़े राज्य से भी कम है. इन देशों में बूथ लूटने और अन्य चुनावी धांधलियों जैसी कोई समस्या नहीं है.
चुनाव आयोग के अनुसार भारत में 81 करोड़ से अधिक मतदाता हैं. यह संख्या अमेरिका, यूरोप के सभी मतदाताओं को मिला दें, तो उनसे भी ज्यादा है. हमारी चुनौतियां यूरोप और अमेरिका से एकदम भिन्न हैं. इसलिए इवीएम पर बेवजह के सवाल उठाने तत्काल बंद होने चाहिए.