आतंकी हमले से उद्वेलित देश
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले में 40 जवानों की शहादत के बाद पूरे देश में गुस्से का माहौल है. पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों को ले जा रही एक बस से आइडी से भरी कार को टकरा दिया गया, जिससे हुए धमाके […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
जम्मू कश्मीर के पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर हमले में 40 जवानों की शहादत के बाद पूरे देश में गुस्से का माहौल है. पुलवामा में सीआरपीएफ के जवानों को ले जा रही एक बस से आइडी से भरी कार को टकरा दिया गया, जिससे हुए धमाके में 40 जवान शहीद हो गये और अन्य अनेक घायल हो गये. यह पहली बार है कि आत्मघाती हमलावर ने विस्फोटकों से भरी एक गाड़ी को सुरक्षाबलों की गाड़ी से टकरा दिया. ऐसी घटनाएं अफगानिस्तान अथवा इराक में तो अक्सर होती रहती हैं, लेकिन भारत में अब तक ऐसी घटनाएं नहीं हुई थीं.
सुरक्षा बलों पर यह हमला पिछले तीन दशक का सबसे बड़ा हमला बताया जा रहा है. इस हमले के तत्काल बाद सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक बुलायी गयी, जिसमें पाकिस्तान से मोस्ट फेवर्ड नेशन का दर्जा छीन लिया गया. इसके तहत पाकिस्तान को आयात निर्यात में विशेष छूट मिलती थी. डब्ल्यूटीओ के सदस्य देश मुक्त व्यापार के नियम से बंधे हैं, लेकिन मोस्ट फेवर्ड नेशन के दर्जे के कारण पाकिस्तान को विशेष छूट दी जा रही थी.
पाकिस्तान इस समय आर्थिक संकट से जूझ रहा है और भारत के साथ उसका अच्छा खासा व्यापार होता है. सीमा पर कितना भी तनाव रहा हो, उसका व्यापार पर असर नहीं पड़ता था, लेकिन इस बार यह दर्जा समाप्त कर दिया गया है. इस फैसले से पाकिस्तान को आर्थिक चोट पहुंचनी तय है.
इसके कूटनीति के मोर्चे पर पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करने की भी रणनीति तय की गयी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि पूरे देश में भारी गुस्सा है और आतंकवादियों ने बड़ी गलती कर दी है, इसकी कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी. इस हमले की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी कड़ी निंदा हुई है.
लगभग 50 देशों ने इस हमले की कड़ी निंदा की है. अमेरिका और इस्राइल जैसे देशों ने तो स्पष्ट रूप से कहा है कि वे भारत के साथ हैं. अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ने तो स्पष्ट कहा है कि भारत को आत्मरक्षा का अधिकार है. सऊदी अरब ने भी हमले की निंदा की है. सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान पाकिस्तान पहुंचने वाले थे, लेकिन उन्होंने अपने दौरे को एक दिन कम कर दिया है.
इस हमले के विरोध में लोग जगह-जगह सड़कों पर उतरे हैं और उनकी मांग है कि पाकिस्तान के खिलाफ कार्रवाई हो. इस घटना ने देश के लोगों को उद्वेलित कर दिया है. हर जगह शहीदों के अंतिम संस्कार में भारी भीड़ उमड़ी है. जनभावना है कि पाकिस्तान द्वारा प्रायोजित आतंकवादी हमलों की अति हो गयी और अब कार्रवाई का समय आ गया है.
इस बार लोगों की प्रतिक्रिया बहुत गंभीर है और सरकार पर कार्रवाई का भारी दबाव है, लेकिन पाकिस्तानी मीडिया के माध्यम से जो खबरें समाने आयी हैं, उनसे प्रतीत होता है कि पाकिस्तान इसको हल्के में ले रहा है. उनकी ओर से कोई गंभीर प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी है. वह पुराना राग अलाप रहा है कि भारत हमले के सबूत दे कि इसमें पाकिस्तानी संगठन शामिल हैं, जबकि हमले की जिम्मेदारी आंतकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद ने ली है. जैश-ए-मोहम्मद पाकिस्तान स्थित इस्लामिक आतंकवादी संगठन है और इसके संस्थापक मसूद अजहर का ठिकाना पाकिस्तान ही है.
खबरें हैं कि वह आजकल रावलपिंडी स्थित सेना के एक अस्पताल में अपना इलाज करवा रहा है और वहीं से आतंकवादियों को निर्देश दे रहा है. मोदी सरकार ने कई बार संयुक्त राष्ट्र से मसूद अजहर को अंतरराष्ट्रीय आतंकवादी घोषित कराने की कोशिश की, लेकिन चीन ने हर बार इसमें अड़ंगा लगाया है. इस बार आत्मघाती हमलावर का वीडियो सबसे बड़ा सबूत है, जिसमें वह खुद कह रहा है कि वह जैश-ए-मोहम्मद से जुड़ा हुआ है.
जैसी कि उम्मीद थी कि चीन की ओर से कोई कड़ी प्रतिक्रिया सामने नहीं आयी. चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने पत्रकारों के पूछे जाने पर इस हमले की निंदा की और कहा कि मारे गये लोगों के परिवारों के प्रति उनकी पूरी संवेदना है, लेकिन उन्होंने मसूद अजहर के सवाल पर कोई स्पष्ट जवाब नहीं दिया.
मैंने पहले भी लिखा है कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान से ज्यादा उम्मीद नहीं करनी चाहिए. वह सेना की कठपुतली के अलावा कुछ भी नहीं हैं. कुछ समय पहले करतारपुर गलियारे की पहल के दौरान इमरान खान ने बड़ी-बड़ी बातें की थीं. गलियारे की आधारशिला पाकिस्तान में वहां के प्रधानमंत्री इमरान खान और भारत में उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने रखी थी. इस मौके पर इमरान खान ने कहा था कि भारत और पाकिस्तान, दोनों तरफ से गलतियां हुईं हैं.
जब फ्रांस और जर्मनी साथ हैं फिर हम क्यों नहीं? उन्होंने कहा कि क्या हम अपना एक मसला हल नहीं कर सकते? कोई ऐसी चीज नहीं, जो हल नहीं हो सकती, लेकिन पाकिस्तानी नेताओं की कथनी और करनी में बहुत अंतर है. जैश-ए-मोहम्मद और लश्करे तैबा के आतंकवादी वहां खुलेआम घूमते हैं और उन पर कोई रो- टोक नहीं है.
यह तथ्य जगजाहिर है कि पाकिस्तानी सेना ने पिछले चुनाव में पूरी ताकत लगा कर इमरान खान को जितवाया था. इसके लिए सेना ने चुनावों में जितनी हेराफेरी हो सकती थी, वह की. चुनाव प्रचार से लेकर मतदान और मतगणना तक सारी व्यवस्था को सेना ने अपने नियंत्रण में रखा.
पाक सुरक्षा एजेंसियां ने चुनावी कवरेज को प्रभावित करने के लिए लगातार अभियान चलाया. जो भी पत्रकार, चैनल अथवा अखबार नवाज शरीफ के पक्ष में खड़ा नजर आया, खुफिया एजेंसियां ने उसे निशाना बनाया.
कई पत्रकारों का अपहरण हुआ है और उन्हें प्रमाणित किया गया. चुनाव से ठीक पहले भ्रष्टाचार के एक मामले में नवाज शरीफ को 10 साल और उनकी बेटी मरियम को सात साल की जेल की सजा सुना दी गयी, ताकि इमरान खान सत्ता तक पहुंच सकें. लब्बोलुआब यह कि इमरान खान की हैसियत सेना की कठपुतली भर है और वह सेना की नीतियों से इधर-उधर जाने की सोच भी नहीं सकते.
पाकिस्तान में सेना ही विदेश नीति तय करती है, खासकर भारत के साथ रिश्ते कैसे हों, इसका निर्धारण वही करती है. पाकिस्तानी सेना के सहयोग से ही आतंकवादी संगठन फलते-फूलते हैं और वह उन्हें नियंत्रित करती है. सेना ही उनका इस्तेमाल भारत के खिलाफ करती है.
शांति की किसी भी पहल को वह कामयाब नहीं होने देती. अमन की आशा रखने वालों को यह स्पष्ट हो जाना चाहिए कि पाकिस्तानी सेना की दुम सीधी होने वाली नहीं है. मौजूदा परिस्थितियों में पाकिस्तान के साथ संवाद की गुंजाइश नहीं है. सीमा पर मोमबत्ती जलाने से संबंध सुधरने वाले नहीं हैं, क्योंकि पाक सेना केवल सर्जिकल स्ट्राइक की ही भाषा समझती है.