किसानों को राहत
छोटे और सीमांत खेतिहरों को व्यापक कृषि संकट से निकालने की कोशिश में केंद्र सरकार ने बजट में वित्तीय सहायता की घोषणा की थी. गोरखपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किसानों के खाते में नकदी डालने की इस महत्वाकांक्षी योजना का शुभारंभ हो गया है. इस योजना के तहत 12 करोड़ से अधिक किसानों के […]
छोटे और सीमांत खेतिहरों को व्यापक कृषि संकट से निकालने की कोशिश में केंद्र सरकार ने बजट में वित्तीय सहायता की घोषणा की थी.
गोरखपुर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किसानों के खाते में नकदी डालने की इस महत्वाकांक्षी योजना का शुभारंभ हो गया है. इस योजना के तहत 12 करोड़ से अधिक किसानों के खाते में तीन समान किस्तों में सालाना छह हजार रुपये स्थानांतरित किये जायेंगे. पहले चरण में एक करोड़ से अधिक किसान परिवार लाभार्थी होंगे और कुछ दिनों में एक करोड़ अन्य परिवारों को राहत मुहैया करा दी जायेगी.
अच्छी फसल होने के बावजूद किसानों को उपज का उचित दाम मिल पाने में मुश्किल हो रही है. सरकार द्वारा न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी के बाद भी मंडियों में खरीद की रफ्तार धीमी है. इसका सबसे ज्यादा खामियाजा छोटे किसानों को भुगतना पड़ रहा है. हमारे देश में दो हेक्टेयर यानी करीब पांच एकड़ जमीन से कम का मालिकाना रखनेवाले खेतिहर 85 फीसदी से अधिक हैं.
ये खेती की लागत के साथ अपने जीवनयापन के लिए इसी काश्तकारी पर निर्भर हैं. ऐसे में उम्मीद यही है कि नकदी की आमद इन्हें फौरी तौर पर राहत देगी, लेकिन सभी लाभुकों तक 31 मार्च तक दो हजार रुपये की पहली किस्त पहुंचने में कई मुश्किलें हैं. रिपोर्टों के अनुसार, विभिन्न राज्य सरकारों ने सरकार के पब्लिक फाइनेंसियल मैनेजमेंट सिस्टम के पास 3.2 करोड़ आवेदन भेजा है.
इनमें से 55 लाख लंबित हैं और 1.7 करोड़ को मंजूर कर लिया गया है. सिस्टम ने 84 लाख आवेदन निरस्त कर दिया है. नामंजूर हुए 33 फीसदी आवेदनों को फिर से भेजना पड़ सकता है. एक चुनौती लोकसभा चुनाव के मद्देनजर लागू होनेवाले आदर्श आचार संहिता की भी है.
लाभुकों के खाते में पैसे पहुंचने की तारीख 31 मार्च से पहले ही संहिता लागू हो जायेगी. चूंकि बजट में की गयी घोषणा के मुताबिक यह योजना दिसंबर से लागू की गयी है, इसलिए तब तक पैसे के हस्तांतरण में कोई अड़चन नहीं आनी चाहिए, लेकिन संहिता लागू होने से पहले शुरुआती किस्त के लाभुकों की पहचान करने की प्रक्रिया पूरी करने से इस प्रक्रिया में आसानी होगी.
चुनावी मौसम हो या न हो, किसी मसले पर राजनीति होना हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था का एक स्थायी स्वभाव है. बहुत संभव है कि संहिता और हस्तांतरण भी एक मुद्दा बन जाये तथा विवाद का निबटारा चुनाव आयोग को करना पड़े. इस संबंध में यह भी उल्लेखनीय है कि लाभुकों की पहचान करने में सभी राज्यों ने एक-समान उत्साह नहीं दिखाया है. खबरों के मुताबिक, आवेदनों में 67 फीसदी हिस्सा भाजपा या भाजपानीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की राज्य सरकारों ने भेजा है, जबकि कांग्रेस शासित राज्यों से सिर्फ दो फीसदी आवेदन ही आये हैं.
अकेले उत्तर प्रदेश से करीब 30 फीसदी आवेदन भेजे गये हैं और पश्चिम बंगाल से किसी भी लाभुक का नाम प्रस्तावित नहीं है.संभव है कि आगामी दिनों में यह असंतुलन दूर हो जाये और आचार संहिता के लागू होने से पहले सभी सही लाभुकों को पहली किस्त का भुगतान हो जाए.