शादियों के व्यवसायीकरण को रोकने की जवाबदेही हमारी भी
शादी आमतौर पर एक परंपरा है और इसको हम अच्छी तरह से निभाने की कोशिश करते हैं, लेकिन शादियों का भी व्यवसायीकरण हो गया है. हमारे गांव व समाज में जो भी शादियां होती हैं तो रिश्तों की बात कम और दहेज की बात ज्यादा होती है. हालांकि दहेज लेने व देने को लेकर कानून […]
शादी आमतौर पर एक परंपरा है और इसको हम अच्छी तरह से निभाने की कोशिश करते हैं, लेकिन शादियों का भी व्यवसायीकरण हो गया है. हमारे गांव व समाज में जो भी शादियां होती हैं तो रिश्तों की बात कम और दहेज की बात ज्यादा होती है. हालांकि दहेज लेने व देने को लेकर कानून है, परंतु इसमें सख्त प्रावधान की जरूरत है.
गांव से लेकर शहरों तक में अक्सर यह सुनने को मिलता है कि दहेज नहीं मिलने या कम मिलने के कारण बहू-बेटियों को प्रताड़ित किया जाता है. हमलोगों को यह सोचना होगा कि हमारे घर में किसी की बेटी बहू बनकर आती है, तो हमारी बेटी या बहन भी दूसरे के घर की बहू बन कर जाती है. इसलिए नैतिक रूप से भी हमारी जवाबदेही बनती है कि दहेज का बहिष्कार करें.
नेहा पांडेय, बगहा-दो, मंत्री मार्केट