मोदी सरकार का हनीमून पीरियड

रूपम प्रभात खबर, रांची अच्छे दिनों का वादा कर सत्ता में आयी नरेंद्र मोदी सरकार एक महीना पूरा कर चुकी है. लेकिन जिस महंगाई से पार पाने के लिए जनता ने नरेंद्र मोदी को आशातीत सफलता दिलायी, वह और बढ़ने लगी. माना कि सब बेसब्री से अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन इस […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 30, 2014 6:01 AM

रूपम

प्रभात खबर, रांची

अच्छे दिनों का वादा कर सत्ता में आयी नरेंद्र मोदी सरकार एक महीना पूरा कर चुकी है. लेकिन जिस महंगाई से पार पाने के लिए जनता ने नरेंद्र मोदी को आशातीत सफलता दिलायी, वह और बढ़ने लगी. माना कि सब बेसब्री से अच्छे दिनों का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन इस तरह हथेली पर सरसों थोड़े ही उगाया जाता है! नरेंद्र मोदी ने लोगों से 60 महीनों का समय मांगा है, तो एक ही महीने में लोगों को ऐसी बेचैनी दिखाने की क्या जरूरत आ पड़ी?

इसी मुद्दे पर मोदी के आलोचकों को चुटकी लेने का अच्छा मौका मिल गया है. दरअसल, पांच साल के लिए चुनी गयी किसी सरकार के आकलन के लिए एक महीने का समय बहुत कम होता है, लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि इस एक महीने में मोदी सरकार के इरादों की झलक मिली है. अपनी सरकार के एक महीना पूरा करने पर विरोधियों के हमलों का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने अपने ब्लॉग पर लिखा है कि हमें अन्य सरकारों की तरह हनीमून पीरियड का सुख नहीं मिला. सही भी है, आमतौर पर अन्य सरकारों के सौ दिनों के काम-काज की समीक्षा होती है, लेकिन मोदी सरकार पर तो सत्ता संभालने के सौ घंटे में ही हमले शुरू हो गये.

26 मई 2014 को नरेंद्र मोदी ने जब देश की बागडोर अपने हाथों में ली, उस वक्त देशभर में लोग उन्हें अपनी उम्मीदों का मसीहा मानकर उनसे किसी चमत्कार की उम्मीद लगाये बैठे थे. लोगों को उम्मीद थी कि मोदी रातों-रात उनकी सभी समस्याओं को हल कर देंगे. लेकिन आज मोदी सरकार से जनता की सबसे बड़ी शिकायत यह है कि उसने चीनी का आयात शुल्क बढ़ा कर लोगों के अच्छे दिनों के सपनों की मिठास छीन ली.

इसके अलावा, रेल भाड़ा और माल भाड़ा बढ़ा कर महंगाई को पंख लगा दिया. मोदी जी के साथी इस बात की लाख दलील देते रहें कि सौ रुपये में रेलवे के टूटे पुल पर सफर करने से कहीं अच्छा है सवा सौ रुपये में रेल का सुरक्षित और सुव्यवस्थित सफर, लेकिन जनता तो यही कहेगी न कि जब सस्ते में काम चल ही रहा था तो महंगे की क्या जरूरत थी? जिन वादों के साथ मोदी सत्ता में आये हैं, उन्हें पूरा करने की राह में चुनौतियां भी कई आयेंगी. अभी सबसे बड़ी चुनौती कमजोर पड़ते मानसून की नजर आ रही है, जिससे खाद्यान्न और महंगे होंगे. फिलहाल मीडिया में मोदी काम के नाम पर बैठकें करते दिख रहे हैं.

वह कभी कैबिनेट के मंत्रियों की तो कभी अधिकारियों की क्लास लेते दिखते हैं. शायद ऐसे ही वे अपने काम को ठीक से समझने की कोशिश कर रहे हों, जिससे आगामी पांच सालों में वे देशवासियों के लिए अच्छे दिन ला सकें. लेकिन हमें उससे क्या? हमें तो अपने अच्छे दिनों से मतलब है, जब तक नहीं आयेंगे तब तक हम शोरगुल मचाते रहेंगे. हम यह थोड़े ही सोचेंगे कि ससुराल में अभी तो नयी दुल्हन की मुंह दिखाई ही हुई है और हम उसके होनेवाले बच्चे का नाम सोचने लगे हैं.

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