भारत-द कोरिया के घनिष्ठ संबंध
डॉ राहुल मिश्रा सीनियर लेक्चरर, मलाया विश्वविद्यालय, मलयेशिया rahul.seas@gmail.com प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की दक्षिण कोरिया यात्रा चर्चा का विषय रही है. यह मोदी की कोरिया की दूसरी यात्रा थी. इस यात्रा के दौरान छह महत्वपूर्ण समझौतों पर दस्तखत किये गये. यात्रा के दौरान मोदी को सियोल शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया. मोदी […]
डॉ राहुल मिश्रा
सीनियर लेक्चरर, मलाया विश्वविद्यालय, मलयेशिया
rahul.seas@gmail.com
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हाल की दक्षिण कोरिया यात्रा चर्चा का विषय रही है. यह मोदी की कोरिया की दूसरी यात्रा थी. इस यात्रा के दौरान छह महत्वपूर्ण समझौतों पर दस्तखत किये गये. यात्रा के दौरान मोदी को सियोल शांति पुरस्कार से भी नवाजा गया. मोदी को यह पुरस्कार मिलने की घोषणा सियोल पीस प्राइज फाउंडेशन द्वारा अक्तूबर, 2018 में ही कर दी गयी थी.
इस संदर्भ में भारतीय विदेश मंत्रालय ने अपने वक्तव्य में कहा कि मोदी को यह पुरस्कार भारत में आर्थिक व सामाजिक विकास, भ्रष्टाचार के विरुद्ध मुहिम, सामाजिक समरसता के उनके प्रयासों की वजह से दिया गया है. पुरस्कार में मिली धनराशि को ‘नमामि गंगे’ प्रोजेक्ट को देकर मोदी ने गंगा सफाई को सरकार की प्राथमिकता बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. स्पष्ट है गंगा की सफाई में अभी हम काफी पीछे हैं. इस पुरस्कार ने कोरिया में भारत की लोकप्रियता में भी इजाफा किया है.
भारत की आंतरिक सुरक्षा को चुस्त-दुरुस्त बनाने और कोरिया के साथ आंतरिक सुरक्षा के मामलों में सहयोग बढ़ाने के लिए गृह मंत्रालय और कोरिया की नेशनल पुलिस एजेंसी के बीच एक समझौता मसौदा मंजूर किया गया है.
इन्फ्रास्ट्रक्चर और रेल, रोड संचार और यातायात को उच्च कोटि का बनाने में कोरिया और भारत का सहयोग न सिर्फ दोनों देशों की मित्रता को नये आयाम देगा, बल्कि भारत के इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के सपनों और प्रयासों को भी मूर्त रूप देगा. यहां यह बताना महत्वपूर्ण है कि जापान के सहयोग से बनी दिल्ली मेट्रो रेल परियोजना में भी, रेल कोच के तमाम सामान और तकनीक कोरिया से बनकर आते है. अब जबकि देश के तमाम शहरों में मेट्रो परियोजना जोर पकड़ रही है, कोरिया के साथ सहयोग एक महत्वपूर्ण कदम होगा.
भारत और दक्षिण कोरिया के बीच संबंध हमेशा से ही मधुर रहे हैं. माना जाता है कि प्राचीन काल में अयोध्या की एक राजकुमारी का विवाह कोरिया के राज परिवार में हुआ था.
आज से लगभग एक शताब्दी पहले गुरु रवींद्रनाथ टैगोर ने अपनी एक कविता ‘लैंप आॅफ द ईस्ट’ में कोरिया को ‘पूर्व का दीप’ कहकर इसका महिमा मंडन किया था. जापान के कोरिया पर आक्रमण के समय गांधीजी और टैगोर दोनों ने उसका विरोध भी किया था. स्वतंत्रता के बाद भी दोनों देशों के बीच संबंध अच्छे रहे, हालांकि शीत युद्ध ने इन संबंधों को प्रगाढ़ नहीं होने दिया.
साल 1992 में नरसिम्हा राव की लुक ईस्ट नीति ने संबंधों में आर्थिक और सामरिक आयाम जोड़ने की कोशिश की और राव 1993 में सियोल भी गये. आर्थिक आयाम इसलिए भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि एक ओर भारत अपनी आर्थिक व्यवस्था में सुधार के कदम उठा रहा था, तो वहीं दक्षिण कोरिया पहले जैसा गरीब नहीं, बल्कि एक समृद्ध देश के रूप में उभर रहा था.
नब्बे के दशक में कोरिया की कई कंपनियों ने भारत में निवेश किया, हालांकि पास्को जैसे निवेश असफल रहे और इनकी असफलता से हमें निवेश खींचने में निराशा भी मिली. जब साल 2014 में लुक ईस्ट की जगह एक्ट ईस्ट नीति का पदार्पण हुआ, तो इसमें भी दक्षिण कोरिया का एक प्रमुख स्थान रहा. मोदी ने सियोल की अपनी 2015 की यात्रा के दौरान भी इस बात पर जोर दिया.
दक्षिण कोरिया से भारत बहुत कुछ सीख सकता है. नवाचार, तकनीक, रक्षा संसाधनों का निर्माण इसमें प्रमुख स्थान रखते हैं. इस संदर्भ में मोदी की यात्रा के दौरान स्टार्टअप सहयोग के क्षेत्र में हुआ समझौता खास स्थान रखता है.
मसौदे के अनुसार, कोरिया भारत में एक स्टार्टअप सेंटर की स्थापना करेगा. बहुराष्ट्रीय कोरियन कंपनी सैमसंग ने विश्व का अपना सबसे बड़ा कारखाना नोएडा में लगाकर अपनी मंशा साफ कर दी है कि यदि भारत निवेश के अनुकूल वातावरण बनाये, तो कोरिया निवेश में पीछे नहीं रहेगा. भारत और कोरिया के बीच निवेश संबंधी इन कदमों के दूरगामी परिणाम होंगे. दोनों देशों के बीच 2013-2014 में 16.67 बिलियन डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार रहा, जो 2017-2018 में बढ़कर 20.82 बिलियन डॉलर हो गया. दक्षिण कोरिया ने अब तक भारत में 250 बिलियन डॉलर का निवेश भी कर रखा है.
पिछले दिनों पुलवामा में आतंकी हमला हुआ और इसलिए यह एक मौका था कि भारत की आतंकवाद संबंधी चिंताओं और नीतियों पर भी दक्षिण कोरिया के साथ मनन हो. ऐसा हुआ भी. दक्षिण कोरिया ने हमेशा ही आतंकवाद से लड़ने में भारत का साथ दिया है. भारत और दक्षिण कोरिया के संयुक्त वक्तव्य हमेशा ही इन मुद्दों पर स्पष्ट रहे हैं.
दोनों ही देश इंडो-पैसिफिक नीति के समर्थन में हैं. और तो और, भारत की एक्ट ईस्ट नीति की तरह दक्षिण कोरिया की न्यू साउदर्न पाॅलिसी का उद्देश्य भी दक्षिण-पूर्व (और दक्षिण) एशिया के देशों के साथ आर्थिक, राजनयिक, और सामरिक संबंधों का सुदृढ़ीकरण करना है. भारत ने कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन की उत्तर कोरिया से बातचीत और शांति प्रस्ताव का भी समर्थन किया है.
भारत आज एक नये मोड़ से गुजर रहा है. तेजी से उभरती आर्थिक व्यवस्था को निवेश के बड़े और दीर्घकालीन निवेश ढूंढने होंगे. रक्षा उत्पाद, विज्ञान और तकनीक, रिसर्च और नवाचार- इन सभी क्षेत्रों में निवेश की आवश्यकता है और कोरिया इन क्षेत्रों में भारत का मजबूती से साथ दे सकता है. समय आ गया है कि दोनों देश लंबी साझेदारी के लिए कटिबद्ध होकर साथ काम करें.