दोबारा जन्म लेने का जी चाहता है

।। शैलेश कुमार ।। प्रभात खबर, पटना अब जाकर हमारी आत्मा को शांति मिली है. हमें तो लगा था कि हमें कभी न्याय मिलेगा ही नहीं, लेकिन सीबीआइ के फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले ने फिर से हमें बिहार की धरती पर जन्म लेने को प्रेरित किया है. हम वे तीनों छात्र हैं, जिन्हें महज […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 26, 2014 6:08 AM

।। शैलेश कुमार ।।

प्रभात खबर, पटना

अब जाकर हमारी आत्मा को शांति मिली है. हमें तो लगा था कि हमें कभी न्याय मिलेगा ही नहीं, लेकिन सीबीआइ के फास्ट ट्रैक कोर्ट के फैसले ने फिर से हमें बिहार की धरती पर जन्म लेने को प्रेरित किया है. हम वे तीनों छात्र हैं, जिन्हें महज दो रु पये के लिए 28 दिसंबर, 2002 को आशियाना नगर में डकैत बता कर फरजी मुठभेड़ में मार दिया गया था.

हमारा कसूर बस इतना था कि जिस पीसीओ से हमने फोन किया था, उसमें दो रु पये का बिल ज्यादा आया था और इसकी शिकायत हमने दुकानदार से कर दी थी. पहले तो हमें मार कर अधमरा कर दिया गया और रही-सही कसर पुलिसवालों ने पूरी कर दी. हमें उस संसार से विदा कर दिया, जहां रह कर हम न जाने क्या-क्या करना चाहते थे. कितने ही रंग-बिरंगे सपने संजो रखे थे. सोचा था कि अच्छे से पढ़ाई-लिखाई कर और कुछ बन कर मां-बाप के सभी सपनों को पूरा कर देंगे.

देश और दुनिया की सैर करेंगे. दोस्तों के साथ कॉलेज की जिंदगी के मजे लेंगे. अपने राज्य और देश की उन्नित का हिस्सा बनेंगे. पर हमारे सारे सपने हमें तब बिखरते नजर आने लगे, जब गोलियां खाने के बाद धीरे-धीरे सांसें हमारा साथ छोड़ने लगीं. जिस शरीर में सब कुछ कर जाने की फुरती थी, वह भी धीरे-धीरे शिथिल पड़ने लगा. जिस मन को विश्वास था कि हम एक दिन जरूर कामयाब होंगे, वह मन भी धीरे-धीरे सुस्त पड़ने लगा और जिन आंखों ने ढेर सारे सपने देखे थे, उसके आगे भी धीरे-धीरे धुंधलापन छाने लगा. आखिरकार शरीर ने हमारा साथ छोड़ दिया. हम बहुत रोये. बहुत चिल्लाये, पर ऐसा लगा कि हमारी सुननेवाला कोई नहीं है. हमारे घरवाले हमारी लाश के सामने रो रहे थे. हम उन्हें बार-बार कह रहे थे, ‘‘मां क्यों रो रही हो, आपके पास ही तो हैं हम.

पापा क्यों आंसू बहा रहे हैं आप, देखिए न, यहीं तो हैं हम.’’ पर वे तो हमें देख ही नहीं रहे थे. ऐसा लग रहा था कि हम वहां होते हुए भी नहीं थे. तब हमें एहसास हुआ कि अब हम उस संसार का हिस्सा नहीं रहे, जिसे हमने अपना माना था और जिसे स्वर्ग बनाने का सपना हमने संजो रखा था. जब लोग हमारे समर्थन में आये, हमें और हमारे परिवारवालों को न्याय दिलाने के लिए सड़कों पर उतरे, हमारे लिए पुलिस की लाठियां भी खायीं, तो हमारी उम्मीद बंधीं कि भले ही हम दोबारा जिंदा नहीं हो पायें, लेकिन कम-से-कम हमें न्याय तो जरूर मिलेगा.

जब राज्य सरकार ने 14 फरवरी, 2003 को मामले की जांच सीबीआइ को सौंपी और 29 मार्च, 2003 को सीबीआइ ने आरोप पत्र दाखिल किया, तो न्याय पाने की उम्मीद और बंधीं. पर न्याय की लड़ाई भी खूब लंबी चली. हमारी आत्मा ने मान लिया कि यह संसार हमारे रहने लायक था ही नहीं, लेकिन 12 साल बाद दोषियों को सजा मिलने के बाद हमारे अंदर फिर से इच्छा जगी है कि हम अपने ही घर में दोबारा नये रूप में जन्म लें. जो सपने कल पूरे न हो सके, उन्हें हम कल फिर पूरा करें.

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