मोदी सरकार का पहला महीना
।। आकार पटेल ।। वरिष्ठ पत्रकार बेमानी मामलों पर समय बरबाद नहीं करनेवाले प्रशासक के बतौर नरेंद्र मोदी की छवि उनके इस आदेश से भी मजबूत हुई है, जिसमें उन्होंने गृह मंत्रालय की डेढ़ लाख पुरानी फाइलों को नष्ट करने का आदेश दिया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अपना पहला महीना पूरा कर […]
।। आकार पटेल ।।
वरिष्ठ पत्रकार
बेमानी मामलों पर समय बरबाद नहीं करनेवाले प्रशासक के बतौर नरेंद्र मोदी की छवि उनके इस आदेश से भी मजबूत हुई है, जिसमें उन्होंने गृह मंत्रालय की डेढ़ लाख पुरानी फाइलों को नष्ट करने का आदेश दिया है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बतौर प्रधानमंत्री अपना पहला महीना पूरा कर लिया है. अभी भी वे उस दौर से गुजर रहे हैं, जिसे राजनीति में हनीमून की अवधि की संज्ञा दी जाती है. यह वह अवधि होती है, जिसमें मतदाता किसी नयी सरकार को समझने-बूझने का समय देते हैं. सरकार से जनता की बहुत सारी अपेक्षाएं हैं, लेकिन उन्हें पूरा करने की मांग में ढिलाई है. इस अवधि में अभी उदारता और धैर्य है.
आइए, हम पिछले एक महीने में हुई गतिविधियों और घटनाओं के आधार पर नरेंद्र मोदी की उपलब्धियों का आकलन करने की कोशिश करें. और, इसी थोड़े से समयावधि के आधार पर यह पूर्वानुमान लगाने का प्रयास करें कि वे इस बिंदु से आगे कैसे बढ़ेंगे.
आम तौर पर कहें, तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काम-काज के अपने पसंदीदा अंदाज को ही जारी रखा है, जो कि राजनेताओं के बजाय अफसरशाही के माध्यम से शासन करना है.
वरिष्ठ अधिकारियों, विशेष रूप से विभागों के प्रमुख के रूप में काम कर रहे सचिवों को कहा गया है कि वे निर्भीक होकर काम करें. उनको यह भरोसा दिलाया गया है कि नरेंद्र मोदी उनके निर्णयों का मजबूती से समर्थन करेंगे, और वे किसी समस्या का सामना करने की स्थिति में (इसका अर्थ यह कि अगर उनके मंत्री की तरफ से कोई परेशानी हो) सीधे प्रधानमंत्री को संपर्क कर सकते हैं. इसी तरीके से मोदी ने गुजरात में शासन चलाया था, और उनकी व्यक्तिगत लोकप्रियता और स्पष्ट जनादेश का साफ मतलब है कि दिल्ली में भी मंत्रीगण उनके तौर-तरीकों के अनुरूप काम करना सीख लें.
उनके मंत्रियों को नरेंद्र मोदी के शासन के काम-काज के अंदाज के अन्य पहलू से भी परिचित करा दिया गया है. उन्होंने मंत्रियों को सरकार के कार्य-काल के पहले सौ दिनों में किये जानेवाले परिणामोत्पादक और निर्दिष्ट समय-सीमा के भीतर पूरा हो सकनेवाले कार्यो की सूची तैयार करने का निर्देश दिया है.
नरेंद्र मोदी के कार्य-काल का पहला संकट छोटा था, जिसे टाला जा सकता था. यह संकट उनके विदेशी मेहमानों के साथ हिंदी में बात करने के लिए मिली प्रशंसा के बाद उठ खड़ा हुआ. यह अपने-आप में बड़ी अजीब बात थी, क्योंकि वे अच्छी अंगरेजी नहीं बोल सकते हैं और उन्हें मजबूरन हिंदी में ही बात करना है (जब तक वे गुजराती में बोलने की जिद्द नहीं करते हैं!). यूट्यूब पर उपलब्ध उनके पसंदीदा ‘वाइब्रैंट गुजरात’ की एक बैठक के एक वीडियो में इसे देखा जा सकता है, जिसमें नरेंद्र मोदी अंगरेजी बोलने की कोशिश कर रहे हैं और ‘ऑप्टिमिस्टिक’ शब्द को ‘पेसीमिस्टिक’ बोल जाते हैं. इसमें वे खुद को ‘पेसीमिस्टिक’ यानी निराशावादी व्यक्ति कहते हैं, जबकि वे इसके उलटा कहना चाहते थे.
इस तरह से एक मजबूरी के आधार पर माहौल बनाने की कोशिश की गयी. विदेशी मेहमानों से हिंदी में बात करने की खबर और उस पर प्रतिक्रिया से प्रोत्साहित होकर नरेंद्र मोदी ने अपने अधिकारियों को भी हिंदी का प्रयोग करने का निर्देश जारी कर दिया. एक वरिष्ठ अधिकारी ने इस निर्देश का दायरा बढ़ाते हुए इसे सोशल मीडिया तक कर दिया. इस बात की तुरंत तीखी प्रतिक्रिया तमिलों की ओर से हुई, जिनमें नरेंद्र मोदी के सहयोगी भी शामिल थे. इन लोगों ने इस निर्देश को शीघ्रातिशीघ्र वापस लेने की मांग की. यह तथ्य कि संघीय सरकार इस मामले से जिस तरह से पीछे हटी, यह दिखाता है कि इस पर मोदी का रुख लचीला था, और यह पूरा मसला दरकिनार कर दिया गया.
यह लचीलापन एक अच्छी बात है और उनके जोरदार बहुमत के बावजूद नरेंद्र मोदी को भविष्य में इसकी जरूरत होगी. मोदी सरकार के सामने दूसरा संकट इराक में भारतीयों के अपहरण के रूप में सामने आया. इस मामले में फिर मोदी ने समझदारीपूर्ण रवैया अपनाया. उन्होंने बेमतलब बलशाली और राष्ट्रवादी बयानबाजी से परहेज किया है, जिसका उन्होंने अपने चुनाव अभियान में खूब प्रयोग किया था. वे इस कठिन स्थिति से निपटने के लिए गंभीर विचार-विमर्श कर रहे हैं.
जहां तक स्टॉक मार्केट की बात है, तो बाजार प्रधानमंत्री के अब तक के काम-काज से संतुष्ट नजर आ रहा है. इराक की परिस्थितियों से तेल की कीमतों पर पड़नेवाले बुरे प्रभाव की खबरों के बावजूद मोदी की नीतियां और भावनाएं सामान्यत: सकारात्मक बनी हुई हैं. ऐसा इस कारण से हो रहा है, क्योंकि वित्त मंत्री अरुण जेटली उन्हीं बातों पर बार-बार जोर दे रहे हैं, जो बाजार सुनना चाह रहा है. जेटली कहते रहे हैं कि केंद्रीय बजट का जोर वित्तीय मजबूती और घाटे के प्रबंधन पर रहेगा.
इस बारे में एक संकेत मोदी द्वारा रेल यात्रा ी किराये और माल ढुलाई भाड़े में बढ़ोतरी को लागू करने के रूप में सामने आया, जिसे यूपीए सरकार ने रोक रखा था. मोदी सरकार के इस निर्णय का विपक्ष द्वारा कोई खास विरोध नहीं हुआ. इस बात को मोदी तुरंत रेखांकित करेंगे.
बेमानी मामलों पर समय बरबाद नहीं करनेवाले प्रशासक के तौर पर नरेंद्र मोदी की छवि उनके इस आदेश से भी मजबूत हुई है, जिसमें उन्होंने गृह मंत्रालय की तकरीबन डेढ़ लाख पुरानी फाइलों को नष्ट करने का आदेश दिया है. नरेंद्र मोदी ने सूचनाओं के निर्गत होने पर कठोर नियंत्रण रखा है. उनके मंत्रियों और सचिवों में उनकी नाराजगी का भय ऐसा है कि सभी चुप रहना ही मुनासिब समझ रहे हैं. भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को भी यह संदेश मिल चुका है और वे भी बहुत अधिक नहीं बोल रहे हैं.
कुल मिलाकर, यह कहा जा सकता है कि प्रधानमंत्री के रूप में नरेंद्र मोदी के कार्य-काल का पहला महीना बहुत ही उत्कृष्ट रहा है. उनके द्वारा की गयी गलतियों की संख्या बहुत कम रही है, और जहां उनके कदम लड़खड़ाये, उन्होंने संभालने में तनिक भी देरी नहीं की.
इन सभी बातों के बावजूद उनके सरकार से संबंधित बड़े और महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिये जाने अभी बाकी हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ के साथ बातचीत में नरेंद्र मोदी ने दोनों देशों के बीच शांति-प्रक्रिया को बहाल रखते हुए उसे आगे ले जाने की बात कही थी, लेकिन आज महीना बीत जाने के बाद भी उन्होंने अपनी घोषणा के अनुरूप विदेश सचिवों की बैठक का समय निर्धारित नहीं किया है.
सबसे महत्वपूर्ण यह है कि क्या मोदी यूपीए सरकार की कल्याणकारी योजनाओं को जारी रखेंगे या रद्द कर देंगे. दो सप्ताह के भीतर पेश हो रहा केंद्रीय बजट हमें इस सवाल का जवाब देगा.