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चीन का दोहरापन
पुलवामा के भयावह हमले के बाद भी पाकिस्तान के आतंकी सरगना मसूद अजहर को चीन बचाने की कोशिश में लगा हुआ है. चीन अजहर को सुरक्षा परिषद की पाबंदी से दो बार बचा चुका है. अपने रवैये पर कायम रहते हुए उसने भारत से अजहर के खिलाफ सबूतों की मांग की है, जो उसकी हेठी […]
पुलवामा के भयावह हमले के बाद भी पाकिस्तान के आतंकी सरगना मसूद अजहर को चीन बचाने की कोशिश में लगा हुआ है. चीन अजहर को सुरक्षा परिषद की पाबंदी से दो बार बचा चुका है. अपने रवैये पर कायम रहते हुए उसने भारत से अजहर के खिलाफ सबूतों की मांग की है, जो उसकी हेठी और दोहरे मानदंड का परिचायक है.
चीन अपने देश के भीतर झिनजियांग प्रांत में चरमपंथी अलगाववादी गुटों की हिंसात्मक गतिविधियों के विरुद्ध कई सालों से अभियान चला रहा है. स्वायत्त क्षेत्र होने के बावजूद वहां सरकार ने नागरिक अधिकारों की परवाह किये बिना बड़ी संख्या में लोगों को जेलनुमा शिविरों में रखा है, जहां उन्हें कठोरता से मानसिक तौर पर सरकारी विचारधारा और नीतियों के लिए तैयार किया जाता है. आतंकियों को मौत की सजा देने और कैद में रखने की कवायद भी जारी है.
सरकार की कोशिश है कि चरमपंथ को संगठित आतंकवाद में बदलने से पहले ही खत्म कर दिया जाये. चीन 1990 के दशक के उत्तरार्द्ध से ही अफगानिस्तान और पाकिस्तान के आतंकी गिरोहों से संपर्क कर उग्यूर आतंकियों के प्रशिक्षण शिविर बंद कराने और बाहरी मदद को रोकने की कोशिश करता रहा है. वर्ष 2000 में पाकिस्तान में चीन के राजदूत ने तालिबान के मुखिया मुल्ला उमर से मुलाकात कर यह गारंटी हासिल की थी कि उग्यूर आतंकी झिनजियांग में हमले नहीं करेंगे. इसके बदले उन्हें तालिबानियों की तरफ से लड़ने की छूट देने पर चीन मान गया था.
आतंकवाद पर दोहरेपन का एक बड़ा कारण यह भी है कि पाकिस्तान में चीन को अपने 60 बिलियन डॉलर की परियोजनाओं तथा उनमें कार्यरत चीनी नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी है. इसके लिए उसने अल-कायदा और तालिबान से जुड़े संगठनों के साथ बलोच उग्रवादियों और मसूद अजहर जैसे आतंकियों को साधने की नीति अपनायी है. तालिबान से शांति-वार्ता करने और अफगानी सत्ता में उसकी हिस्सेदारी पर चीन का जोर इसी वजह से है.
अन्य इलाकों के अलावा न सिर्फ पाकिस्तानी पंजाब और पाक-अधिकृत कश्मीर में चीनी आर्थिक गलियारे का विस्तार हो रहा है, बल्कि इसके तहत मसूद अजहर के ठिकाने बहावलपुर में एक बड़ा सौर ऊर्जा संयंत्र भी बन रहा है.
इस प्रकार दक्षिण एशिया में चीनी वर्चस्व स्थापित करने की नीति और आतंक को इस्तेमाल करने की पाकिस्तानी राजनीति के बीच एक गठजोड़ बन चुका है. यह गठजोड़ भारत, ईरान और अफगानिस्तान की सुरक्षा और स्थिरता के लिए बड़ा खतरा है. ये आतंकी पाकिस्तान के भीतर भी निर्दोष नागरिकों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते रहे हैं.
चीन की गोद में खेल रहे आतंकवादी किसी दिन उसी के लिए भस्मासुर बन सकते हैं. आज जरूरत इस बात की है कि चीन अपनी नीति पर पुनर्विचार करने के साथ पाकिस्तान के रवैये में बदलाव के लिए भी पुरजोर कोशिश करे.
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