खालिस प्रेम का वसंत

मुकेश कुमार युवा रचनाकार harpalmukesh@gmail.com प्रेम पर जितना लिखा जाये कम है. प्रेम पर लिखते हुए दुनिया के सारे शब्द भी कम पड़ जाते हैं. कबीर ने सच ही कहा है- ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय’. सचमुच कबीर ने मनुष्य के हर महीन […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | February 13, 2019 6:16 AM
मुकेश कुमार
युवा रचनाकार
harpalmukesh@gmail.com
प्रेम पर जितना लिखा जाये कम है. प्रेम पर लिखते हुए दुनिया के सारे शब्द भी कम पड़ जाते हैं. कबीर ने सच ही कहा है- ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ पंडित भया न कोय, ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय’. सचमुच कबीर ने मनुष्य के हर महीन भाव को भी पकड़ लिया.
प्रेम में कई बार जब सारी व्याख्याओं के बाद भी संप्रेषण अधूरा रह जाता है, तब एक मौन ही सब कुछ कह देता है. ऐसा होता है प्रेम. जिसने कभी इश्क नहीं किया, वह इसको शायद ही समझ पाये. पर जिसने अपने जीवन में इश्क की कशिश को महसूस किया है, वही समझ सकता है. जनाब, मोहब्बत के इस मर्ज में कभी मजा भी है, तो कभी सजा भी है.
मोहब्बत का न तो कोई खास दिन होता, न ही इंसान के किसी भी एहसास के लिए कोई तय वक्त हो सकता है. वह तो अलग-अलग मौकों पर खुद एहसास बनकर प्रदर्शित होता है, जिसे हम जीते हैं. बाजार ने अब मोहब्बत के लिए भी एक दिन बना लिया है.
जब उसका मन एक दिन से भी नहीं माना, तो उसने कई दिन बना दिये, ताकि आप कभी टेडी खरीदें, कभी चॉकलेट खरीदें, कभी फूल खरीदें. अगर आप पैसे वाले हों, तो महंगे से महंगा गिफ्ट खरीदें, क्या फर्क पड़ता है. जब देनेवाला राजी तो लेनेवाले को क्यों परेशानी होगी.
वैलेनटाइन डे के बहाने जब से लेन-देन का मामला आया है, प्यार थोड़ा शर्मिंदा तो हुआ ही है. वह कभी महंगे-महंगे गिफ्ट नहीं मांगता. वह वक्त मांगता है, लिहाज मांगता है. विश्वास, समर्पण और सच्चाई तो उसकी पहली पसंद है ही.
लेकिन, इंसान की फितरत कुछ ऐसी बदली कि अब इश्क में भी मिलावट हो गयी. अब कभी इश्क जिंदगी को जीने का बहाना है, तो कभी इश्क स्कूल, कॉलेज, ऑफिस में टाइम पास करने का जरिया है. हो सकता है आपका प्रेम आपको कई बार मुश्किलों के भंवर से दूर भगाये, एक नयी ऊर्जा से भर दे, लेकिन कई बार आपके इश्क की नाकामी आपको दुखी भी कर सकता है. दूर तलक सिर्फ अंधेरा ही अंधेरा दिखाई देता है.
पहले इश्क में फूल फेंके जाते थे और अब एसिड! यह कैसा प्रेम है भाई?
अगर आपको इकरार की गुंजाइश समझ में आती है, तो इनकार को भी समझना चाहिए. अपने मतलबी प्रेम के प्रतिशोध में संयम नहीं खोना चाहिए और अपने साथी को ब्लैकमेल नहीं करना चाहिए. यह याद कीजिए कि उसके साथ आप ने कितने ही मधुर पल बिताये हैं. अगर आप ऐसा नहीं करते, तो यह इश्क नहीं हो सकता.
यह सच है बाजारी प्रेम के इस दौर में लोग इश्क का झंडा लहराते तो बड़े जोर-शोर से हैं, पर उन्हें इश्क के किले को फतह करने का कोई शौक नहीं, बस थोड़ी देर के लिए इसके थ्रिल को फील करने का जोशभर है. लेकिन, यह भी उतना ही बड़ा सच है कि इस मिलावटी प्रेम के दौर में भी खालिस प्रेम ही बचा रहेगा. ऐसे जोड़े बचे रहेंगे. बची रहेगी यह प्रेम की दुनिया और बचा रहेगा यह मधुर वसंत.

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