गरीबी का घणा महत्व है

आलोक पुराणिक वरिष्ठ व्यंग्यकार puranika@gmail.com चालू विश्वविद्यालय द्वारा गरीबी, खेती और बजट पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में जिस निबंध ने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया है, वह है-गरीबी का हमारे आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन में घणा महत्व है. राजनीति में गरीबी का इतना महत्व है कि इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ के नारे पर […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 4, 2019 7:46 AM

आलोक पुराणिक

वरिष्ठ व्यंग्यकार

puranika@gmail.com

चालू विश्वविद्यालय द्वारा गरीबी, खेती और बजट पर आयोजित निबंध प्रतियोगिता में जिस निबंध ने प्रथम पुरस्कार प्राप्त किया है, वह है-गरीबी का हमारे आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक जीवन में घणा महत्व है. राजनीति में गरीबी का इतना महत्व है कि इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ के नारे पर चुनाव जीता था और करीब पचास साल बाद उनके पौत्र राहुल गांधी गरीब-हित में गरीबों के लिए इनकम गारंटी की मांग कर रहे हैं.

इससे पता चलता है कि नेताओं में गरीबी के प्रति गहरा क्रेज है. कुछ नेताओं में तो भय तक व्याप्त है कि अगर गरीबी खत्म हो गयी, तो फिर वे क्या खत्म करने का वादा करेंगे. एक नेता गरीबी हटाने की नीति लेकर आता है, तो दूसरा कहता है, ये तो गरीबी हटाने में हमारी नकल कर रहा है. असली गरीबी-हटावक हम ही हैं. डर यह है कि प्रतिद्वंदी पार्टी के नेता ने ही गरीबी हटा दी, तो हम क्या हटायेंगे. हर नेता चिंतित है कि कहीं गरीबी हट न जाये, काम भर के गरीब तो बचे ही रहने चाहिए, ताकि उन्हें लेकर अगले पचास साल बाद भी वादे हो सकें.

गरीबी का सांस्कृतिक महत्व है. सत्तर अस्सी के दशक में जो हिट फिल्में बनती थीं, उनमें हीरो गरीब होता था और हीरोईन अमीर होती थी. आखिर में हीरोईन हीरो की हो जाती थी, इस तरह की फिल्में देख कर बहुत नौजवान कतई आलसी टाइप हो लिये थे, वह सिर्फ अमीर कन्या से सेटिंग करने में बिजी रहते थे.

इसी वजह सत्तर के दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था की उत्पादकता निम्न स्तर पर थी और तमाम बजटों में घाटा दिखाया जाता था. अस्सी-नब्बे के दशकों में नौजवान कुछ कर्मण्य हुए और उन्हें समझ में आया कि सुंदरियां इंडियन नौजवानों को नहीं, नाॅन रेजीडेंट इंडियन एनआरआई नौजवानों को लिफ्ट देती हैं. फिर भारतीय नौजवानों ने कड़ी मेहनत की और भारतीय अर्थव्यवस्था को नयी ऊंचाइयां दीं.

अब नौजवान टीवी पर न्यूज देखता है, तो उसे बताया जाता है कि वह वाली पेंशन मुफ्त मिलेगी, यह वाला भत्ता मुफ्त मिलेगा. इतनी इनकम की तो गारंटी ही है. रंगीन टीवी चुनाव से पहले वो वाली पार्टी मुफ्त में देगी और बीस किलो चावल उस पार्टी से मुफ्त आया करेगा.

बिजली मुफ्त करने का वादा उस पार्टी ने कर दिया है और पानी तो मुफ्त उस पार्टी ने चला ही रखा है. मुफ्तखोरी के ऐसे महोत्सव चल रहे हैं कि अच्छा खासा कर्मठ नौजवान भी घर बैठ कर भूतों वाले सीरियल देखने में बिजी हो जाये. मांएं बेटों को कुछ काम करने के लिए डपटती हैं, तो बेटे जवाब देते हैं- मां घबरा मत, तीन हजार रुपये पेंशन वहां से आयेगी, पांच सौ रुपये वहां से आयेंगे. बच्चा होगा, तो मुख्यमंत्री गर्भवती स्त्री स्कीम में पंद्रह सौ रुपये मिलेंगे.

संभव है कि कुछ दिनों बाद नेतागण पहरा बिठा दें कि कहीं कोई नौजवान कुछ काम करके अपनी गरीबी दूर न कर ले. गरीबी दूर हो गयी, तो फिर क्या खत्म करने के वादे पर चुनाव जीतेंगे. इस तरह से हम समझ सकते हैं कि गरीबी का घणा राजनीतिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व है.

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