वामपंथी उग्रवाद पर सरकारी कवायद

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 27 जून को नक्सली हिंसा से त्रस्त दस राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस प्रमुखों की बैठक बुलायी है. सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वामपंथी उग्रवाद पर नियंत्रण उसकी प्राथमिकताओं में से एक है. कार्यभार संभालने के बाद इस मसले पर गृह मंत्री की यह […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 26, 2014 6:22 AM

केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने 27 जून को नक्सली हिंसा से त्रस्त दस राज्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस प्रमुखों की बैठक बुलायी है. सरकार ने पहले ही स्पष्ट कर दिया है कि वामपंथी उग्रवाद पर नियंत्रण उसकी प्राथमिकताओं में से एक है. कार्यभार संभालने के बाद इस मसले पर गृह मंत्री की यह पहली बैठक होगी, जिसमें आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, उड़ीसा, तेलंगाना, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल के अधिकारी शामिल होंगे. इस बैठक में राज्य पुलिस और केंद्रीय सुरक्षा बलों के बीच सामंजस्य की चुनौतियों और भविष्य की रणनीति पर गंभीर विमर्श की उम्मीद है.

नक्सल हिंसा से प्रभावित इलाकों में चल रहे विकास कार्यो की समीक्षा भी संभावित है. गृह मंत्रालय ने इन इलाकों को ‘सर्वाधिक खतरनाक क्षेत्र’ की संज्ञा देते हुए वहां कार्यरत सुरक्षाकर्मियों को जम्मू-कश्मीर में सेवा दे रहे सुरक्षा बलों के बराबर या अधिक भत्ते देने का निर्णय किया है. इस बैठक से और संबंधित घोषणाओं से सकारात्मक पहलों की आशा है. 2005 से अब तक इन इलाकों में जारी हिंसा में 6,489 लोगों की जानें जा चुकी हैं, जिनमें 2,677 नागरिक, 1,697 सुरक्षाकर्मी और 2,115 उग्रवादी हैं. हालांकि, पिछले कुछ वर्षो से मरनेवालों की संख्या में कमी आ रही है, लेकिन अभी भी वामपंथी उग्रवाद आंतरिक सुरक्षा के लिए एक गंभीर चुनौती बना हुआ है, जिससे निपटने के लिए नये सिरे से रणनीति बनाने की आवश्यकता है. इस प्रक्रिया में सरकारों और सुरक्षा बलों को पर्याप्त सावधानी व संवेदनशीलता दिखाने की जरूरत है.

ऐसे कई मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें माओवादी उग्रवादियों के विरुद्ध कार्रवाई के नाम पर सुरक्षा बलों द्वारा निदरेष नागरिकों के जान-माल का नुकसान किया गया है. कुख्यात सलवा जुडुम के अत्याचार और ऑपरेशन ग्रीन हंट के दौरान बुनियादी मानवाधिकारों के हनन उतने ही गंभीर सवाल हैं, जितना कि माओवादी उग्रवादियों की हिंसा. सरकारों को भारतीय राज्य को चुनौती दे रहे उग्रवादियों के विरुद्ध बदले की भावना से काम नहीं करना चाहिए. सरकारें यह भी सुनिश्चित करें कि निदरेष नागरिक किसी प्रताड़ना के शिकार न हों. उग्रवादियों को समाज की मुख्यधारा में लाने की राजनीतिक कोशिशें भी होनी चाहिए.

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