बाल यौन शोषण पर चुप न रहें
कुमार आशीष एसपी, किशनगंज आये दिन देशभर में छोटे बच्चे-बच्चियों के साथ यौन शोषण-उत्पीड़न के मामले प्रकाश में आ रहे हैं. ज्यादातर मामलों में कुकृत्य करनेवाले अपने खास, जान-पहचान, रिश्तेदार या स्कूल कर्मचारी इत्यादि होते हैं. ऐसी घटनाएं एक सभ्य समाज के लिए धब्बा हैं और हमारी अंतरात्मा को झकझोर देती हैं. महिला एवं बाल […]
कुमार आशीष
एसपी, किशनगंज
आये दिन देशभर में छोटे बच्चे-बच्चियों के साथ यौन शोषण-उत्पीड़न के मामले प्रकाश में आ रहे हैं. ज्यादातर मामलों में कुकृत्य करनेवाले अपने खास, जान-पहचान, रिश्तेदार या स्कूल कर्मचारी इत्यादि होते हैं. ऐसी घटनाएं एक सभ्य समाज के लिए धब्बा हैं और हमारी अंतरात्मा को झकझोर देती हैं.
महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार की ओर से जारी एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी कि देश में प्रत्येक दूसरा बच्चा यौन शोषण का शिकार हुआ है, जिनमें 52.94 प्रतिशत लड़के और 47.06 प्रतिशत लड़कियां हैं.
ज्यादा बाल यौन शोषण की घटनाएं क्रमश: आसाम (57.27 प्रतिशत), दिल्ली (41 प्रतिशत), आंध्र प्रदेश (33.87 प्रतिशत) और बिहार (33.27 प्रतिशत) में रिपोर्ट हुई हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक भी विगत कई वर्षों से बाल यौन शोषण के अपराधों में लगातार वृद्धि होती जा रही है.
समाज में ऐसी घटनाओं पर चुप्पी साधे रहना भी एक बड़ी समस्या है और ऐसी अवधारणा है कि घर से बाहर ऐसी बातें जाने न पाएं, वरना लोग क्या कहेंगे? आज भी लोग बाल यौन शोषण की समस्या पर बात करने में असहज महसूस करते हैं.
विभिन्न सर्वेक्षणों के मुताबिक, 34 प्रतिशत बच्चों के साथ इस अपराध में उनके घर का ही कोई व्यक्ति संलिप्त होता है, 59 प्रतिशत घटनाओं में परिवार के विश्वसनीय समझे जानेवाले पारिवारिक मित्र या हितैषी होते हैं. यौन शोषण के अधिकतर मामलों में बच्चों की उम्र नौ साल से कम पायी गयी है.
कच्ची उम्र में ऐसे घृणित अपराधों का शिकार बने बच्चों के व्यक्तित्व का विकास कुंठित हो जाता है और बच्चों के कोमल मन-मस्तिष्क में अपरिवर्तनीय मानसिक विकारों का बीजारोपण होता है, जो आगे जाकर इन्हें जघन्य अपराध की दुनिया में भी धकेल सकता है. जरूरत है कि हम इन पीड़ित बच्चों के अधिकारों की रक्षा के लिए उन्हें एक स्वस्थ माहौल दें.
जागरूकता फैलाना इसके लिए सबसे पहली कड़ी साबित हो सकती है- गैर सरकारी संस्थाएं, जागरूक नागरिक संगठन, नये व प्रभावी कड़े कानून, पुलिस की ससमय कठोर कार्रवाई, मीडिया की पहल तथा सोशल मीडिया के जरिये इस बारे में चेतना फैला कर एक नया परिवेश बनाने की कोशिश की जा सकती है.
सोशल मीडिया पर सकारात्मक रूप से इसके विभिन्न आयामों और पहलुओं को समझने के लिए विभिन्न स्तरों पर खुल कर चर्चा की जा रही है. अब बच्चों को लैंगिक शिक्षा शुरुआती स्तर से ही देने की जरूरत है.
जरूरत है बच्चों को ‘गुड टच और बैड टच’ में फर्क समझाने की. बार-बार कोई परिचित चॉकलेट या अन्य कोई प्रलोभन दें, तो उसको अपने मां-बाप को बताने की, कुछ भी अलग-सा महसूस हो, तो उसके खिलाफ आवाज उठाने की, ‘नो’ कह सकने की.
माता-पिता अपने बच्चों को अपना दोस्त बनाएं, ताकि बच्चे अपना सुख-दुख उनसे शेयर कर सकें. यदि बच्चे उनके साथ हुए किसी प्रकार के शोषण के बारे में बताते हैं, तो उनकी बातों को सुनें, उन पर विश्वास करें और उन्हें बताएं कि जो कुछ उनके साथ हुआ, उसमें उनकी कोई गलती नहीं है.
घर हो या बाहर, कभी कोई भी गलत करने को कहे, तो बिल्कुल उसकी बात मत मानो और तुरंत हमें खबर करो. हम तुम्हारे साथ हैं, तुम बिल्कुल भी अकेले नहीं हो.
बिहार के हर पुलिस थाने में एक वरीय पुलिस पदाधिकारी को चाइल्ड वेलफेयर ऑफिसर के रूप में नामित किया गया है, जिसकी सूचना थाने के सूचनापट पर लगी होती है. आप निस्संकोच उनसे संपर्क कर सकते हैं.
हर जिले में पुलिस उपाधीक्षक (मुख्यालय) को इसके लिए नामित किया गया है, जो जिलेभर की ऐसी शिकायतों को खुद देखते हैं और त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करवाते हैं. सूचना देनेवाले का नाम, पता और अन्य डिटेल्स गोपनीय रखा जाता है.
बच्चों के हित को ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा एक विशेष अधिनियम पॉक्सो एक्ट, 2012 बनाया गया है. पॉक्सो- प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्राॅम सेक्सुअल अफेंसेस अर्थात लैंगिक उत्पीड़न से बच्चों का संरक्षण.
पॉक्सो एक्ट के तहत नाबालिग बच्चों के साथ होनेवाले अपराधों के मामलों में कार्रवाई की जाती है. इसके तहत बच्चों को यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे गंभीर अपराधों से सुरक्षा प्रदान की जाती है. पुलिस की यह जिम्मेदारी है कि मामले को 24 घंटे के अंदर बाल कल्याण समिति की निगरानी में लाये, ताकि सीडब्ल्यूसी बच्चे की सुरक्षा और संरक्षण के लिए जरूरी कदम उठा सके.
यदि किसी बच्चे का यौन शोषण हुआ है और अभियुक्त भी किशोर ही है, तो उस पर किशोर न्यायालय में केस चलाया जायेगा. इस एक्ट में नियम है कि यदि कोई व्यक्ति जानता है कि किसी बच्चे के साथ गलत हुआ है, तो उसे इसकी रिपोर्ट थाने में देनी चाहिए. यदि वह ऐसा नहीं करता है, तो उसे छह महीने तक की जेल हो सकती है. पोर्नोग्राफी के लिए बच्चों का इस्तेमाल करने के मामले में उम्रकैद हो सकती है.
अपराध नियंत्रण सिर्फ पुलिस-प्रशासन तक ही सीमित नहीं है, बल्कि इसका दायरा समाज के हरेक तबके से जुड़ा हुआ है. अपराध नियंत्रण को लेकर एक जनांदोलन की आवश्यकता है, जिसमें हर नागरिक अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने दायित्वों के प्रति भी जागरूक होकर अपने कर्तव्य निभाए.