पुलवामा आतंकी हमला भारत के विरुद्ध बरसों से चल रहे पाकिस्तान के छद्म युद्ध की एक कड़ी है. इस घटना ने फिर यह साबित किया है कि कश्मीर में अलगाववाद और आतंकवाद को संरक्षण एवं समर्थन देने तथा हिंसक हमलों से भारत को तबाह करने के उसके इरादे में बदलाव की उम्मीद करना बेकार है. लगातार घुसपैठ, युद्धविराम का उल्लंघन तथा पाकिस्तानी सरकार और सेना के उकसावे भरे बयान का सिलसिला भी थमने का नाम नहीं ले रहा है.
भारत ने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर निरंतर पाकिस्तानी मंसूबों से दुनिया को आगाह किया है, लेकिन ताकतवर देश अपने हितों को साधने के लिए पाकिस्तान पर समुचित दबाव नहीं बना सके हैं. आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में कथित सहयोग के नाम पर पाकिस्तान को अमेरिका से सामरिक और आर्थिक मदद मिलती रही है. अब जब अमेरिका ने इस मदद में बड़ी कटौती की है, तो चीन के रूप में पाकिस्तान को नया सहयोगी मिल गया है. एशिया के इस हिस्से में चीन अपने वर्चस्व के प्रसार के लिए पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहा है.
दोनों देशों के इस रिश्ते का एक पहलू चरमपंथी और आतंकी गिरोहों को संरक्षण भी है. संयुक्त राष्ट्र द्वारा जैश-ए-मोहम्मद को आतंकी संगठन घोषित किये जाने के बावजूद चीन ने सुरक्षा परिषद में इसके सरगना मसूद अजहर पर पाबंदी लगाने के प्रस्तावों को दो बार अपने विशेषाधिकार का प्रयोग कर रोक चुका है. पुलवामा हमले की निंदा करते हुए चीन ने पाकिस्तान का उल्लेख करने से भी परहेज किया है. यह कोई पहला मौका नहीं है, जब चीन ने भारत के विरुद्ध सक्रिय आतंकी समूहों को शह दिया है. बहुत पहले वह मिजो और नागा लड़ाकों को प्रशिक्षित कर चुका है.
पूर्वोत्तर के अनेक उग्रवादी सरगनाओं को आज भी उसका संरक्षण प्राप्त है, जिनमें से कुछ चीन के सीमावर्ती इलाकों और म्यांमार में छुपे हुए हैं. चीन का यह रवैया तब है, जब बीते सालों में भारत के साथ उसका व्यापार तेजी से बढ़ा है. उसे यह भी समझना होगा कि पाकिस्तान में आर्थिक गलियारे और बेल्ट-रोड परियोजनाओं के लिए आतंकी गिरोह भविष्य में बड़ा खतरा बन सकते हैं. बरसों तक पाकिस्तानी सेना को साजो-सामान और धन मुहैया करानेवाले तथा आतंकवाद पर ढुलमुल रुख अपनानेवाले अमेरिका को ऐसे गिरोहों से बहुत नुकसान उठाना पड़ा है.
कल ऐसा चीन के साथ भी हो सकता है. जैश-ए-मोहम्मद और लश्कर-ए-तय्यबा जैसे गिरोहों तथा मसूद अजहर और हाफिज सईद जैसे सरगनाओं के षड्यंत्रों को लेकर भारतीय नेतृत्व और आम लोगों में गुस्सा बढ़ाना स्वाभाविक है. यह क्षोभ भारत के साथ चीन के व्यापारिक हितों के लिए नुकसानदेह हो सकता है.
आखिर कब तक भारत उसी चीन से लेन-देन करता रहेगा, जो भारतीय सैनिकों और नागरिकों का खून बहानेवाले आतंकियों, उनके आकाओं और उन्हें पालने-पोसनेवाले पाकिस्तान का साथ दे रहा है?
भारत-विरोधी गिरोहों को लेकर चीन को अपनी नीति पर पुनर्विचार करना होगा, क्योंकि इसी आधार पर भारत और चीन के संबंधों का भविष्य निर्धारित होगा.